पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१९२६ ठेठ' काम न निकलना । 30-जिसका काम उसी को साजे । भोर घरका । थपेड़ा। उ.-तरम तरंग यंग की राजहि उछचत करें तो ठेंगा बाजे।-(शब्द०)। छज लगि ठेका । -रघुराज (शब्द०)। ४. वह कर जो बिक्री के माल पर लिया जाता है। चुंगी का ठेका समापु० [हिं० ठीक] १. कुछ घन मादि के बदले में किसी के किसी काम को पूरा करने का जिम्मा। ठीका । पैसे, पुर-सक पुं० [हि.ठेंगा ( =सोटा)] काठ का लंवा कुंदा मकान बनवाने का ठेका । सड़क तैयार करने का ठेका । जो नटखट पोपायों के गले में इसलिये वाघ दिया जाता है २ समय समय पर मामदनी देनेवाली वस्तु को कुछ काल तक जिसमें वे बहुत दौड़ मोर उछल कूद न सकें। के लिये इस शर्त पर दूसरे को सुपुर्द करना कि वह पामदनी .. ठेघा-सज्ञा० [हिं० ] दे० 'ठेघा' । वसूल करके और कुछ पपता निश्चित मुनाफा काटकर बराबर मालिक को देता बायगा । इजारा । पट्टा । । ठठ'-सवा सौ. [हिं०] दे० 'ठोठी'। क्रि० प्र०---देना।—लेना। पर लेना। ।। ठठ-वि० [हिं० ] दे॰ 'ठठ' । यो०-ठेका पट्टा। ठेठा-सा पुं० [हिं०] सुखा हुमा डंठल । उ०-रानी एक मजूर मुहा०-ठेफा मेंटवह नजर जो किसी वस्तु को ठेके पर से बैलों के लिये जोन्हरी काठा कटवा रही थी।-तितली, लेनेवाला मालिक को देता है। पृ०२३८1 ठेकाई-सका बी० [देश०] कपड़ों की छपाई में काले हाशियों की। ठठो-संश क्षी० [ देश०] १. कान की मैल का लच्छा। कान की छपाई। मैल । २. कान की छैव में लगाई हुईबई, कपड़े मादि की ठेकाना'-क्रि० स० [हिं. ठेकना का प्रे० रूप ] भौठघाना। किसी खाट । कान का छेद मूदने की वस्तु। वस्तु को किसी वस्तु के सहारे करना । सहारा देना । मुहा०—कान में उठी लगाना सुमना । ३. शीधी बोतल मादि का मुंह पर करने की वस्तु । गट । काग। ठेकाना-सधा पुं० [हिं० ठिकाना ] दे० ठिकाना। . ठपी-सपा सी० [हिं०] दे॰ ठेठी। ठेकरीgt-सहा श्री० [हि.] दे० 'द्रुकली'। उ०-कहू ठेकुरी ढारि के वारि ढारे-प० रासो, पु० ५५।- .ठेक-सखा श्री० [हिं० टिकना] पहारा। बल देकर टिकाने की वस्तु । पाँठगारे की चीप । २. वह वस्तु को किसी भारी । ठेकेदार- पुं० [हिं०] दे० 'ठौकेदार। चीज को पर ठहराए रखने के लिये नीचे रे लगाई जाय। ठेकी-सञ्ज्ञा सी० [हिं० टेक] १ टेक, सहारा। २. पाँ! ३. टेक । पांढ़। ३. वह वस्तु जिसे बीच में देने या ठोकने से विधाम करने के लिये ऊपर लिए हुए.बोझ को कुछ देर कहीं छोई ढीली वस्तु कस जाय, इधर उधर महिले। पच्चड़। टिकाने या ठहराने की क्रिया। ४ किसी वस्तु के नीचे का भाग जो जमीन पर टिका रहे। कि००-लगाना ।-लेना। पेंदा। पला । १. टट्टियों प्रादि से घिरा हुमा वह स्थान जिसमें ठेगदी-संचा पुं० [देश॰] कुत्ता 1-(डि.)। । पनाब भरकर रखा जाता है। १. घोड़ों की एक चाल.। ७. गाना -क्रि० स० हि टेकना] १ टेकना। सहारा लेना । छछी या पाठी को सामी। ८. धातु के बरतन में लगी हुई ४.-पाणि ठेगि मजूषा काहीं। रघुनायक चित्तयो गुरु धफती। एक प्रकार की मोटो महताबी। 1 पाहीं।-रघुराज (शब्द०)। २ रोकना । घरजना । मना ठेकना-क्रि० स० [हिं० टिकना, टेक ] 1. सहारा या । प्राश्रय करमा। उ०.-मवर भुजग कहा सो पीया। हम ठेगा तुम सेना। पखने या उठने बैठने में अपना पज किसी वस्तु पर कान न कीया ।-जायसी (शब्द॰) । देवा । टेफमा । २. पाश्रय लेना । टिकना । ठहरना । रहना। ठेगनी-सहा लोहि ठेगना ] टेकने की लकड़ी। Bo-वी, विरह, पौवीस पो एफा। परम पखिन कोन से ठेघना-क्रि.स. हि.] दे० 'ठेगना'। ठेका । -बायसी (शब्द०)। वि० दे० 'टेकना'। ठेघनी-सहा मी• [हिं० ठेपना ] टेकने की लकड़ी। ठेकवा बाँस-सा पु० दे० ] एक प्रकार का वास। - . ठेघा-सा पुं० [हिं० टेक ] टेक । चौड़। वह खेमा या लकड़ी जो विशेष-यह पगाल और पासाम में होता है और छाजन तथा सहारे के लिये लगाई जाय । ठहराध । टिकान । उ०-(6) घटाई मादिकाम में पाता है। इसे देवास भी कहते है। बरनहिं बरन गगन जस मेघा । ठहि गगन बैठे बनु ठेपा।-- ठेका'-संधा पुं० [हि.टिकना, टेक] १ ठेक। सहारे की वस्तु । २ जायसी (शब्द०)। (ख) धिरह बजागि धीष को ठेषा । ठहरने या रुकने की जगह। बैठक । मडा। ३ सबला या -जायसी न., पृ० १६१! ढोल बजाने की वह क्रिया जिसमें पूरे रोल न निकाले जायें, टेघना -सहा पुं० [सं० प्रष्ठीव, हिं० ठेहुना ] दे० 'ठेहुना'। केवल ताल दिया जाय । यह बाएँ पर बजाया जाता है। ठे?'-वि० [देश०] १. निपट । निरा। बिलकुल । जैसे, ठेठ गॅवार। कि०प्र०-वजाना1-देना। २. खालिस । जिसमें कुछ मेलजोल न हो। जैसे, ठेठ बोली, मुहा०-ठेका भरना - घोडे का उछल कूद करना। ठेठ हिंदी। ३ शुद्ध। निर्मल । निलिप्त । उ.--में उपकारी ४. सबसे का वाया। दुग्गी। ५. कौवाली ताल । १. ठोकर । ठंठ का सतगुरु दिया सोहाग। दिल दरपन दिखलाम के दूर