पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२८१

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ठॉकना २४२० किया सब ताग। कबीर (शब्द.)। ४. मारमा शुरू। क्रि०प्र०-देना।-लगना ।—लगाना ।..। उ०-मैं ठेठ से देखता पाता हूँ कि माप मुझको देखकर, २. सहारा । टेक । जलते हैं।-श्रीनिवास दास (शब्द०)। ठेसना-क्रि० स० [हिं०] दे० 'ठूसना'।' ठेठ-सा बी० सीधी सादी बोली। वह बोली जिसमें साहित्य पर्याद ठेसमठेस-कि- वि० [हि. ठेस] सब पालों को एकबारगी खोले लिखने पढ़ने की भाषा के शब्दो का मेल न हो। हुए (जहाज का चलना)।-(खश०)। ठेठरा-सचा पुं० [अ० पिएटर ] दे० 'थिएटर। ठेहरी-सका श्री. दिरा०] वह छोटो सी लकड़ी जो पुरानी चाल के ठेना -क्रि० स० [?] १ ठहरना। रुकना। २ पकडना । । दरवाजों के पल्लों की चूल के नीचे गड़ी रहती है और जिस- ऐंठना। 30-नाहक का झगड़ा मोल लेना है, सेतमेत का पर धूल घूमती है। ठेचा है।-प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० ५४ । ठेही-सचा स्त्री० [देश॰] मारो हुई ईख । ठेप-सबाबी-[देश॰] सोने चांदी का इतना बड़ा टुकड़ा जो मठी ठेहुफा -सका पुं० [हिं० ठेकवह जानवर जिसके पिछले घुटने में पा सके।-(सुनार) । चलते समय मापस में रगड़ खाते हो। विशेष-सुनार सोना या चांदी गायब करने के लिये उसे इस ठेहना-सधा पु० [सं० मष्ठीवान] बी. ठेहुनी] घुटना । प्रकार अटी में लेते है। ठेहुनी-सवा सी० [हिं० ठेहुना हाथ की कुहनी । क्रि०प्र.-चढाना ।—लगाना । ठकर- पुं० दिश०] नीबू का सा एक खट्टा फल जिसे हलदी के ठेप-सबा पुं० [सं० दोपदीपक । चिराग। साथ उबालकर हलका पीला रंग बनाते हैं। रेपी सली . देशप १. डाट। काग जिससे बोतल वा किसी ठन -सहा स्त्री० [से० स्थान, हि० ठाय] जगह । स्थान। बैठने . बरतन का मुंह बंद किया जाता है। २. छोटा ढंकना । का ठाव । उक-कोढ़त सधन कुज वृदावन बसीवट बमुना ठेरा--सा पुं० [हिं० ठहर ] ठहराव । उकाव का स्थान । टेक। .. को छैन । —सूर (शब्द०)। उ०--पद नवकल रो ठेर पुणोजे, गीत सतवणो मछ गुणी ठयाँ --सहा स्त्री० [हि ठीय] दे० 'ठाई। जै।-रघु० ६०, पृ० १३७ । । ठरना:-क्रि० अ० [हिं. ठहरना] दे० 'ठहरना'। उ०—उनकी ठेलना-कि. स० [हिं० टलना' या प्रप./ठिल्ल] १ ढकेलना। कोई बात हिकमत से खाली नहीं हैरती।-श्रीनिवास प्रे०, पक्का देफर मागे वढ़ाना। रेलना। पु० १८४। सयो०क्रि०-देना । ठनाई-सक्षा खी० [हिं० ठहराना] दे० 'ठहराई' । यो०-ठेलठाल, ठेलमठेल-धस्कम धपका । ठेलाठेल । ठेलमेल- ठराना-क्रि० स० [हिं०] दे० 'ठहराना'। 10-(क) मैं वीजक एफ पर एक धागे बढ़ते हए । ठेलाठेली धक्कम धक्का । दिखाकर इन्से कीमत ठेरा लूंगा।-धीनिवास ५०, पृ. २. अवदस्ती करना । बलात् किसी को धकियाते हुए मागे बढ़ना । १६०। (ख) हे सारपी, सपोवनवासियों के काम मे कुछ ठेला-सचा पुं० [हिठेलना] १. बगल से लगा हुमा धक्का विघ्न न पड़े इस्से रप यही ठरा दो हम उतर लें।--- जिसके कारण कोई वस्तु खिसककर मागे बढ़े। पाव का शकुतला, पृ० १२। माघात । टक्कर । २. पिछली नदियों में चलनेवाली नाव जो ठेलपैल-सचा श्री [हिं० ठेलना] दे० 'ठेलपेल'। जगी के सहारे चलाई जाती है। ३. बहुत से पादमियों का ठहरना -कि०स० [हिं० ठहरना] रुकना । ठहरना । उ- एक के ऊपर एक गिरना पडना । घक्कम धक्का । ऐसी भीड़ ठहरि के) प्यारे, जो यही गति करनी हो तो अपनायो जिसमें देह से देह रगड खाय। रेला। ४ एक प्रकार की क्यों ?-पोद्दार भमि० प्र.,पृ. ४६५। गाड़ी जिसे पादमी ठेल या ठमेलकर चलाठे हैं। ठॉक-सशस्त्री० [हिं० ठोकना] ठोंकने की क्रिया या भाव । यौ०-ठेलागाड़ी। प्रहार । प्राधात । २. वह लकही जिससे वरी बुननेवाले सूत ठेलाठेल-सा स्त्री. [हिं० ठलना ] बहुत से भादमियों का एक ठोंककर ठस करते हैं। पर एक गिरना पड़ना । रेला पेल । घक्कम धक्का । 10- ठॉकना-क्रि० स० [पनुध्व० ठक ठक] १. जोर से चोट मारना। 'ठानि ब्रह्म ठाकुर ठगोरिन की ठेलाठेलि मेला के मझार हित माघात पहुंचाना ।प्रहार करना । पीटना । जैसे,—इतेहपौड़े हेमा के भलो गयो। पद्माकर (शब्द०)। ठोंको। ठेवका-सा पु[सं० स्थापक] वह स्थान पहाँ खेत सींचने के लिये संयो०वि०-देना। पुरषट का पानी गिराया जाता है। २. मारना। पीटना । लात, चूंसे डरे माधि से मारना । जैसे,- ठेवकी-सौ . ft. ठेवफा] किसी लुढ़कनेवाली वस्तु को घर पर जामो खूब ठों जामोगे। पड़ाने या टिकाने की जगह या वस्तु । संयो० कि०-देना। ठेस- बी. [देश०] १ माघात | पोट । धमका । ठोकर । 30 ३. ऊपर से चोट लगाकर फंसाचा । गाड़ना । जैसे, कील ठोंकना, पोचए दिल पर हंगेफिराक की ऐसी ठेस लगी कि पकवापर पपर ठोंकना। ४ (नालिष, भरजी मादि) दाखिल करना। हो गया।-फिसाना, भा० १, पृ० १२ । दायर करता। जैसे, नासिब ठोकना, पाबा ठोकना।