पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ठॉकंधा १११ ठोकर संयो० क्रि०-देना। ठोकना--क्रि० स० [हिं. ठोंकना ] दे० 'ठोकना'। ५ काठ में डालना । रेडियो से जकड़ना। ६. धीरे धीरे हथेली यौ०-ठोक पीट करना = ठोकना पीटना । बारबार ठोकना। पटककर पाधात पहुंचाना। हाथ मारना । जैसे, पीठ ठोंफना, ठोक पीटकर गढना-ठोक पीटकर दुरुस्त करना । तैयार ताल ठोंकना, बच्चे को ठोंककर सुलाना। करना । उ.---जब हम सोने को ठोंक पीट गढ़ते हैं, तब मान संयोक्रि०-देना ।-लेना। मुल्प, सौंदर्य सभी बढ़ते हैं।-- साकेत, पृ. २१३ । मुहा०-ठोक ठोंककर लड़ना ताल ठोंककर लड़ना । उट- ठोकर-सपा श्री. [हिं० ठोकना] १. यह पोट जो किसी पंग कर लड़ना । जबरदस्ती झगड़ा करना। ठोंकना घजाना = विशेषत पैर में किसी की वस्तु के जोर से टकराने से सगे। हाप से टटोलकर परीक्षा करना । जाँचना । परखना। माघात जो चलने में ककर, पत्पर आदि के धक्के से पैर में बैंसे,-सोग दमड़ी की हाही भी ठोक बजाकर लेते है। खगे। ठेस । . उ.-(क) तन--सराय मन पाहरू, मनसा उतरी माय । कि०प्र०-लगना। कोउ काहू का है नहीं (सब) देखा ठोक बजाय । ---कबीर मुहा०-ठोकर उठाना-पापात पास सहना । हानि उठाना। सा० स०, पु.६१। (ख) ठोंकि वजाय लये गजराज कहाँ ठोकर या ठोकरें खाना%3D (१) पलने में एकबारगी किसी लौ कहाँ केहि सो रद काळे-तुलसी (शब्द०)। (ग) नंद पड़ीहई यस्तु की रुकावट के कारण पैर का पोट खाना और ब्रज लीजे ठोंकि बजाय । देह विदा मिलि जाहि मधुपुरी जह सदसड़ाना। मदुरुन। । अढुककर गिरना । जैसे,-जो संमत्त- गोकुल के राय !-सुर (शब्द०)। पीठ ठोकना-दे. 'पीठ' कर नहीं पलेगा वह ठोकर खाकर गिरेगा (२) किसी मूत का मुहा०। रोटी या बाटो ठोकना-प्राटे की लोई को के कारण दु.स या हानि सहना । मसावधानो या चूक के हाथ से ठोंकते हुए चढ़ाफर रोटी बनाना। कारण कर या क्षति उठाना । जैसे,-ठोकर खावे, बुद्धि पावे ७ हाथ से मारकर बजाना। जैसे, तबला ठोंकना । ८ कसफर (३) पोखे में माना । भूलचूक करना । चूक माना। (४) मंटकाना । लगाना पड़ना । जैसे, ताला ठोंकना। ६. हाय प्रयोजन सिदि या जीविका मादि के लिये चारो मोर घूमना। या लकड़ी से मारकर 'खट खट' शब्द करना। खटखटाना। होन दशा में भटकना । इपर पर मारा मारा फिरना। दुर्दचा- ठाकवा-सा पुं० [हिं० ठोकना] मीठा मिले हुए माटे की मोटी प्रस्त होकर घूमना । दुर्गति रहना सहना । जैसे,-पदि पूरी। गूना। यह कुछ काम पचा नहीं सोखेगा वो पापही ठोकर सायगा। ठॉग-सज्ञाखी० [सं• तुए] १ चचु। पोच । २. चोप की मार। ठोकर खाता फिरना-इधर उघर मारा मारा फिरना। उंगली झुकाकर पीछे की मोर निकली हुई नोंक से ठोकर लगना किसी भूल या चूफ के कारण दुख या हानि मारने की क्रिया। उँगली की ठोकर खुदका । पहुँचमा टोकर लेना-ठोकर खाना। मदफना । चलने में ठाँगना-क्रि० स० [हिं० ठोग] १ चोच मारना। २ उँगली से पैर का ककर पत्पर मादि फिसी कड़ी वस्तु से जोर से टक- राना । ठेस खाना । जैसे, घोडे का ठोकर लेना। ठोकर मारना । खुदका मारना। २. रास्ते में पड़ावमा उभरा पत्थर वा ककड़ जिसमें पैर रुककर ठौंगा-धक पु० [हिं० ठोंग] पतले कागज का नोकदार या गोसा चोट खाता है। एक पात्र जिसमे दुकानदार सौदा देते हैं। ठाँचना-कि० स० [हिं० ठौंग] दे० 'ठोगना'। मुहा०-ठोकर जाऊ कदम में-ठोकर कमाते हुए। रास्ते का ठौंठ-सहा स्त्री० [सं० तुएड] चोंच का अगला सिरा । ठोर । उ०- ककड़ पत्थर बचाते हुए। ठोकर पहाड़िया कदम मेम्-घसा हमा पत्पर या कका पचाते हुए। चाटुकारी का रोचक जाल फैलाकर उनको रणकुसल कठफोरे विशेष-इन दोनों मुहावरोका प्रयोग पालकी ढोते समय पालको की सी ठोठ को वाँध दूं।-वीणा, (विज्ञापन)। , ठोठा- सशा पुं० [देश॰] एक कोशा जो ज्वार, बाजरा भौर ईस को ढोनेवाले कहार करते हैं। ३. वह कमा मापात जो पैर या जूते के पजे से किया जाय । जोर हानि पहुंचाता है। ठोठी-सहा स्त्री० [सं० तुएट] १. चने के दाने का कोश । २ पोस्ते का पक्का वो पैर मगले माग से मारा जाय । जैसे,-एक को ढोढी। ठोकर गे होश ठीक हो जायेंगे । ठोर---प्रव्य [ देश या हि. ठौर ] एफ शब्द जो पूरवी हिंदी में कि.प्र०-मारना ।—लगाना । सल्याचाचक शब्दो मागे लगाया जाता है। सख्या । मदद। महा०-ठोकर देना या जड़ना = ठोकर मारना । ठोकर खाना- वैसे, एक ठो, दो ठो। इस पथ के बोधक अन्य शम्द गो, पैर का मापात सहना। लात सहना। पैर के माधाव से माधि भी पलते है। जैसे, एक ठे, गो मादि । इधर उधर लुढ़कना। ठोकरी पर पड़ा रहना=किसी की ठोकपा-सस पु. [ देश० ] माम की गुठली के ऊपर का कड़ा छिलका सेवा करके भोर मार गाली खाकर निर्वाह करना । मपमानित ___ या मावरण। होकर रहना। ठोकल.-[ हिं.] ६० 'ठोंक'। उ०-सुदर मसकातिदार सौं गुरु ४ कडा भाषाद । भक्का । ५. पूते का भगला भाग। ६. कुश्ती मपि का पागि । सदगुरु पकमक ठोक तुरत उठ कफ का एक पंच जो उस समय किया जाता है जब विपक्षी (जोड़) जागि।-सुदर०६०, भा०, २, ५०६७१। सड़े धरे भीतर घुसता है।