पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२८३

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ठोरो विशेष-सय विपनी का हाय बगल में दवाकर दूसरे हाय की ठोरो- स हि० टोर कोतह का वह स्थान यहाँ से रस तरफ से उसकी गरदन पर पपेरा देते हैं। पौर जिपर का पयवा ठेस टपकार गिरता है। टोंटी। 30-उकार कर हाप रगत में दबाया रहता है व्यर ही की टांग से धक्का जाती, मराटामा हटाकर मला रस लेती और खापी टाडा कोन्हू की टोरी मे गा देवी -नर्द०,१. १। टोकरी-सदी [ देश ] वह गाय जिसे बच्चा दिए कई महीने ठोलना -कि. म. [हि नाना साना । घलाना। 30- हो चुके । इलका पूध गाढ़ा और मोठा होता है। कना दामी होई कार, निरखई, पाय पसारसु टोउसु पाई।बी. गाय । रामो,पू. २ ठोस्वा-मन दुदिकवा' । ठोला-- दन] रेशम करनेवात कर एक मौजार को ठोका-रंग के. स्त्रियों के हाय का एक गहना जो मकी दी चौकोर छोटी पटी (एक बिना संबी एक विधा धियों के साथ पहना जाता है। एक प्रकार को पटेली। . पौडी) के रूप में होता है। इसमें लकड़ी का एक मूटामगा ठोठ- दिहि जिसमें कुछ टस्य न हो। २. जड़। रहता है जिसमें मूपा डालने के लिये दो देव हो । मूर्व! मारी। ठोला'- सा पु० [२०][श्री. ढोली ] मनुष्य । भादमी। ठोट-वि० [हिं० टोट] मूछ । जड़। व्यवहार यून्य । द.-(क) (उपग्दाई)। न.---हन ठोली सायर रस जाना |--पद०, दामादर भाव का मीठा लागै मोठ। दिन प्रादर पवन पु० २१२॥ बुरा दीमा वाला -रानः धर्म०, १० २०११ (ख) ठोवदी- पुं० [सं. त्यान, प्रा. ठाण; अप. ठार; रा. उपनामेता ठोठ गुरु चुगलन की सेण ।-यांकी प्र०, ठावट, ठोवरी ]२०ठोर' । उ०---सिंधु परम सत जोमणे भा० २, पृ० ४८ लिविया योजनियाह। सुरहुर लोट महरिका, भीनी ठोठरा-वि० [हिं० ] [वि. श्री. ठोठरी] निसी जमी या ठोडियाह 1-ढोला०, पृ० १६० । सोहरत निक्ल जाने से लानी पाइमा । सातो। ठोस-वि० [हि.सजिसके नीदर सासो स्थान न हो। जो पोपजा। उ०-सात द्यौम एहि विपि लोबान व मीवर में खानी न हो। जो पोता या सोसलान हो। जो राति दिनह टवाइ के करे टोटरे दना-लाल (मद०): भीतर से भरापूरा हो। वैसे, ठोस का। उ6-यह मति टोडानश पु० [हिं. ठौर ] स्यान। जगह। उ०-क) भाप ठोस सोने की है।-(कन्द०)। टोटले उमा न माया फिरता और अनेक फिरे।-रघु० रू., विशेष-सपौर 'ठोस में प्रमर यह है कि 'स' का प्रयोग पृ०२५१ 1 (स) दो ठोस जैपुर जोधपुर ने जोर धी -- या तो बहार केस की रिना मोटाई की वस्तुणों का घनत्व शिसर०, पु०५२। भूचित करने के लिये प्रयवा गीले पा मुलायम विरुद्ध ठोड़ी-समस्त्री० म० तुए चेहरे में पोट के नीचे कागजी कपन का भाव प्रकट करने के लिये होता है। पैसे, ठम कुछ मोनाई लिये उभरा होता है। तुष्टी चिन । दारी। बुनावट, 6 पश, गीली मिट्टी का मुखकर टस होना । पोर, महा०-ठोदी पर हाप धरकर बैटना-पिता मे मन होकर 'ठोस' शब्द का प्रयोग 'पोले' या 'शोखले के विरुद्ध नाव प्रकट बैठना। ठोड़ी पकड़ना, ठोठी में हाप देना(१) पार करने के लिये पत. सगाई, घौडाई, मोटाईवासी (धनारमक) करना। (२) किसी पिड़े हए मादमी को स्नेह का भाव वस्तुओं के सबद में होता है। दिवाकर मनाना। मीठी बातों से क्रोध शांत करना। ठोदी २दा मजबूत। वारा-सुंदरी स्त्री को टट्टी पर का दिल या गोदना। ठोस-ममा [देश वसा कुदन । गह। उ०-क हरि ठोदी-समासी-हि.] दे.'ठोड़ी'। ३०-है मुत मति यदि कदरसन दिनु मरियत पर वजारे ठोसनि ।--मर मागरी, कहा सरद को पंद। पै हित मान समान किय तुव ठोढ़ी को बुद!-मु० रामक, १० ३४८1 ठोसा-ग्रन पु० [देश॰] अंगूठा । (दाप का) टेंगा। ठोपा-उदा . [ मनु० टर टप् ] विदु। महा-ठोसा दिखाना-पंगूठा दिखाना। इनकार करना । ठोसे यो०-ठोप ठौर, ठोपे ठोप % इंद। 30-यो स्पोनरुदै 'में बनाते। गे से। कुछ परवाद नहीं। होइ सने संतन को वानी। ठोपे ठोप प्रपाय ज्ञान के सागर ठोहना -क्रि० स० [हिं० टोहुना, ना ] टिकाना दना । पानी-पलटु०, पृ०६१। पठा सगाना। योजना । 30-प्रायो कहाँ पर ही काहि ठोर- पु. [देश] एक प्रकार मिठाई या पकवान जो मैदे की को हो । ग्याँ अपनो पद पा सो ठोड़ों -राव (सन्द०)। मोवनदार बाईलोई को पो में तलने और पानी में ठोहरी-वन. [हि. निठोहर प्रकार गिरानो।मगी। पागने से बनता है। बस्लम संप्रदाय के मदिरा ने इसका ठोका-5 . [ ध्यानक, हि.ata+r (प.)यह स्थान भोग प्राय. लगता है। यहाँ सिवाई के लिये सातार, मढ़ई प्राधिका पानी दोरो से ठोस-मश० [सं०एर चाँच । चषु । उ०--टिश दूध देव कपर उतीवर मिराते हैं। देवा। नाठिोर पसाव गॉो।-संदरिया, पु. १२७। ठोड़ा-सा . वि.] दे.'ठोर'। 3-पित्ती पोर,