पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

टोनि मन दीयो। किरा हो टोढ़ मुहागन कोमो।-रा.६० ठोनि सोहि व्यनि'। ठौर -श. मस्पान, प्रा०वान, हि टीवर (प्रत्य०), पदा मान । ठिकाना! गौ०-ठोर ठिकाना = (१) रहने का स्पान। (२) पता ठिकाना। गुहा.-टोर गुठौर-(1) पन्छी जगह, दुरी जगह । बुरे टिकाने । मनुपयुक्त स्थान पर बैसे-(क) इस प्रकार ठौर ठोर को पीजन उन लिया करो। (स) तुम परपर फेंकते हाजियो को ठोर झुठोर लग जाय तो? (२) बेमोका । बिना पषर। ठोरन मानासमीप न माना। पास न टकना। उ.--हरि को मजे सो हरिपद पावै। जन्म मरन तेहि ठौर न मा -गर (पद)ोर न रहना - स्पान या जगह न मिसना । निरामय होना । उ.--कवीर ते नर मध, गुरु को कहते पौर हरि गुरु पोर है, गुरु नहिं ठगेर। फीर सा० सं०, भा०,०४। और मारना = तुरंत बप कर देना । उ...--तव मनुध्यन ने वाको ठोर मारयो । तापा वाको सीस गाम के द्वार 4 वाध्यो। -दो सौ बावन०, मा. २,०६६ । ठौर रखना % उसी जगह मारकर गिरा देना। मार डालना । ठौर रहना- (१) जहाँ का तहाँ रह जाना। पड रहना । (२) मर जाना। किसी के ठोर-किसी के स्थानापन्न । किसी के तुल्य । उ-किवले के ठौर बाप साद. शाह साहजही तातो कैद कियो मानो मक्के भागि लाई है।- भूषण (शब्द०) २. मौका। घात विसर। 30--ठोर पाय पवनपुत्र हारि मुद्रिका दई । के यव (शब्द०)।। र--सरा पुं० [हिं० ठौर] स्याना ठाव । ठोर। उ०-सुदर भटक्यौ यहत दिन मव तू ठोहर माप फेरिन कबहुँ भाइहें यह मौसर यह डाव । सुदर. , मा० २. ५००००। व्यापा-वि० [ देश ] उपद्रवी । शरारती । उतपाती। वजनों में तेरहयो व्यजन मोर वर्ग का तीसरा वणं। इसका जोडा ऊंटो मोर हाथियों पर चलता था और उसके साप उम्पारण पाम्पतर प्रयत्न द्वारा तया जिह्वामध्य को मुर्घा मे झडा भी रहता था। सफरने से होता है। क्रि० प्र०-बजना।-बजाना ।-पिटना।-पीटना। संक-मा.[० दंध या दंशो] १. भिड, विटु, मधुमक्खी मुहा०-हके की चोट कहना मुल्लम खुल्ला कहना। सबको मादि कोड़ों के पोछे का बदरीला फोटा जिसे वे क्रोध में पा सुनाकर फहना । वेषड़क कहना। ढका डालना%3D () अपने पचाप लिये जीवो घरीर में फंसाने है। उ.- मुरगे से मुरगे को सहाना। (२) मुरंगे का घोच मारना। उनटिया सुर पद घेदन किया, पोखिया द्र वहाँ कसा उंका देना या पीटना = (१) दे० 'डका वजाना' । (२) मुनादी मारो।-रामा पर्म, पृ० ३१६ । करना। दुग्गी फेरना । डोटो फेरना । उका बजाना-हल्ला विरोप-मित, मघुमक्ती मादि उड़नेवाले कीड़ों के पीछे जो करके सबको सुनाना । सबपर प्रकट करना । प्रसिद्ध करना । कोटा होता है, यह एक नली के रूप में होता है जिससे घोपित करना। किसी का का बजना किसी का शासन होकर नहर की गोठ से जहर निकलकर घुभे हुए स्पान या अधिकार होना । किसी को चलती होना। उ.--सजे में प्रवेश करता है। पद फोटा किंवल मादा फीडों को पभी साकेत, बजे हो, जय का का। रहन जाय न कहीं होता है। किसी रावण की नका।-साकेत, पृ०४०२। मि०प्र०-मारना। यौ०-डेका निशान = राजामों को सवारी में भागे बजनेवाला २. सनकी श्रीम। निय। ३. टफ मारा हमा स्थान। बक डका पोर ध्वजा। का पाय। डकार--सबा पुं० [म. डाक जहाजों के ठहरने का पक्का पाट । g-ajat, प्रा. उपक (= वायविशेष) अथवा मनु.] समरिगर्हिगी। .-पाजीगर ने उक वाया। सर इंकिनि-सा बो.[सं० डाकिनी दे० 'किनी'। छोग तमारे पापा 1-कबीर म०पू० ३३८ ।। डंकिनी बदोवस्त- '० [भ. दवामी+फारदोबस्त ] स्थायी कार-[वि. +फादार] रवासा। कोटेदार । व्यवस्था । ३० दवामी बदोबस्त। संफना--कि . मनु.] पद करना। गरजना। भयानक इंको-सानो [दरा] १. कूरती का एक च । २. मालखमकी इन्दकरता। उ.-पनाए हाकिय तोपरकिय पुनि पाकिम एक कसरत। -गुल्न (चन्द०)। हेको-वि० [हिं० ] उकवाता। रंका'-vat.[ TET ( दुमिका खब)] एक प्रकार का इंफुर-स.[हिं० टंका ] एक प्रकार का पुराना बाजा त्रिससे बामा यो बारपाकार के तारपा नोहे के बरतनों पर तास रिया जाता था। परामार वारा यावा है। पहुई लड़ाई में 2 का ख-संश [देश पलाश । ठख ।