पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२८५

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ख १६३१ हंसलर-संथा पुं० [हिं० इंक] विष का दाँत । 3०-ये देखो ममता महा०-डड पड़ना=नुकसान होना । व्ययं व्यय होना । जैसे,- नागन माई रे भाई माई। सिनें तो इख मारा रे मारा। कुछ काम भी नहीं हुआ, इतना रुपया डंड पड़ा। घड़ी। -बविखनी०, पृ०५८।। दड । दे० 'दंड'। उ.-डड एक माया फरु मोरें। जोगिमि बंग-सा पुं० [देश॰] अघपफा छुहारा । होउ'चलों संग तोरें- पदमावत, पु. ६५८ डगम-संघा पुं० [देश॰] वृक्ष विशेष । एक पेड का नाम । डंडक -सज्ञा पुं० सं० दएडक ] दे० 'दंडक'-- 3०-परे माइ . विशेष-यह पेड बहुत बड़ा होता है। हर साल जाड़े के दिनों में पद बनखंड माहो । एक मारन बींझ खनाहाँ।-पक्मावत, पु० १३२। । इसके पत्ते झड जाते हैं। इसकी लकडी भीतर से भूरी, पहुव कही भौर मजबूत निकलती है । दारजिलिंग के मासपास तया डंकारन-सा पुं० [ सं० घण्डकारण्य २० दंडकारण्य'। बसिया की पहाड़ियों में यह अधिक मिलता है। डडण -वि० स०दएहन] दंड देनेवाला। उ०-अरि डंडरा इंगर-सवा पुं० [देश॰] चौपाया (जैसे, गाय, भैंस)। उ.- नव खर प्रवाहो।-रा० रू०, पृ. १२१ मानुष हो कोइ मुदा नहि, मुवा सो डगर धूर ।-कधीर म०, डंडताल-सधा पुं० [सं० दण्ड + ताल ] एक कार का पाषा पृ० ३६४। जिसमें लवे चिमटे में मजीर जड़े रहते हैं। उ०-झांझ मजीरा गर -वि० दे० 'डोगर'। उडताल फरताच धजावत !-मघन०, भा० १, पृ. २४ ।। गवर-सहा [.प्ठेगू+से ज्वर ] एक प्रकार का ज्वर डंडधारी-सहा पुं० [सं० दण्ड+हिं० घारी] इंटी। संन्यासी । जिसमे शरीर पर उठता है और उसपर चकते पड़ जाते उ.- स्वामी कि तुम्हे ब्रह्मा फि ब्रह्मचारी । कि तुम्हें बांगण है । इसे लपड़ा ज्वर भी कहते हैं।। पुस्तफ कि बहधारी।-पोरख०, पू० २२७ । गोरी--संघा देशी डंगा (= यष्टि)+हि. भोरी (प्रत्य॰)] एनल-वि० [सं० दण्डन, प्रा० उंटण] दड देनेवाला। वह जो ४हीं की। यष्टि । छडो। उ०—हथ रंगोरी पग खिसहि गोषी दर । उ०-पुनि गुज्जर पलिवट लोह पनडडनि डंडन। देहि नीमारगु।--प्राण, पृ० २५.. . ---पृ० रा०, १३॥३०॥ मासमा पEO gurदे० 'उंहास--साले नगारपी ने ठीक बनाकु-वि० स० [सं० घरजन, प्रा० ईठण 1 दंड देता। सामने कपाल पर ही डटा चलाया था।-मैला०, पृ० ७५। जुरमाना लगाना। दहित करना । उ०-उंटयौ (अंडयू) डंठ -मंशा पुं० [सं० वएट ] छोटे पौधों की पेडी भोर शाखा । साह पाहावदी पट्ट पहस हेवर सुपर ।-पु. रा., २०६९। नरम छालभाडों और पौधों का पढ़ और टहनी। जैसे, डढपल--सहा पुं० [हिं० ४४+पेलनात खूप उट करनेवाला। ज्वार का डठल, मूली का डठल । फसरती पहलवान । २ बलवान या तगड़ा पादमी। डंठी-मश खो० [सं०दएट ] उठल । डंटल-सचा सी० [देश॰] एक प्रकार की मछली। डंड-सधा पुं० [सं० घएड, प्रा० 31] १ ग्ला। सौटा। उ. विशेष--यह वगाल मौर घरमा में पाई जाती है। यह मछली कथा पहिरि डर कर गहा । सिद्ध होइ कहें गोरख कहा- पानी पर अपनी माखें निकालकर तैरती है। इसकी जायसी प्र० (गुत), पृ. २०५। २. घाइद। पाई। जवाई १८च होती है। समारोट। 30-दरिया चढिया गगन फो, मेक डंडपतg-या पुं० [सं० वएण्वत् 1 दे० 'वडवत्'। १०--() चलॅग्या उर । सुख उपषा साई मिला, भेटा ब्रह्म भखट । सोकै तप कर उखवत पूजू मौरन देवा। -कवीर ४०, ---दरिया० वानी, पृ.१५४ एक प्रकार का व्यायाम पो पाय, पृ०७२। (ख) रंगको हाड' पीछह ताई। माप हाथ पैर पजों के घर पृथ्वी पर पट पौर सीधा पड़कर स्वत कीन्छ सवाई।-जायसी (शब्द॰) । किया जाता है। हाथ पैर के पजों के बल पर पड़कर को डंडा--पक्षा[सं० दरार] १ लकड़ी या बाँसका सीधा संवा पावेवाची कसरत । टुकड़ा । लघी सीधी नकदी या वास जिसे हाथ में से सफें। कि० प्र०-करना। पोटा। मोटी छड़ी। लाठी। यौ०-स्पेल । वैठक - भौर बैठक नाम की कसरत। महा---उठा खाना- डडे की मार सहना। इंशा चलाना -संसे मुहा.-हह पेलना-खूब ठंड करमा ! से प्रहार करना। दठे खेलमा= सडरों को बढ़ाई का खेल ५. दर । सषा। ६ पर्थदध। जुरमाना। यह रुपया जो किसी खेलना। (भादों पदी चौय को पाठशालामों के लड़के यह खेष पपराध या हानि के बदले में दिया जाय। खेलने निकलते है)। उप पखाना-ठे से प्रहार करना। क्रि०प्र०-देना ।-लगता -लगाना । । । उडे देना- विवाह सघंध होने के पीछे भादों बदी चौथ को मुहा०--उंड डालना-प्रदड नियत करना। जुरमाना करना। वेटीवाले का बेटेवाले के यहाँ चाँदीके पर पढ़े हए कलम, सड भरना-हानि के बदले में धन देना। जुरमाना या दवास पादिबने की रीति करना। राजा फिरना= हरखाना देना। उ०-भूमि पास जो करहिं भरहि तो उड मारा मारा फिरना। सेव करि ।-पु. रा०, १३ । ३ डोस । डडवारा। वह कम ऊंची दीवार पो किसी स्थान ७. घाटा । हानि । नुकसान । को घेरने लिये उठाई जाय । पारदीवारी।