पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२८६

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१६३२ कोरो क्रि०प्र०-उठाना। एक सवारी जो ऊँचे पहाड़ों पर चलती है। झप्पान । ६. महा०--डहा खींचना - चारदीवारी उठाना । लिगेंद्रिय । १०. दर धारण करनेवाला सन्यासी। उडा@+-सक पु० [देशी उडय (-रथ्या)1 मार्ग। लीक डंडो-वि० [सं० द्वन्द ] झगड़ा लगानेवाला । चुगलखोर। राह। उ.-बाग बृच्छ बेली पर महा। सतगुरु सुरति डंठीमार-वि० [हिं०] टेनी मारनेवाला । सौदा कम तौलनेवाला। बता रहा।-घट०, पृ० २४७ । डडर-सभा पु. [प्रा. दुल्ल ] दे० 'उडूल' 1 10-अग्नि ज्वाल डंटाकरन -सचा पुं० [सं० दण्डकारण्य ] दबक वन । B0- किन तन उठत, किन तन बरसे मेह । चक्र पवन डहर के केतन परेउ पाइ सब बन बँड माहा। रसाकरन नीम बन जाहाँ । कंकर खेह ।-पु. रा०, ६०५५। जायसी (शब्द.) डंडूल-सपा पुं० [ प्रा. डल्ल ( = घूमना, चक्कर लगाना)] वारया- डंडाकुंडा-सा पुं० [हिं० हंडा+कुठा] वल वैभव । सत्ता । प्रभाव । चक्रावर 10-कर सेती माला जपें, ह्रिदै बहे डडून । उ०-उनके पाँख मूदते सास भी नही बीतेगा कि अंगरेजों पग तो पासा मैं पल्या, भाजण लागी सूल |--कबीर प्र०, का उहाकुग उठ जाएगा।-किन्नर०, पृ. २३ । पु० ४५। डंडाठोली-समस्त्री० [हिं० डहायोली ] सडको का एक खेल - डंडौत-सशा . [ सं० १ ण्ड, प्रा० एड+० वद. हि. मौत ] दे० 'दडवत् । 30-पलटु उन्हें उडौत करो, वोही साहब मेरा जिसमें ने किसी लड़के को दो माडे डडो पर बैठाकर इधर उधर फिराते हैं। है पी।-पलटू, पु. ५०। डेबर-सापुं० [सं०] १.मायोजन। भाडंबर। ढकोसला । घूम- क्रि० प्र०करना ।-खेलना। घाम ।२ विस्तार। 30-डि रेन उबर पमर, दिष्यो सेन डंडापारी -सका पुं० [सं० दएड+हि० घारी] दडी । सन्यासी। चहुमान । -पु० रा०, ९।१३० । ३. समूह। ३०--कुवा उ.-मोनी उदासी डडापारी। -प्राण., पृ० ६२ । चाहियूहिबर, पाही वागू पाहवर।-रघु० रु., पु. उंटानाच-सबा पुं० [हिं० डढा+नाच] यह नृत्य जिसमें उठा २३७ । ४ विलास । ५. एक प्रकार का पंदोवा । पदरदत । लड़ाते हुए लोग नाचते हैं। उ०-डहा नाय कुछ प्रमों में यौ---मेघडवर -बड़ा शामियाना । दलबादल । भवर स्वर- गुजरात देश के गरवा नृत्य' सहश होता है। मुख्य प्रतर वह खाली बो सध्या के समय माकाश में दिखाई पड़ती यही है कि डहा नाष पुरुषों का है और गरबा लियों का |--- है। उ०-विनसत वार न लागई, पोछे जन की प्रीति । मदर -शुक्ल पभि० ० (साहि.), पृ० १३९ । उबर सांझ के ज्यो दास की भीति ।-स. सप्तक, पृ. ३१२॥ डंडाबेसी-सका श्री० [हिं०] देड़ी और उसके साथ लगा लोहे का डंबल -- पुं० [म. टवेल ] दे० 'डवेल'। रहा जिससे कैदी न भाग सके। डवेल-सहा पुं० [पं०] १. हाथ में लेकर कसरत करने की लोहै या डंडारन -सा पुं० [सं० दणकारएय, प्रा० डडारएण]दरकारएय'। लकडी को गुल्ली जिसके दोनो सिरे लटू की तरह गोष्ट होते इंहाल-सझा पुं० [हिं० डहा ] नगाड़ा । दुदुभि । डका। हैं। इसे हाथ में लेकर जानते हैं। यह धावश्यकतानुसार भारी डदिया-सका मी० [हिं० डडी] १ दे० 'डांडी-१६ । २. और हलकी होती है। कुछ उबेलों मे स्प्रिगें भी लगी रहती है। २. वह कसरत को इस प्रकार के लटु से की जाती है। डंडो-सबा खी• [हिं. उहा] १ छोटी देवी पतली लकड़ी। २ . क्रि०प्र०-करना। हाम मे लेकर व्यवहार की जानेवाली वस्तु का यह लषा पतला डभ - डंभ@..-सहा पुं० [सं० दम्भ, प्रा. डम ] दे० 'टिम'। उ०-भ -सचा पु० । स० दम्भ, प्रा• हम J० गरम भाव जो मुट्ठी में लिया या पकड़ा जाता है। दस्ता। हत्था । मनै मत मानियो सत कहीं परमारष जानो।-कवीर १०, मुठिया । जैसे, छाते की रही। ३ तराजू की बह सोधो लकडी मा०४, पृ० २४॥ जिसमें रस्सियाँ लटका लटकाकर पलड़े बांधे जाते हैं। दी। उस काकर पहना जानेही डंस-या पुं० [सं० दण, प्रा. डस ] एक प्रकार का बड़ा मच्छर उ.- काहे को रहरी काहे का पलरा काहे को मारी टेनिया।- जो बहुत काटता है मौर जिसका माकार बसे मक्खी से कबीर श०, भा॰ २, पृ० १५॥ मिलता जुलता होता है। हस । वनमशक । जगली मच्छर । मुहा०-सी मारना = सौदा देने में पालाकी से कम सोलना। उ०-देव विषय सुख पालसा इस मसकादि सतु झिल्ली रूपादि सम सर्प स्वामी।-तुलसी (शब्द॰) २ वह स्थान जहाँ ४ पहलमा उठल जिसमें पत्ता, फूल या फष लगा होता है। उफ चुमा हो या साप यादि विषले कोहो का दांव चुना हो। नाल । वैसे, कमल की रसो। पान की उडी। उ.---कमलों डॅफरना-कि०म० [हि. डकार ] दे० 'इकारना'। के पत्ते जीर्ण होकर झड़ गए हैं, फलो की करिणका पौरसर भी गिर गई है, पाले के कारण उसमें वीमान शेष रह गई डकारना-कि०म० [हिं० उकारना उकार लेना। डकार पाना। है।-हिं० प्र. चि., पु.१०। ५ फल के नीचे का लगा डकियाना-क्रि० स० [हिं० डक+पाना (प्रत्य॰)] डंक मारना। पतला भाग । जैसे, हरसिंगार की डहो। ६ हरसिंगार का डकोला[--वि० [हिं० डंक+ईला (प्रत्य॰)] डकवाला। फूल । ७ भारसी नाम के गहने का वह छल्ला जो उंगली मे ढकौरो-सचा मी० [हिं० +ोरी (प्रत्य॰)] भिड़। । पड़ा रहता है। ६. हरे में बंधी हुई कोली के प्राकार की तवैया । हड्डा।