पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२९४

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सरासरी १५४० धेरत कटक काम को तब जिय होत डराडरि ।-स्वामी डल'...सचा पु० [हिं० डला(= टुकड़ा)] टुकडा। खंड। हरिदास (शब्द०)। मुहा०--डल का उल - देर का ढेर । बहुत सा। डराडरी-सा श्री [हिं० डर] डर । भग । प्राशका । डल-सदा श्री. [ सं० तल्स ] १. झोल । २. काश्मीर को एक खरान-वि० [हिं० डरावना] भयदायक ! भयावना । भयफर । उ०- मोल । उ.--धनि सागर सस तूल, विमल विस्तृत डल उहकत डकडाइन डरान । गहकत गिद्धि सिद्धरिय पाच --- बूसर -काश्मीर, पृ०१॥ पु० रा०, १।६६१। डलाई-सका सी० [हिं. उला ] दे० 'उनिया'। डराना--क्रि० स० [हिं० डरना] डर विसाना । भयभीत करना। डलक-सदा पुं० [सं०] दौरा। उला । बौस पावि की बनी गरी खौफ दिलाना। उलिया [को०] । संयो.क्रि०-देना उतना-कि० म०० टालना ] गला जाना । पाना । जैसे, सरानी--वि० [हिं० हरना1१ खौफ पैदा करने वाली। भयावनी। मजारजना। २ डरी हुई। भयभीत । उ०---कोने यो डरानी भावसिंह उलरी-सपा सी० [है. उलिया ] छोटो डलिया। मुंज की बनी ज के हर मैं 1-मति , पु०४१ । हुई छोटी पिटारी। उ.--नए बसन पाभूपन सजि हसरी डरापना--फि० स० [हिर किसी को हरा देना। मममीत गुड़िया बे।-प्रमपन०, भा., पृ०२६ । करना। उलवा-प पु• [ . ] 'उमा'। डरारा -वि० [हि. डोरा+पार (प्रत्य॰)] (alt) जिसमें डलवाना--कि० स० [हिं० डालवा का रूप] हालने का काम होरे या हमको रसाम रेखा हो। मस्त (पांच)। १०-पीन कराना । हासने देना। मधुर पंकज मृग हारे। निरखत मोघम बुगम उरारे।- उला'-सचा पु० [सं० दल ] [ श्री. प्रल्पाली माधवानय०, पृ० १६० । ] १. दुका । ढोका। बर। 30--रीठ पढ़े पास पला, पर बह ग्ला डरावना-वि० [हि० हर + पापना (प्रत्य०) [वि० सी० डरावनी] उधेड़।-रा०००,१०२६.। जिससे डर लगे । बिससे भय उत्पन्न हो। भयानफ । थ्यकर । उ०-फारी घटा हरावनी पाई। पापिनि सोपिनि सी परि विशेष साधारणत इसका प्रयोग नमक, मिस्री मादि के लिये छाई।-नद० प्र०, पु० १६१ प्रधिक होता है। वैसे, नमक का डला, मिनीको ली। २ लिगेंद्रिय ।-( बाजारू)। उरावा- सच। पुं० [हिं० डराना] १. वह लड़ी जो फलदार पेड़ों में चिडिया बढ़ाने के लिये बँधी रहती है। इसमें एक लवी रस्मी 50 डला- सश पुं० [सं० डलक] [40 पल्पा० उलिपा] बांस, त मादि बंधी होती है जिसे खीचने से खट खट शब्द होता है। खट- की पतली फद्वियों या कमचियों को गांछकर बनाया हुमा खुटा । घड़का ।।२ डराने की दृष्टि से कही बात । बरतन । टोकरा। दौरा। 10-इला मरि हो साल । कसै के उठाऊँ । पठवौ बात धाक लै भावें ।--नंद० ग्रं॰, पृ० ३६० । उराहुका-वि० [हिं० डरना ] डरपोक । यो०--उखा खुलवाई - बनियो के यहाँ विवाह की एक रीठि डरिया-सधा स्त्री. [हिं० हार+इया (प्रत्य॰)] दे० 'बार' या जिसमें दुल्हा दुहिन के यहाँ एक टोकरा साठा है। 'हाल'। उ०-सबके राखि लेह भगवान । हम धनाथ मैठे द्रुम सरिया पारधि साधे वान !- सूर (शब्द०)। डलिया--रामा श्री० [हिं० सा ] छोटा डला। छोटा टोकरा। दौरी। उ०-प्रेम के परवर घरो डलिया में, मादि की मादी उरिया-सवा खी० [हिं० हलिया] दे० 'डलिया। उ०--सीसनि धरै लाई। ज्ञान के गराइ करि राखो गगन मे हाट लगाई। छाक की डरियनि । त कति गुपाल भूख की बरियनि ।- धनानद, पृ० ३१७ । ' कयौर प०, मा० ३, पृ० ४८ । डरी-सशा स्त्री० [हिं० डली . 'हली। उ०--परतीति डलो-सिधा सी० [हिं० डला] १. छोटा टुकडा। छोटा देसा। कीनी अनीति महा, विष दीनो दिखाय मिठास सरो।- खुर । जैसे, मिश्री की डली, नमक की डली । २. सुपारी । धनानद, पृ०८१। डली--सा श्री. [ हिना ] दे० 'डलिया। 10---चुने डली में खरीना-वि० [हिं० हार] हारवाला । यातायुक्त । टहनीवार। सुपरे, बड़े बड़े भरे भरे ।-बेला, पु०१६ । •~होदन पचीले तक टूटत हरीले, शैल होत है फटीने शेष डल्लक-सशा पुं० [सं०] इला । दोरा। फन धमकीले हैं।--रघुराज (पाद)। सल्ला- सक्षा पुं० [सं० हलक ] दौरा। डरीला--वि० [हिं० र + ईला ( प्रत्य.)] दे० 'रेला। डवरुधा-सरा पुं० [सं०मरु ] दे."डेवरुमा'। हरेरना-क्रि० स० [हि घरेला ] दे० 'दरेरना'। उ०-भुमा उबरू-- पु० [सं० हम ] दे० 'डमरू' । जोरि के तोर मुक्की डरेरे।-५० रासो, पृ० ४५ ।। उवरुपा-सपा पुं० [सं० मा दे० 'मरू'। डरैलाई-वि० [हिं० डर ] डरावना। भयानक खौफना3०- डवाल-सपुं० [हिं० डवा ] दे० 'डिम्बा'। उ०--विष को विटरन अडा परत नाय उच्चरत डरैला। -श्रीधर पाठक डवा है के उदेग को मेवा है, कल पलफोन वाहै भयवा है। (शब्द०)। चक्र वात को।--घनानद,.पु. ८०।