पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२९५

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उपित्य डड्डहाना वित्य-संश पुं० [सं०] काठ का बना हुमा मृग । लेना । दहाड मारना। गरजना । 3...--इक दिन कंस पर इस-सा श्री विश•] १. एक प्रकार की शराब । रम । २ तराजू इक प्रेरा। मादा घटि वपु दिरपम केरा। दहकठ फिरत को डोरी जिसमें पलड़े बंधे रहते हैं। जोती। ३. कपडे की उडावत धारा । परि सींग तुरते प्रभु मारा। -विधाम पान का छोर जिसमें ताने और पाने के पूरे तागे नहीं बुने (शब्द०)। रहते । वीर। बहकना -क्रि० म. [देश॰] बिरानाबिटकना । फेलना । डसा -पंश पुं० [सं० दशन, प्रा. डसण] दांत । दान । उ०--हीर .-पंदन कपूर जल धौत कलधौत घाम उज्जल जुन्हाई डखण विद्रम प्रघर, मारू भृकुटि मयंक 1-ढोला०, दू०४५४। हहही रहकत है।-देव (शब्द०)। उसन-संझा खो० [सं० वंशन ] १. इसने की क्रिया या भाव। बहकलाय-वि० [१] सोलह । १६।-(दलाल)। २. डसने या काटने का ढंग। उ०-यह अपराध बड़ो उन डहकाना-फिस[सं० बस (-खोना), हि. डाका ] खोना कोनो । तक्षक डसन साप मैं दोनोसूर (शब्द०)। गॅवाना। नए करना। 30-~वाद विवाद यज्ञ प्रत साधे। डसना-कि०स० [सं० दंशन ] १. किसी ऐसे कोडे का दाँत से फतहूँ जाय जन्म हकावै। सूर (नन्द०)। काटना जिसके दांत में विष हो । नप पादि जहरीले कीड़ों डेहकानार-क्रि० म. किसी के धोखे मे पाकर पपने पास का कुछ का काटना। उ०--मरे भरे कान्ह कि रभसि दोरि। मदन खोना। किसी के छल के कारण हानि सहना । पोखे में प्राना भुजंग उसु बालहि तोरि ।-विद्यापति, पृ० ३६६ । २ उंक वंचित या प्रतारित होना । ठगा जाना । जैसे, इस सौदे में तुम मारना। डहका गए। ७०-(क) इनके कहे कोन डहकावै, ऐसी कौन संयो० कि०--लेना। मजानी?-सुर (पान्द०)। (ख) रहके है उहकाइवो भलो डसना-समा पुहि०1३. 'डासन', 'दसना'। ३०-सुंदर जो करिय बिचार -तुलसी (शब्द॰) । सुमनन सेज विखाई। परगज मरगजि सनि डसाई।-नंद संयो० कि० जाना। प्र०, पृ० १४१। बहकाना-क्रि० स० १. ठगना। धोखे से किसी की कोई वस्तु ले उसनी-वि० [सं०श, प्रा० स] काटनेवाली। 30-सिसु- लेना। धोखा देना । जटना। २ किसी को कोई वस्तु देने के धातिनी परम पापिनो । सतनि की डसनी जु सापिनी।-नद० लिये दिखाकर न देना । ललचाकर न देना। प्र०५० २३६ । डहकावनिक पु० [हिं० ४हकाना 1 [बी. डहकावनि ] डसवाना--क्रि० स० [हिं०] दे० 'डसाना'। ललचाना या धोखा देने का कार्य पा स्पिति। 30-ले ले साई-सचा पुं० [सं० दश ] साढ़। धौभड़। व्यजन चखनि चखावनि सनि, हसावनि, पुनि डहकावनि । उसाना-क्रि० स० हिमासना बिछाना । उ०-'हे राम' खचित -नंद ०, ५० २६४। शैतरा भाई । जिसपर बापू नै प्रतिम सज डसाइ रहडह-वि० [अनु॰] दे० 'डहुड हा'। सूच०, पृ० १३७। बहरहा-वि० [ मनु०] [ वि० स्त्री० डहुडही ] १ हरा भरा। डसी-संश्री [हिं० दसी ] दे. 'सी'। ताजा । लहलहाता हपा। जो सूखा या मुरझाया न हो। डसी-संहा बी० पहचान या परिचय की वस्तु । पहचान के लिये (पेठ, पौधे, फूल, पसे प्रादि)। उ०-(क) जो काट तो दिया हुमा चिह्न चिन्हानी। निशानी । सहदानी। उहडही, सींचे तो कुम्हिलाय। यहि गुनवती देम का कुछ गुन डस्टर-सदा पु० [म.] गर्द झाड़ने का कपड़ा। झारन । कहा न जाय |--कबीर (शब्द०)। २ प्रफुल्लित । प्रसन्न । उकिना-कि. ह. डहकना ] दे० 'हहकना'। 30-~-कह मानदित। उ०--तुम सौतिन देखत दई अपने हिय ते लाल । वरिया मन रहकत फिरे।-दरिया० बानी, पृ० ३५। फिरति सबनि मे डहड ही वह मरगयी बाल ।-बिहारी (शब्द०)। (ख) सेवती चरन चार सेवती हमारे जान, है डड्क-वि० [१] सख्या में यह । -(बलाल)। रही डहुडही लाहि मानव कंद को।-देव (शब्द)। (ग) डहकना-क्रि० स० EिO TRI] १ छल करना । षोसा देना। उहडहे इनके नैन पहिं कहूँ पितए हरि-नंब००, पृ० ठगना। पटना । उ हकि उहाकि परचेह सब काह। १५। ३ तुरंत का । ताजा । १०-सहमही इदीवर श्यामता प्रति पसक मन सदा उचाई।-तुलसी (शब्द०)। २. किसी घरीर सोही डहुडही चवन की रेखा राखे भाल में।-रघु- वस्तु को देने के लिये दिखापर न देना। सलवाकर न देना। राज (शब्द०)। २०-खेलत खात, परस्पर सहकत, छीनत कहत करत रुग- डहरहार -सधा बी• [हिं० डहा ] हरापन । ताजगी। देया -तुलसी (शब्द०)। बहकनारे-कि. म द हाड, घार१ रोने में रह रहकर रहब्हाना-कि० म.हि. हाडहा होना। ( पेड़ पौधे, मादिका)। ३०-दूर दमकत यवन सन्द निकालना। चिलखना। विधाप करना। 30-काल थोमा जलज युग हुडहुत ।-सूर (शब्द०)।२ प्रफुल्पित बदन ते राहिलोचो इंद्र गर्व खोडा गोपिनी सब अधो पागे होना । मानदित होना। रहरि दोनो रोहा-सूर (शब्द.)।२. हुंकारना । डकार