पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२९६

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सहडेहाव डॉगर उहबहाव--सबा पुं० [हिं० उहरहा ] हराभरा होने का भाव । डहीली-वि०सी० [हिं० गह+ली(प्रत्य०)] डाह पैदा करनेकासी। ताजगी । प्रफुल्लता। उ.--पग चलति ठठकि रहे ठाढ़ी मौन पर हरि रस डहन-संघा. [सं०यन (= उड़ना)] ठेना। पर। पख ! पोली। धरनी नख परननि कुरवारति, सौतिनि भाग सुहाग उ.-विषवाना किप्त देह अंगूरा। जिहि मा मरम उहन परि उहीली। -सूर. १०११७७२।। पूरा।-जायसी (शब्द०)। डहु, डहू-सपा पुं० [सं०] १. वृक्षविशेष । सकुष। २.पहर । सहन-सा बी० [सं० दहन ] पसन । हाह। डहोला-सबा पुं० [देरा०] हलचल । उपद्रव । भय । ३०-महा बहना-संवा पुं० [सं० ग्यन ] है. 'डेना' 1 उ.-बों पंखी कहा रहोली मेदनी विसरियो तिण वार । साह तपस्या भरगती थिर रहना। ताके वहाँ बार बौं रहना ।-पदमावत, धफवर सेण मपार ।-रा. २०,०६६। पु०२५८ । डांति-संशो - [सं० डाकृति] घंटी मादि बजने को पनि [को० डहनारे-क्रि० प्र० [सं०दहन] १ बसना । भस्म होना। २. डॉ-मुश श्री० [सं० ] डाकिनी गइन। कुढ़ना। चिढ़ना । द्वेष करना । बुरा मानना । डॉक-संज्ञा स्त्री० [हिं० दमक, द भयवा देश.] at या चांदी सहना'-क्रि० स.१.जमाना। यस्म करना। उ.-रावन पंडा का बहुत पतला कागज की तरह का पत्थर। हो डही वेह मोहिडादन माइ-जापसी (अन्द०)। २. विशेष-देशीक चांदी की होती है जिसे घोटकर मपीनों सतप्त करमा । दु.वं पहुंचाना। ४०-उहा घरपट पदन मीचे मैठाते। अब तो पत्तर की विरेबी कमी वीरू । वगध करा सर विपीकर-पायसी (शब०)। बहुत प्राती है कि योष प्रौर पमकीम दुर कार ३. तारना । बजाना। 30-गाकर नरें जोमण लियों की टिकती, कप पर टोकने की चमकी पारिबनती किलकारी:-रघु०६०, पृ०४०1 हैं। क पोटने की सान ८-भगुल बी पोर ३-४ पंगुत महरा-संमा श्रीहि गर] १ रास्ता। मानं । पप । उ०- चौड़ी पटरी होती है जिसपर रोक रखकर धमकाने बिये जिहि हरत हर रख करो। चित खोरत चेटक पोटते है। घेहो।-रघुराव (मन्द)। २. पाकामना ।. डॉकार-सहा सौ. [ हि.सेकना] के । वमन । उसटी। पगडगे। क्रि० प्र०-होना। बहरना-कि० . [हिरहर] पबदा । पिया। हमना। उ.-विहिदहरतरहरबरख कहारो। चितख चोरत डाका'-सबा पुं० [हिउंका] नगाड़ा।'का' 10-दान बैठक मेहरो।-रघुराग (पद)। सक बाजे दरबारा। कीरति गई समुदर पारा। प्रायसी (शया)। सहरा-संवा पुं० [हिं० गहर] मार्म। स्मर। ३०-सखोरीपाज पब वरती परण। बबरहरा मेवात मझारे हरि पाप पन कि-बापु० [हि. क] निषले जंतुओं के काटने का का भेगा।-सहजो०, पृ. पार । उ०-जे तव होत दिखादिखी भई प्रभी इक पाक। वर्ग धीरछी गठि पब हबीछी को डॉक। -बिहारी बहराना--कि.. [f.गाना] चबाता। दौडाबा। फिरावा। उ.-कोक बिरडिरही भाष पवक चितपाईकोक विरविषिपुरी भृकृति पर नैव पहराई।--सर (प.)। "" रॉकना-क्रि० स० [सं० तक (-पलना)] १. कृपलर पार फरना । बाँधना करना।२ पार कर जाना । लाष जाना । सहरि -घंक चौ. [सं० बधि, हि. दहेंगी] रही जमाने उ.-अजगर उडा सिखर को का, गरड यकित होय काम में प्रयुक्त मिट्टी की इंडिया । १०-सुत को परजिराखल पैठा।-दरिया० मानी पृ० १९।२ बमन करना। उसटी महरि रहर पवन म देस काहहिं फोरि सरतरहरि- करना । ३. जोर से पुहारमा । पावापना। सूर०, १०1१४२।। उहरि--सबा सीहररा -अप परबकोष डॉकिनी-सौ . [ गाकिनी ]. हाकिमी'। उ.-- माहि पारह रोपि राखत गरिर-सूर., १.१४२३ । परह परक, फल चारि सिसु, मी किती साउ!-तुलसी पं०, पृ. ११० उहरिया--- ० [froगर मापजका धूमबरण्यापार करनेवाचा व्यक्ति डॉगः-संथा. [सं० (=पहाए का कियारा और मोटी)] उहरी- बी [देश] २० 'दुठिया'। पहाडी । बंगम । बर।।२.पहारकी ऊँची चोटी। सहका-सया पुं० [सं.उमरु] १. उमर। पार कर डॉग- पुं० [सं० रख हि. डावा] मोरे पास कामा । सह। कर जोगण किलकारी।-पु.१०, पृ० ४७।। डॉग -शा पुं० [हिं. कना ] कृर । फमांग। उहारा-नि० [हिगाहमा लाहनेवामा । तंग करनेवाचा । कष्ट डॉग - ० [देश॰] दे० 'का'। पहुंचानेवाला । ४.-फोरहि सिस लोढ़ा मदन मागे पढ़क डॉगर'-सा . [देश॰] १. चौपाया। ढोर । गाय, भैस पारि पहार । कापर कर कपुत कति पर पर सहस डहार।- पशु।२ मरा हुमा पौपाया। (गाय, बैल मादि) चौपाए। तुससी (बम्ब.). को लाश (पूरब)।