पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२९७

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डोंगर १६४५ डाँडो मुहा०-डोंगर घसीटना- घमारों की तरह मरा हुमा चौपाया थिति गाई। उपज्योत म क तेहि डौड़े।-रघुराण खींचकर ले जाना। प्रशुचि कम करना। (शब्द०)। ११.दो खेतों के बीच की सीमा पर की कुछ ३ एक नीच जाति का नाम। ऊँची जमीन जो कुछ दूर तक सकीर की तरह गई हो और गिर-वि०१. दुबला पतला। जिसकी हड्डी हटो निकली हो। जिसपर लोग माने जाते हों। में। २. मुखं । जड़ । गावदी। क्रि० प्र०-डोर मारनामेंड बनाना। सीमा पा हदबंदो डाँगा-संज्ञा पुं० [सं० दएडक ] १. जहाज फे मस्तूल में रस्सियो करना। को फैलाने के लिये पाही लगी हई परन । २. लगह के बीच यौ०-डीड मैड-दे० 'डाडामेड़। का मोटा डडा । (लश०)। १२ समुद्र का ढालुा रेतीला किनारा। १३. सीमा ।। पैसे, गाय का डोना। १४ वह मैदान जिसमे का जगल हॉट-- श्री० [सं० दान्ति (= दमन, श) या संदर] १. कट गया हो। १२. मयंदड। किसी पपरा के कारण प्यासन । वयं दाव। दवा। जैसे,—(क) इस सबके को भपराधी से लिया जानेवाला धन । जुरमाना। ट मे रखो। (ख) इस लड़के पर किसी की नहीं है। कि०प्र०-लगावा। क्रि०प्र०-पड़ना ।-मानना 1-रखना। १६ वह वस्तु या धन जिसे कोई मनुष्य दूसरे से अपनी किसी महा०-डोट में रखना शासन में रखना। वरा में रखना। वस्तु के नष्ट हो जाने या खो जाने पर ले। नुकसान का किसी पर हाट रखना किसी पर शासन या दवाव रखना। बदला । हरजाना। ट परपालकी के महारों की एक बोली। (जव तंग मोर क्रि० प्र०-देना।-लेना। के'चा नीचा रास्ता मागे होता है तब अगला कहार कुछ १७. लवाई नापने का मान 1 कट्ठा। बाँस। बचकर चलने के लिये कहता है 'डोट पर')। डॉड़ना-त्रि० स० [हिं० ड+ना (प्रस्थ०), या से० दण्डन] २राने के लिये कोषपूर्वक कर्फच स्वर से कहा हमा अन्य। प्रयंदड देवा । जुरमाना करना। ४०-(क) उदषि पार घुरकी। उपट। उतरसहूँ न लागी वार केसरीमार सो प्रवड ऐसो डादियो। कि० प्र-बताना। --तुलसी (शब्द०)। (ब) पड़ा जो डर पगत सब डाँडा। डॉटना'-क्रि० स० हिट+ना (प्रत्य०)मघया सं० दण्डन] का निचित माटो के मारा-बायसी (शब्द०)। १.राने के लिये शोधपूर्वक कडे स्वर मे बोलना। घुड़कना। डॉडर-सहा पुं० [हिं० ढोठ] बापरे के ठल का गड़ा हुमा धाम उपटना। 30-(5) जैसे मोन किलकिला दरसत, ऐसे रही जो फसल कट जाने पर भी सेतों में पड़ा रहता है। बापरे प्रमुटत । पुनि पार्थं प्रसिधु बढ़त है सूर साल किन पाटत । की खूटी। --सुर०,१।१०। (ख) जानै ब्रह्म सो विप्रवर मांखि खाँडा-सा पुं० [हिं० डाँड १ घरी रहा। २. गतका । - दिखावहि दोटि-तुलसी (शब्द०)। (प) सोई ही जैरी बब की साप बजरडा उठी पापि तस बाजेबांना रोघे, जननि सोटि ले औट -सुर०,१०1३४६ । -बायसी (शब्द०)। ३. वाव खेने का डर। ४. समुद्र का संयोकि०-देना । बालुमा रेतीला किनारा (खश.)। १.हव। सौमा में। २ ठाठ से वस्त्र मादि पहनना । ३० टना'-६ । उ०- यो०-डोडा मेडा । डांडा मेंही। पाकर भी वर्दी डोट है। -फिसाना०, मा० ३, पृ०३६ । मुहा०-होमी का संहा- लकडी, पास फूस पादिका ढेर जो डॉठा-सा पुं० [सं० दण्ड ] डठल । बसत पंचमी के दिन से होली पलाने के लिये इकट्ठा किया दर-सपा ० [सं० दण्ड, प्रा. ड] १ सौषो लकड़ी। डा। जाने लगता है। २ गपका। उ.-सीखत घटकी होड़ विविध लकड़ो के दामड़ा-सा पुं० [हिं० डॉड +मेंड ] एक हो ढाड या दावन !-प्रेमपत०, मा० पू०२८। सीमा का पतर। परस्पर प्रत्यत सामीप्य। सपाव । २. यो०--हार पटा%3 (1) फरी गतका । (२) गतके का सेस । मनश्न । झपड़ा। १. नाव सेने का वा पल्ला या डा। चप्पु । क्रि०प्र०—रहना। कि० प्र०-खेवा ।-चलाना-मारना!-भरना।-(नय०) डॉडामड़ी-सहाबी [हिं० ] ३. 'डांडामेंडा'। ४. अकुर का इत्पा। ५. जुलाहों को बह पोली लकड़ी जिससे डाँदाशरेल- पु. [ देश ] एक प्रकार का साप जो बगाल में करी फसाई रहती है। सीपी फोर । ७ रोद को होता है। कही। प. कैची उठी हुई तर जमीन जो दूर तफ खकार की डॉदी-सबा बी० [हिं० डाँडा]..सपी पतली लकड़ी। क्षय तरह पली गई हो। ऊँची में। में सेहर व्यवहार की पानेवाली वस्तु का वह प्लवा पतला मुहा०-दाद मारनामेड़ उठाना। भाप को हाप दिया था पकड़ा जाता है। संवा इत्या या १. रोक, पाड़ मादि के लिये उठाई हुई कम केपी दीवार । १०. पस्ता।बैंसे, करमी की डोठी। उ०--हरि की प्रारती रा स्थान । छोटा चीटा या टीवा। 30-सोकर पंडा बनी। मति विषिष रथवा रचि राखी परतिर गिरावी।