पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२९८

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१४४४ डॉदरी कच्छप मध भासन मनुप पति, डाँठी शेष फनी।-सूर बाहिर पौरि न दीजिए पावरी बाउरी होय सोडवरी (शब्द०)।३ तराजू की वह सीधी मकडो जिसमे रस्सियो डोले।-देव (शाद०)। 'डायरी'। लटकाकर पलके वांधे जाते हैं। उडी। उ०--सा मेरा विरू-संघा पु० [सं० डिम्ब बाप का बचा। बानिया सहज करें व्यवहार। बिन डाडी बिन पास तोले डॉषाडोल-वि० [हि. डोलना] पर उधर हिसता डोत्रता हमा। सर ससार ।-कचीर (गन्ध)। एक स्थिति पर न रहनेवाला। चचल । विचलित। मस्थिर। मुहा०-डोडी मारना- सौदा देने में कम तौलना। डाँडी सुमीते जैसे, चित्त डांवाडोल होना। से रहना- बाजारभाव पनुकूल होना। उ०-भगवान कहीं डॉवोt--कि. वि०[प्रा० गाव, गुज० दावो] बाई पोरवाई सरफ। गों से बरखा कर वे और डोडी भी सुभीते से रहे तो एक गाय । उ०-दायो सांड कठो पाई-पी. रासो, पु०६०। जरूर लेगा।-गोदान, ३० ३० । डॉशपादि-सा • [दरा-] सगीत में द्रताल के ग्यारह मेदों में ४ टहनी। पतली शाखा। ५. वह सबा डठल जिसमें फूल या से एक जिसमें पांच मापात के पश्चात् एक शून्य (सामी) फल लगा होता है। नाल । उ-तेहि डाटो सह कमलाह होता है। तोरी। एक कमल की दूनी जोरी। जायसी (शब्द०)। डॉस-सा पुं० [सं० द] 1. मच्छर। दश । २. एक प्रकार ६, हिंडोले में लगी हुई वे चार सीधी सकडिया या डोरी की की मक्खी जो पसुमो को बढ़त दुर देती है। 30----परा लडें जिनसे लगी हुई बैठने को पटरी लटकती रहती है। बछड़े को देखता हूँ"चारे को डांस परेशान कर रहे हैं। उ.-पटुली लगे नग नाग बहुरंग बनी डांडी पारि। भोरा नई, पृ. ३०1३. करीयो। भवै भजि केलि भूले नवल नागर नारि-सूर (शब्द०)। डाँसरा-सा पुं० [देश०] इमली का बोज । निमा। ७ जुलाहों को नह लकडो जो परखी की पवनी मे डाली जाती है। शहनाई की लकडो जिसके नीचे पीतल का डा-सशपु० [मनु.] सितार की गत का एक बोल । जैसे-डा घेरा होता है। मनवट नामक गहने का वह भाग को डिड डाका डा डाहा। दूसरी और तीसरी उँगली के नीचे इसलिये निकाला रहता है ३ डा--सपा को सं०] १. डाकिनी। २. टोकरो जो ढोकर से जाई जिसमे अनवट घूम न सके। १. डाड़ खेनेवाला भादमी पायो (लश.)। ११ मट्टर या सुस्त प्रादमी (स.)। १२ डाइचा-सा सं० दाय] दे० 'दायजा'। 10-डारचो दिद सीधी लकीर । लकीर ! रेखा। दाहिन दुहम, भुज भुजग कीरति करे।---पृ० रा०, १६.१५ । क्रि० प्र०-खीचना। हाइन-सा सो• [सं० डाकनी] १ मुतनी। पुरला राक्षसो। १३. लोक। मर्यादा । १४ सीमा। हव। उ०--सरे लोग वन उ0--मोझा डाइन डर से इर 1-कीर १०, मा०२, डॉड़िया, सूते ही सादुल। जे सूते ही जागता, सबलो माथा पृ०२८।२ टोनहाई। वह ली जिसकी दृष्टि प्रादि के प्रभाव सूल।-बांकी , भा०१, पृ०२४। १५. चिड़ियों के से बच्चे मर जाते हैं। ३ कुम्पा पौर डरावनी सी। बैठने का पड्डा। १६ फूल के नीचे का लंबा पतला भाग। डाइनामाइट-सया ५० [सएक डाइनामाइट-सया पु. [सं०] एक विस्फोटक पदार्थ का नाम । १७ पालकी के दोनों पोर निकले हुए लंवे डटे जिन्हें कहार डाइनिंग रूम-सा पुं० [मं०] भोजन कदा । ३०-भाभी ने कधे पर रखते हैं। १७ पालकी। १९. डडे मे बंधी हुई झोली हम लोगों को डाइनिंग रूम में बुलाया।-जिप्सी, ३०४२३॥ के माकार को एक सवारी जो केंने पहाड़ों पर चलती है। डाडबोटी-सहा पुं० [4. डाइविटीज] बहुमूत्र रोग । मधुमेह । झप्पान। साइरेक्टर-सका पु०प्र०] १. प्रबध चलानेवाला। कार्यसचातक । डादरी-सभा सी० [सं० दग्ध, प्रा० डट्ठ. हि० हाड़ा+रो (प्रत्य॰)] निर्देश निदेशक। मु तजिम 1 इंतजाम करनेवाला । २ भूनी हुई मटर की फली। मशीन में यह पुरजा जिसकी क्रिया से गति उत्पन्न होती है। डॉब-सा पुं० [देश॰] एक प्रकार का नरकट जो दलदल में उत्पन्न डाइरेक्टरी--सपा खो मंग वह पुस्तक जिसमें किसी नगरा होता है। देशक मुख्य निवासियों या व्यापारियों मादि को सुची भक्षर डॉभा-सा पुं० [सं० दाह प्रा. डाह, या ६० दाय, प्रा. इड, या क्रम से हो। हिं० दागना] १ जलने का दाग। दाग। २ पलने से डाइवोस-सस पुं० [म.] तसाक 1 पतिपली का सबंधविन्देद । उत्पन्न पीड़ा या कष्ट। उ०-बाधउँबड़री छाहड़ी, नीरू डाई-सा पु०म०] १. पासा । २. ठप्पा । साचा । ३. रग। नागर बेल। डॉम सँभालू' फरहला, पोपडिसू चपेल ।- हाईप्रेस-सायम ठप्पा उठाने की कल। उभरे हुए मक्षर ढोला०, दु. ३२.1 उठाने की कल जिससे मोनोग्राम प्रादि छपते है। विरा-सका पुं० [सं० डिम्ब] [स्त्री. डॉवरी] लड़का । घेटा । पुत्र। साक-सया पु० [हिं. उहाक या उलाक या डॉकना(= दिना)] डॉवरी -सपा सी० [हि. डॉवरा] लकी। बेटी। उ०—(क) १. सवारी का ऐसा प्रबष जिसमें एक एक टिकाव पर कचन मन रतन बडित रामपद्र पावरी। दाहिन सो राम बराबर जानवर मादि बप जावे हो। घोड़े पाड़ी पारिका वाम जनक राय डॉवरी।-देवस्वामी (धन्द०)। (2) जाह अपहतजाम।