पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/२९९

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डाक्टर मुहा०- डाक बैठानाशीघ्र यात्रा के लिये स्थान स्थान पर डाकगला-संच पु० [हिं० +बंगला ] वह बंगला या मकान सवारी बबलने की चौकी नियत करना। सफ लगाना- यो सरकार की पोर से परदेसियों के लिये बना हो। शीघ्र सवाद पहुंचाने या यात्रा करने के लिये मार्ग में स्थान विशेष-ईस्ट इंडिया कंपनी के समय में इस प्रकार के बंगले स्थान पर प्रादमियों या सवारियों का प्रबंध रहना । डाक स्थान स्पान पर बने थे। पहले जब रेख नही पी र इन्हीं सगाना-दे० 'डाक वैठाना'। स्थानों पर शक ली पाती भौर बदली जाती थी। प्रतः सवा- यौ---डाफ चौकीमार्ग में यह स्थान जहाँ यात्रा के घोड़े रियों का भी यहीं मडा रहता था जिससे मुसाफिरों को ठहरने बवले जायें या एक हरफारा दूसरे हरकारे को पिट्ठियों का मादिका सुबोता रहता था। थैला दे। 3--पाछे राजा ने द्वारिका सों मेरता सो डाक डाकमहसल-सक्ष पुं० [हिं० डाक+म. बहसुल ] वह खर्च पो चौकी वेठारि दोनी ।-दो सौ बावन०, था० १, पृ० २४६ । पीज को सक द्वारा भेजने या मंगाने में लग । डाकम्पय । २. राज्य की मोर से चिट्ठियो के माने जाने की व्यवस्था । वह डाकमुशी-सक पुं० [हिं० गक+फा. मुघा ] डाकघर का सरकारी इतजाम जिसके मुताबिक खत एक जगह से दूसरी अफसर । पोस्टमास्टर। जगह बराबर माते जाते हैं। जैसे, डाक का मुहकमा। 30- डाकर-समा पु० [देश. ] तालों की वह मिट्टी को पानी सूख जाने या चिट्ठी डाक में भेजेंगे, नौकर के हाथ नहीं। पर चिटखकर कड़ी हो जाती है। यो०-गकखाना । डाकगाही। डाकव्यय-सहा स्त्री० [हिं० डाक+० व्यय ] क का खर्च । ३. चिट्ठी पत्री । कागज पत्र प्रादि जो डाक से भावे । डाक से अक महसूल । प्रानेवाली वस्तु । जैसे,—तुम्हारी डाक रखी है, ले लेना। हाका-मक्ष पुं० [हिं० डाकना (- कुदना) वा सं० दस्यु पथवा देवा डाक-सभा सी-[मनु० ] अमन । उलटी। के। वह भाक्रमण जो धन हरण करने के लिये सहसा किया जाता है। मास मसबाब जबरदस्ती थोनने के लिये कई मादमियो क्रि०प्र०-होना। का दल सधकर यावा । बटमारी। डाक-पक पुं० [म. डॉक ] समुद्र के किनारे जहाज ठहरने का मुहा०-डाका डालना-लूटने के लिये धावा करना । जबरदस्ती वह स्थान जहाँ मुसाफिर या माल चढ़ाने उतारने के लिये माल' छीनने के लिये चढ़ दौड़ना। सफा पड़ना - लूट के वाघ या पतरे मादि बने होते हैं। लिये पाक्रमण होना । जैसे,--उस पाव पर माज डाका डाक -सका पुं० [ग सकना (=चिल्लाना)] नीलाम की बोली। पड़ा। डाका मारना जबरदस्ती माल लूटना। बलपूर्वक धन नीलाम को वस्तु सेनेवासों की पुकार जिसके द्वारा वे वाम हरा करना। लपाते हैं। डाकाजनी-सधा बी[हिं० डाका+फ्रा० जनो] डाका मारने डाकखाना-सधा पुं० [हिं० डाक +फ्रा० खाना ] वह स्थान या का काम । बटमारी। सरकारी दफ्तर जहाँ लोग भिन्न भिन्न स्थानो पर भेजने के डाकिन-सका खौ[सं० डाकिनी ] दे० दाकिनी'। लिये चिट्ठी भी प्रादि छोड़ते हैं पौर जहाँ से माई हुई चिट्ठियाँ डाकिनी-सहा बी० [सं०] १ एक पिशाची या देवी जो काली के लोगो को बांटी जाती हैं। ___ गणों में समझी जाती है । २ भइन । चुल। डाकगाड़ीसा श्री [हिं० डाक+गाड़ी ] वह रेलगाड़ी जिसपर डाक्रिया-साधा पुं० [हिं० ग+ण (प्रत्य॰) से माई चिट्ठी पत्री मादि भेजने का सरकार की तरफ से इतजाम हो। चिट्ठियां पादि लोगों के पास पहुंचानेवाला कर्मचारी। क ले जानेवाली रेलगाडी जो मोर गाड़ियों से तेज डाकी'--समानी हिं० डाका वमन । के। चलती है। डाकी-सका पुं० १. बहुत खानेवाला । पेटु । २ डाकू। उ०-सुंदर डाकघर--सहा पुं० [हिं० डाक+घर] दे० 'डाकखाना' । तृष्णा डानी डाकी लोम प्रबहादोऊ का मौषि पब, कपि डाकनवास . [हिं० डाकना+वाला (प्रत्य०)] पुकारने उठे ब्रह्म ड।- सुंदर प्र., भा॰ २, पृ.७१४॥ याजा । बुलानेपाना। प्रियतम उ..-बब डाकनवारो पढ़पो साकी --वि० सवल । प्रचड (डि.)। सिर पैता, लाज कहा खर के चढ़िवे को |--नट०, ५० ५४। डाक-सज्ञा पुं० [हिं. डाका+ऊ (प्रत्य०), वा० दस्यु] १. डाका डाकना-कि.म.हि. क] के करना । वमन करना। हाजनेवाला। जबरदस्ती सोयो का मास लूटनेवाला। लुटेरा । डाकनारे-क्रि० स० [हिं० उड़ाक, डॉक+ना (प्रत्य०)] फांदना। बटमार । २ मषिक खानेवासा पेटू । नधनादकर पार करना । उ.-मृग हाप बीस वा डाका डाकेट-सबा पुं० [40] किसी बड़ी पिठी या माज्ञापत्र पाटिका तृण हालि उठ तब तक।-सुदर प्र०, भा०१,०१४१। सारांश । चिट्ठी का खुलासा। (THEर सरन गासणा डाकि पई रण मोहि। घाव सह डाकोर-सक्ष पुं० [सं० ठाकुर, हि. ठाकूर] ठाकुर। विष्णु भगवान मुख सामही पीठि फिरावे नाहि!-सुपर० प्र०, मा० २, (गुजरात)। पृ०७३८ । डाक्टर-सक पुं० [म.].भाषायं मध्यापक विद्वान । २. वैद्य। संयोक्रि०-बाना। चिकित्सक । हकीम। ०२, डाकोर पिका