पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३००

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वाक्टरी डादी डाक्टरी-सहा स्त्री० [म.डाक्टर+ई (प्रत्य॰) 1१.चिकित्सा- पौर लगाना। ३. खेद या मुह बद करना । मुह कहना। माल । २. योरप का चिकित्साशास। पामचात्य पायुर्वेद । मह बद करना। ठेठी लगाना। ४ कसकर भरना । ठसकर ३. डाक्टर का पेशा या काम । ४ वह परीक्षा विसे पास करने भरवा । कसकर घुसेडना। 10-शान गोली वहां खूब डाटो। पर पावमी डाक्टर होता है। -कोर श०, भा. १०९८1 ५. खूर पेट भर साना । ठाकर-सा पुं० [अ०हास्टर] दे० 'डाक्टर', कस कर खामा । उ०-प्रपनित तर फस सुगम मधुर मिष्ट डाखा-सहा पुं० [हिं० ढाख ] डाक । पलाश | उ तरवर झरहि खाटे। मनसा करि प्रभुहि अपि भोजन फो डाट।-सूर करद्धि बन डाखा। भई उपस फूल कर सासा । --जायसी (थब्द०)। १. ठाट से कपडा, गहना प्रादि पहनना । जैसे, (शब्द०)। कोट दाटना, मंगरखा डाटना। ७ मिदाना। उाटना। साखिपी -सा पुं० [?] मुखा सिंह (डि.)। मिलाना। उ-रचन साष सुधै सुख की विन राषिक बागरि-सहा बी० [हिं० डगर ] दे॰ 'गर'। माधिक लोचन डाटे-केशव (धन्य.)। डाठी -सश खो-[पेश० ] दुर्वासना 1 दुरी पादत । 30- सागला--सबा पुं० [देशी दुगर ] शैल। पर्वत । उ०-पन परिया। पगुमा भयो कमको डाठी। बस को गहे आपकी लाठी। इस झूठ की, डागल ऊपर दौड़-परिपा० बानी, पृ० ३१ -चित्रा०, पु० २७ । डागा--सा पुं० [सं० वरारक] नगादा बचाने का उहा। पोच। डाइना'-शि.प्र. [हिं०] ६० 'ठाडना, पाना'। डागुर-सक [] जाटों की एक जाति । उ-मागुर पा- बाड़ना-कि. • [हि डोडना] दौडना'। परे धरि मरोर । बहु ष ठट्ट पट्टे सजोर !-सुदन (पाद)। साढ़--साली[ द्रष्ट्रा, प्रा० उड्ढ़ ] १ चबाने के चोड़े दौत। बागला-सा पुं० [देखी जुगर, हिं० डागल ] शेस । पर्वत । उ-- चौमड़। दाढ़। उ-हम दो दो रुपए नहीं बदते । मिठाई काहे को फिरत नर मटकत ठोर ठोर। डागुल की दौर देवी पाए तो डाढ़ तक गरम न हो। इतने में होता ही क्या है।- देव सब जानिए।-सुपर ग्रं, भा० २,१०४७६। । फिसाना०, भा०३, पृ. २७४ । २ वट मादि वृक्षों को साधी-सहा पुं० [सं० वष्ट्र, प्राइव, या देण०] मुख । उ०-(क) शाखामों से नीचे की मोर लटकी हुई जटाए । परोह । छोह घणो कछज छरा, मेहर फाईग-बांकी पं०, भा० साइना -कि. स० [सं० दग्ध, प्रा. डठ+हिना (प्रत्य॰)] १, पृ०११। () खलकाया रत खात भरे, डांचा पल जलाना । मस्म करना । उ०-तुलसिदास जगदप जवास ज्यों भक्खे। -रघु० २०, पु.४० । अनघ मापि सागे डाइन ।--तुलसी (शब्द०)। डाट-सहा बी० [सं० पान्ति ] १ वह वस्तु जो फिसी पोझ को दादा-सरा श्री [सं० दाप, प्रा० ४] १. दावानल । वन की माग । ठहराए रखने या किसी वस्तु को खड़ी रखने के लिये लगाई २ अग्नि पाग। उ.---रामकृपा फपि दल बस वादा। पाती है। टेक । चांड। जिमि तुन पाइलागि मति डाडा--तुलसो (धन्द०)। क्रि० प्र०-सयादा। क्रि० प्र०-सगना। २ वह कौल या खूटा जिसे ठोककर कोई छेद वद किया जाय । ३ ताप । दाहाबलन । व रोकने या करने की वस्तु । क्रि० प्र०-फूकना। क्रि०प्र०—लगाना । डाढार -सज्ञा पुं० [हिं० डाढ] फण। फन उ०-सेस सीस २. बोतल, शीशी प्रादि का मुंह बंद करने की वस्तु । ठेठी। लपि भार डिढम दाठार करविव1-रसर०, पृ० १०४। काग । गट्टा। डाढी -वि० [सं० दाम ] दाध। पोधित। स-सखी संग की कि०प्र०-कसना ।—लगाना । निरखति यह विधि भई व्याकुल मम्मय को डाढ़ी।- ४. मेहराव को रोके रखने के लिये इंटों माधिको भरती। सुर०, १०1७३६ । सवाव को रोक । लदाव का ढोला। डादी-समा श्री० [प्रा० रख हि. डाढ़+६(प्रस्प०)] चेहरे पर टाट-सज्ञा पुं० [हिं० दे० 'दाट'। मोठ के नोचे का पोष उभरा हमा भाय । ठोड़ी। कुड्डी। साट- पु .] नुकता। बिंदु। 30-इम कसवियों पर पिक। २ छुट्टी पोर कनपटी पर के बाल। चिबुक मोर बाटलपाटर-प्रेमघन, भा०२,०४।। गढस्थल पर के लोम। वादी। ट-दादी रखेपन की डाटना-क्रि० स० हि. हाठ] १. किसी वस्तु को किसी वस्तु डादी सो रहति क्षती बाड़ो मरजाद जस हद हिंदुबाने को। पर रखकर जोर से ढोलना। एस वस्तु को दूसरी वस्तु पर -भूषण (सन्द०)। कसकर बवाना। मिडाफर ठेलना । जैसे,—(क) इसे इस मुह०-डाढो छोड़ना= डाढ़ी न मुगवाना । सदी बढ़ाना । बाटो बटे से डाटो तब पीछे खिसगा। (ख) इस इडे को डाटे का एक पक बाल करना-दादी उखा लेना। पपमानित रहो तब पत्पर पर न लुढ़केगा। करना । दुर्दशा करना । बाढीको कलप लगाना- युवे भादमी संयो०क्रि०--देना। को कलेक लगाना । धेष्ठ मोर पद को दोष लमाना। पेट मे २ किसी खंभे, डडे मादि को, किसी बोझ या भारी वस्तु को डाढ़ी होना - छोटी ही पवस्था में बड़ों की सी जानकारी प्रकट ठहराए रखने सिये उससे भिड़ाकर लगाना। टैकवा । करना या बातें करना। पेशाब से डाढ़ी मुहपाना-पत्पत