पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३२१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

ढंगरजाद ढकनारे अभिप्रायसाधन का मार्ग । युक्ति। उपाय । तदबीर गेल। ढंढरच-सम पुं० [हिं० ढग+ रचना] घोसा देने का मायोजन । जैसे,-कोई ढग ऐसा निकालो जिसमें रुपया मिल जाय । पाखर । बहाना । हीमा। क्रि० प्र०-करना। -निकालना।-मताना। ढंढोर-सहा पुं० [भनु० पाय धायें ] १.माग की लपट । ज्वाला। महा०-ढग पर चढ़ना न भभिप्रायसापन के मनुकुल होना। लो। उ०-(क) रहे प्रेम मन उरझा लटा । बिरह ढंढोर किसी का इस प्रकार प्रवृत्त होना जिससे (दूसरे का) कुछ परहि सिर जटा।-बायसी (शब्द०)।(स) कथा बरे अगिनि मयं सिद्ध हो। जैसे,—उससे भी कुछ रुपया लेना चाहता हूँ, जनु लाए। विरह ढंढोर जरत न जराप। जायसी (शब्द०) पर वह ढग पर नहीं चढ़ता है। ढग पर लाना = अभिप्राय २ काले मुह का बंदर । लगूर। साधन के मनुकूल करवा । किसी को इस प्रकार प्रवृत्त करना हँदोरची--सबा पुं० [हिं० ढंडोर+फा०ची (प्रत्य॰)] ढंढोरा फेरने. जिससे कुछ मतलब निकले। ढंग का कार्यकुशल । व्यवहार- वाला। मुनादी फेरनेवाला। उ०-लेकिन स्की पोर मोरा- वक्ष । पतुर । जैसे,—वह वढे ढंग का पादमी है। वियन धर्मप्रचारकों से ढंढोरची मुक्ति सैनिकों की तुलना नही ५. पाल ढाल । भाचरण । व्यवहार । जैसे,—यह मार खाने को की जा सकती।-किन्नर०, पृ०६४।। ढग है। ढंढोरना क्रि० स० [हिं० हूँढना ] टटोलकर ढूंढना । हाथ मुहा०-ढंग बरतना = शिष्टाचार दिखाना। दिखाक व्यवहार रालकर इधर उधर खोजना। 30-(क) तेरे लाल मेरो करना । माखन खायो। दुपहर दिवस जानि घर सूनो ढि ढंढोरि ६ धोखा देने की युक्ति । बहाना। होला। पाखड । जैसे, यह मापही भायो ।—सूर (शब्द॰) । (ख) बेद पुरान भागवत तुम्हारा ढग है। गीता चारों चरज ढंढोरी-कबीर० श०, भा. १, पृ० ८५। क्रि०प्र०-रचना। ढंढोरा-सञ्ज्ञा पुं० [अनु० ढम+ठोल] १ घोषणा करने का ढोल । ७ ऐसी बात जिससे किसी होनेवाली बात का अनुमान हो। डुगडुगी । डोंडी। लक्षण । मासार। जैसे,-रग ढंग अच्छा नहीं दिखाई देता। महा०-ढंढोरा पौटना- ढोल बजाकर चारों मोर जताना । ८. दशा। पवस्था । स्थिति । Fo-नैनन को ढग सो प्रनग मुनादी करना। पिचकारिन ते, गातन को रग पीरे पातन तें जानवो।- २ वह घोषणा पो ढोल बजाकर को जाय । मुनावी । पभाकर (सन्द०)। मुहा०-ठंढोरा पारना-दे. 'ढढोरा पीटना। ढंगउजाड़--समा० [हिं० ढग+उपाड़ ] पोड़ों के दुम के नीचे ढंढोरिया-सा पुं० [हिं. ढंढोरा ] ढढोरा पीटनेवाला । डुगडग्गी को एक भौरी जो ऐबों में समझी जाती है । बजाकर घोषणा करनेवाला । मुनादी करनेवाला। ढगी-वि० [हिं० ढंग] चालबाज । चतुर । चालाक । हँदोलना-क्रि० स० [हिं० ] दे॰ 'ढढोरना' १०-रतन निराला ढंटस-संज्ञा पुं० [हिं० ] दे॰ 'ढंढरच' । उ०-वढस कर मन ते । पाइया, पमत ढंढयोमा वादि।-कमीर में, पृ० १५ । दूर, सिर पर साहव सदा हजूर ।--गुलाल०, पृ. १३७ ।। ढंपना'-कि०म० [हिं० टकना किसी वस्तु के नीचे पड़कर दिखाई ढढार-वि० [देश॰] बड़ा उता । बहत बड़ा और बेढग।। न वेना । किसी वस्तु के ऊपर से छेक लेने के कारण उसकी ढढेरा-सया पुं० [हिं०] दे० ढिंढोरा'। 80-ता पाथे राजा जेम प्रोट मे छिप जाना। बजी ने सारे ग्राम मे ढढेरा पिटाइ दियो ।-दो सौ वावन०, संयो॰ क्रि०-पाना । भा० १, पृ० २५७ । ढपना-सा पुं० ढाकने की वस्तु । ढक्कन । ढंढोलना-क्रि० स० प्रा० ढढुल्ल, ढडोल( = खोजना)] दे० ढ-सबा पुं० [सं०] १ हा ढोल । २. कुत्ता। ३ कुत्ते की पूछ। 'ढोरना' । उ०-मह फूटी दिसि पुरी इण्हणिया हय पट्ट। ४ ध्वनि । नाद । ५. साप । ढोलइ धण ढढोलियन, चीतल सुदर घट्ट -हावा, ढर्ड देना-कि... [हिं० धरना ? ] किसी के यहाँ किसी काम दू०६०२। से पहुंचना और जबतक काम न हो जाय तबतक न हटना। ढंकना-सका पुं० [हिं०] दे॰ 'ढकना', 'ढक्कन'। धरना देना। ढंकना-क्रि० स० [हिं०] दे॰ 'ढकना'। ढकई-वि० [हिं० ढाका ] ढाके का। ढकना–समा पु० [हिं०] [स्त्री॰ ठेकनी] दे॰ 'ढकना'। ढकई-सक. एक प्रकार का केला जो ढाकेको पोर होता है। टॅकुल्ली-संहा बी० [हिं०] दे॰ 'ढकली'। ढकना-सहा पुं० [सं०ढा (=छिपाना)][श्री. अल्पा० ढकनी] ढंग-सबा पुहि ढंग ] मभिप्राय सापने का उपाय । ठोस । वह वस्तु जिसे कपर डाल देने या बैठा देने से नीचे की वस्तु वह वस्त जिसे पर माल दे० 'डर'। उ०-वाही के जेए बनाय खौ, बालम ! हैं तुम्हे छिप जाय पाप हो जाय। उक्कन । पपनी। नीकी बतावति हो ढंग।-देव (सब्द०)। ढकना-शि. म. किसी वस्तु के नीचे पड़कर दिखाई न देना। टॅगलाना-क्रि० स० [हिं॰ ढाल] लुढ़काना । छिपना । जैसे-मिठाई कपड़े से की है। दगिया-वि० [हिं० प+या (प्रत्य०)] दे॰ 'ढगी। संयो० कि०-जाना। ७ . माद