पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३२२

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ढकना १९५८ दहा ढकना-क्रि० स० दे० 'ढॉकना'। ढक्क–स पुं० [सं०] १. एक देश का नाम । (कवाचित 'ढाका')। ढकनिया-सथा स्त्री [हिं०] दे० 'ढकनी'। 3.-सुभग ढकनिया २.विशाल माराधना मंदिर । बड़ा मदिर (को०)। ___ढोपि पट जतन राखि छीके समदायो।-सूर (चन्द०)। ढक्कन-सक पुं० [सं०] १. ढाकने की वस्तु । वह वस्तु जिसे ढकनी-सका खी• [हिं० ढकना 11 ढोकने की वस्तु। ढक्कन । ऊपर से डाल देने या बैठा देने से कोई वस्तु छिप जाय याद २. फूल के प्राकार का एक प्रकार का गोदना वो हथेली में हो जाय । जैसे, रिबिया का ढक्कन, बरतन का ढक्कन । २. पीछे की मोर गोदा जाता है। (दरवाजा प्रादि) बदरमा यो डक देना (को०)। ढकपन्ना--सत० [हिं० ढाक+पना( = पत्ता)] पलास पापड़ा। ढक्का '--सक बी• [सं०] १ एक बड़ा ढोल । २. नगाड़ा । सका। ढकपेडरु--संज्ञा पुं॰ [देश०] एक चिड़िया का नाम । उ.-शख मेरी पणव मुरज ढक्का बाद घनित । घटा नाद ढकसा-सका श्री० [ पनु०] १. सूक्षी खांसी में गले से होनेवाला विष बिष गुजरत ।-भारतेंदु ग्रं॰, भा॰ २, पृ०६०५। उन उन शब्द । २. सूखी खांसी।। २. समरू। ३. छिपाव। दुराव (को०)। ४ प्रदर्शन। लोप (को०)। ढका-सहा पु० सं०पाठक] तीन सेर की एक ठोस या बाट। ढक्काल -सका पुं० [ मनु.] दे० 'ढका। ढकार-सक पुं० [म.गक ] घाट। पहाज ठहरने का स्थान । ढक्कारी-सका सी० [सं०] तांत्रिकों की उपासना में तारा देवी का ( लथ.)। हफाg+3-सज्ञा पुं० [सं० ढरका एक नाम [को०]। बड़ा ढोस । उ.-नवति भि ढक्को-सका बी० [हिं० ढाल ] पहाड की ढाल जिससे होकर मोप ढका बदन मारु हका, पलत लागत षका कहत मागे।- सूदन ( पन्द०)। पढ़ते उतरते हैं। -(पंजाब)। ढका-सया पुं० [मनु० ] धक्का। टक्कर । उ.-(क) तकनि ढगण-वधा पु० [सं०] पिंगल में एक मात्रिक गण वो तीन ढकेलि पेलि सचिव पले से डेलि नाथ न पर्वगो बल मनल मात्रामों का होता है। इसके तीन भेद हो सकते हैं, यथा- 15, SI, III इनमें से पहले की सा रसदास भौर ध्वजा, भयावनो-तुलसी (पन्द.)। (ख) पढ़ि गढ भढ़ छ फोट के कंगूरे कोपि नेकु ठका दंह ढेलन की री सी।- दूसरे की पवन, नंद, ग्वाल, ताल मौर तीसरे की वलय है। तुलसी (शब्द०)। ढचर-समा पु[हिं० ढाँचा ] १. किसी वस्तु को बनाने या ठीक दकिक्षाए-मश श्री० [हिं० ढकेलना ] एक दूसरे को ढकेलते हुए करने का सामान या ढोचा। मायोजन और सामान । वेग साय धावा। पढ़ाई। प्राक्रमण । उ.-ढकिल फरी क्रि० प्र०-फैलाना । वोधना। सब ते अधिकाई। मोम गुरु लोगन की घाई। लाल कवि २.टटा । बखेड़ा। जंजाल । धधा। कारवार! ३ भाइबर । झूठा (शब्द०)। मायोजन । ढकोसला। ढकेलना-क्रि० सं० [हिं० धक्का ] १ धक्के से गिराना । ठेलकर क्रि०प्र०-फैमाना। मागे की मोर गिराना। ४.बहुत दुबला पतखा पोर बूढ़ा। संयो॰ क्रि०-देना। ढीगढ़-सम० [सं० डिनर(-मोटा प्रादमी), हिंघींग, धींगड़ा] २ धक्के से हटाना। ठेलकर सरकना । जैसे,-भीड़ को पीछे १.बढे डोलडोल का । ढोंग । जैसे,—इतने बड़े ढटीगढ़ हप पर ढकेलो। कुछ शऊर न हुमा । २. हृष्ट पुष्ट । मुस्टडा। मोटा ताजा। ढकेला ढफेडी-का बी० [हिं० ढकेलना] ठेलमठेला। मापस ढींगड़ा-सा पुं० [हिं०] दे० 'दटीगड़' । __ मे धक्का धुक्की। ढींगर-सा पुं० [हिं०] दे॰ 'ढटीगई'। कि० प्र०—करना । ढट्रा-सधा पुं० [हिं० डाद या देव०] वह भारी साफा या मुरेठा पो ढकोरनारे-क्रि० स० [ मनु० ] पी जाना । दे० 'कोसना'। सिर के मतिरिक्त डाढ़ी और कानो को भी ढोके हो। ढकोसना-क्रि० स० [भनु० ढक ठक ] एकबारगी पीना। बहत ढट्टा-सा पुं० [हि डाटा छेद या मुंह कासकर बर करने की खानापौना। जैसे,इतना दूध मत ढकोस लो कि के वस्तु । डा। पी।काग। हो जाय। ट्रो-सक नी. [हिगढ़ ] डाढ़ी बांधने की पट्टी। सयो०क्रि०-जाना । -मेगा । ढट्ठी-पका सौ. [ हिं. डाट] किसी छेद को रद करने की वस्तु । ढकोसला-सया पु० [हिं० ढग+to कौशम ] ऐसा मायोजन शट। पी। जिससे लोगों को धोखा हो । धोखा देने का या मतम सामने ढड़काना-क्रि० स० [हिं०] भागे बढ़ाना । जोर लगाकर ठेलना । का गापारबर । मिथ्या जाल । कपट व्यवहार पाखरा ढसकावा 13.-गाड़ी पाकी मार्ग में, स्थान करीन पेक्ष। उ.-इन ढकोसलों में क्या तथ्य है।-कास, पृ.१०४॥ प्रय गाड़ी ढड़काय दे, पवल घग हिरवेश।-हुस्स मनि. (1) मगर यह एक सब ढकोसला ही कोसमा।- 4. (इति०), पृ.८८। फिसाना, मा० १,पू. ११1 ढड्दा -वि० [देश॰] बहुत बड़ा । मावश्यकता से अधिक बड़ा। मि०प्र०-करना। -फैमाना। पड़ा और बेडगा।