पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३२३

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ढदा' ढमवाना ढढा-सा पुं० [हिं० ठाट] १ ढाँचा। मगों की वह स्थूल योजना ढफारीस पुं० [भनु.] चिग्यादा जोर से रोने या चिल्लाने का जो किसी वस्तु की रचना के प्रारम में की जाती है। शम्य । डफार । ३०-तव याकूब सु छादि ढफारा। कहै क्रि०प्र०-खड़ा करना। लाग का तोर विगारा ।-हियो प्रेम०, पु. २४५ । २. माहवर । दिखावट का सामान । झूठा ठाट बाट । ढब-सबा पु०[सं० धव( = चलना, गति)या देश०] १. क्रियाप्रणामी। क्रि० प्र.-बड़ा करना। ढंग। रीति । और तरीका । जैसे, काम करने का तर। ढड्ढो-सथा श्री• [हि ढढा] १. वुड्ढी ली। वह बूढ़ी स्त्री जिसके उ.--ताकन को ढब नाहिं तकन की गति है न्यारी!-- शरीर में हड्डी का ढाँचा ही रह गया हो। २ वकवादिन पलटू०, पृ० ४४ । २. प्रकार । भारत तरह। किस्म । स्त्री। ३ मटमैले रग की एक चिड़िया जिसकी चोंच पीली जैसे,--वह न जाने किस ढव का भादमी है। ३. रचना- होती है। यह बहुत लहती भोर चिल्लाती है। घरखी। प्रकार । बनावट । गढन । ढौपा। जैसे,-वह गिलास पौर मुहा०-उड्ढो का ढढोवालामूखं । बेवकूफ । ही दर का है।४ अभिप्रायसाधन का मा। युक्ति। उपाय। ढढ़ेसरी-समापुं० [हिं० ठाढ+सं० ईश्वर ] दे० 'ठाठेश्वरी'130 तदनीर । जैसे,-किसी ढव से रुपया निकारना चाहिए। को बांह को उठाम ढढेसुरी कहाइ बाइ कोर तो मवन कोउ मुहा०-ढन पर चढ़ना मभिप्रायसाधन के अनुकूल होना। नगन विचार है।--भीला १०, पृ० ५५ । किसी का इस प्रकार प्रवृत्त होना जिससे (इसरेका) कुछ ढहर--सम पुं० [हिं०] शरीर । देह । टट्टर । उ०.--बहुमान तुच्छ ढळूर पर्थ सिद्ध हो। किसी का ऐसी अवस्था में होना जिससे कुछ बहिय दुरिग मीर विय सिर ढरपौ।-पु. रा., १॥२७॥ मतलब निकले । बथे,-कही यह ढब पर पढ़ गया तो हव ढनढन-सका स्त्री० [अनु॰] ढन ढन का शब्द । काम होगा। वरपर लगाना या लाना = मभिप्रायसाधन के क्रि० प्र०-करना। मनुकूल करना । किसी को इस प्रकार प्रवृत करना कि उससे ढनका-सहा सौ. [पनु.] ढोल, नगाडा, मादि पाजों की ध्वनि । कुछ पर्य सिद्ध हो। मपने मतलका बनाना। उ०-पैज रुपनि दुहुँ घोर चोप हप चापरि सोर ढोल उनक ५ गुण और स्वभाव । प्रकृति । भादत । बान । देव । घोप मंगल सुनत सफल होत कान-घनानक, पृ० ४०४ । मुहा०-ढवालना=(१)पादत डालना। मभ्यस्त करना। (२) पन्छी पादत सलना। भाचार व्यवहार की शिक्षा ढनमनाना-क्रि०प० [पनु०] लुढ़कना । दुलकना । उ०-मुठिका देना । शकर सिखाना । ढन पदनामापत होना। बान एक महाकपि हनी। रुधिर वमत घरती ढनमनी ।-तुलसी या टेव पड़ना। (शब्द०)। ढपा-सा पुं० [अ० दफ, हिं० सफ] दे॰ 'इफ' । ढबका -सा पुं० [हिं०] उपाय । युक्ति। उ.-चेतनि प्रसवार ढपना-सहा पुं० [हिं० ढोपना हाकने की वस्तु । ढक्कन । ग्यान गुरु करि पोर तजो सब ढवका।-गोरख०, १०१.३॥ उपना-क्रि० प-[हि ठकना । ढका होना । उ०-लसत सेत ढबरा-वि० [हिं० डावर] दे० 'ठावर'। सारी ढप्यो, तरल तरोना कान। परधी सनी सुरसरि सलिल ढबरो-सकसी० [हि ढिवरी] मिट्टी का तेल जलाने की गलो. रवि प्रतिबिंबु बिहान-बिहारी (पाब्द०)। दार तिरिया । ढिवरी। 30-धुभा प्रषिक देती है, टिन ढपना ---क्रि. स.[हिं. ढापना ] ढाकना । ऊपर से मोढ़ाना । को दररो, कम करती उजियाला। ग्राम्या, प.१५ । छिपाना। ढवीला-वि० [हिं० ढव+ईला (प्रत्य॰)] ढब का। डबवामा । ढपरिया--सक्षा सौ. [हिं०] 'दुपहरिया 170-चार पहर पंग मा रगड़ी खरी ढपरिया पैहो ।-कीर श०, भा० पू० २२ । ढबुधासमा पुं० [देश॰] खेतों के मचान के ऊपर का छप्पर। ढपरी-या स्त्री० [हिं० ढोपना चूरीवालों की अंगीठो का ढकना । ढवुश्रा-- ० [देश०] १. एक प्रकार का वाने का प्रचिह्नित ढपलाई-सपा पुं० [म. एफ, हि० १फ, प] दे० 'डफला'। देसी सिक्का जिसकी चलन बद कर दी गई है। २. पैसा ढपली-सक बी० [हिं० अफवा] दे॰ 'डफली' । ढबैला-वि० [हिं० वावर+एला (प्रत्य॰)] मिट्टीपौर की मिया ढपील-वि० [हिं० ढापना] माच्छादित करनेवाली । ठापनेवाली। हुमा (पानी)। मटमैला । गैवला। 7.-यौवन के वर्मत स्मृति को उपमा यो की काली, पोझिल, पील, ढाल से देना अनुचित प्रतीत होता है। ढमक-सश चौ• [मनु०] ढम ढम शब्द । -माधुनिक०, पृ० २३। ढमकना-क्रि० म. [मनु०] ढम ढम शब्द होना। ढम ढम की ढप्पू-वि० [देश॰] बहुत बड़ा । ढड्ढा । पावाज होना। ढफ-सक [हिं० ] दे० 'उफ'। उ.- मुरज ठफ तास ढमकाना-~f. स. [हि. ठमकना] १. ढोम, उगाया पादि दर पाच बजाना। २. ढम ढम शब्द उत्पन्न करना। बाँसुरी, झालर की झकार-सूर (शब्द॰) । ढफला-सच पु० [हि. उफला][ी ढफली। देउफला। ढमढम-सपा पुं० [पनु.] डोल का अपवा नगारे कायद। उ-ठमकत ढोल ढफला अपार धमकंत परनि भौसा ढमलाना'-क्रि० प्र० [देश॰] लुढ़कना। इंकार !-सुजान, पु.३८ । ढमलाना-वि.स. लुढ़काना ।