पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३२५

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ढलकना ढहरो' ढलकना-कि० म० [हिं० ढाल ] १. पानी या पौर किसी द्रव ढलमल-वि० [ मनु०१ श्रोत । शिपिल। २. मस्थिर । पदार्थ का प्राधार से नीचे गिर पटना । ढलना। चचल । कभी इपर कमी उधर होना। संयो० क्रि०--जाना। ढला-वि० [हिं० ढालना ] जो पिधली हुई पातु मादि को सांचे २ लुढ़कना । नीचे ऊपर चक्कर खाते हुए सरकना । ३ हिलना। में गलकर बनाया गया हो। जैसे, ढलवा बरतन । उ.-कुडल झलक ढलक सीसनि की।-पोद्दार भभि० ग्र. इनवाइका-सधा पु०सं०ढाल+वाहक] ढासवाले सिपाही। ढाल पृ०३८३] धारण करनेवाले सैनिक । ढलेत । उ०-कोटि धनुद्ध र पावयि ढलका-सधा पु० [हिं० ढलकना ] प्रौख का एक रोय जिसमें पांख पायक । लष्ख सख चलिम ढलवाइक-कीति०, पृ.८८ । से बराबर पानी पहा करता है । ढरका । ढजवाना-क्रि० स० [हिं० ढालना का प्रारूप ] ढालने का काम ढलकाना-फि० स० [हिं० ढलकना] १ पानी या मौर किसी दव। कराना। पदार्थ को मापार से नीचे गिराना । लुढकाना। ढलाई-सका सी० [हिं. ढालना] १ साँचे में डालकर बरतन मादि संयो.मि.--देना। बनाने का काम । ढालने का काम । २. ढालने की मजदूरी। ढलकी-सपा खी० हिं०] दे॰ 'ढरको'। ढलान-वि० [हिं० ढाल ] दे॰ 'ढालवा' दलना--क्रि० स० [हिं० ढाल ] १ पानी या और किसी द्रव पदार्थ ढलान-संशा श्री [हिं० ढालना ] ढालने का काम । ढलाई। का नीचे की मोर सरक जाना। दरकना। गिरकर बहना। ढनाना-क्रि० स० हि.1 दे० 'ढलवाना'। उ-नाम मगर पूछे जैसे, पत्ते पर फी वूद का तुलना। उ०-मपरन घुवार ले। कोई तो कहना बस पीनेवाला। काम, ढालना पोर ढलाना, सिगरो रस तनिको न जान दे इन उत ढरि ।--स्वामी सबको मदिरा का प्याला |--मधुयाना, पृ०६४। हरिदास (शन्द०)। ढलुवा-वि० [हिं०] १ दे० 'ढलवा' । २, दे० 'ढालवा, संयोकि०-जाना। ढलेत-सबा पुं० [हिं० ढाल ] ढाच बाँधनेवाला। सिपाही। मुहा०—जवानी ढलना = युवावस्था का जाता रहना। छाती ढलैया-सका पुं० [हिं० ढालना ] धातु मावि को ढासनेवामा ढलना-स्तनो का लटक जाना। षोबन ढलना-युवावस्था कारीगर। के चिह्नो का जाता रहना। जवानी का उतार होना त दिन ढवका-यश . [ देश ? ] धोखा। उ०-टू ढसना= सूर्यास्त होना। सध्या होना। दिन ढसे = संध्या चौपडि दुषि फो। पााम फो। सूरज धा चार दलना-सूर्य या चद्रमा का मिलि जाई। ठवका तब काहे को खाई।-सुंदर ग्रं, पस्त होना। मा० १, पृ० २२२। २ बीतना। गुजरना निकल जाना। १०-फाहेन प्रगट करो ढवरा-[देश॰] घुन । ढोरी। लो। मगन । रट । दे० डोरी। जदुपति सोसह दोष को मवषि गई रि-सूर (चन्द०)। उ.-सूरदास गोपी पर भागी। हरि बरसनकीवरी ३. पानी या पौर किसी द्रव पदार्थ का भाधार से गिरना। लागी।-सूर (शब्द०)। पानी, रस यादि का एक घरसन से दूसरे बरतन में डासा ढसक-सी मनु०१ ठन ठन शब्द जो सखी खांसी में जाना । उला जाना। गले से निकलता है। २. सूखी खांसी जिसमें गले से ठन ठन शब्द निकलता है। मुहा०--बोतल ढलना- खूब शराब पिया जाना। मद्य पिया ढहना--क्रि० स० [सं० ध्वसन या हूँ]१ वीवार, मकान मावि जाना। शराब ढलना= मद्य पिया जाना। का गिर पसना । ध्वस्त होना । ४ लुहकना। ५. झुकना । भनुकूल होना। मान जाना।1०- संयो०क्रि०-जाना। मुसलमान इसपर ढल भो गए।-प्रेमधन०, भा० २, पू. २४५। ६ किसी सूत या डोरी के रूप की वस्तु का २. नष्ट होना। मिट जाना। उ०-तुलसी रसावल को निकसि घर से उभर हिलना । लहर खाकर इधर उधर रोनना। सलिल भायो, कोल कलमल्यो ढहि कमठ को बल गो।- सहगना । जैसे, पवर ठमना । ७ किसी पोर भाकर्षित तुलसी (शब्द०)। होना । प्रवृत्त होना। ढहरना-कि०म० [हिं० हार १ लुढ़कमा। गिरना। २ (किसी संयोकि-पहना। की भोर ) गिरना झुकना या अनुकूल होना । उ.-ढीले से हए से फिरत ऐसे कौन पै ढहे हो।-नंद००, पृ. ३५६ । ८ अनुकूस होना । प्रसन्न होगा। रीमना । उ.-देत न प्रघात. रीझि जात पात माफ ही है, नोनानाय जोगी जब मौकर ढहाना-कि. स. [हिं० ढार] १ लखकाना।२ मा दरत है।-तुलसी (शब्द०)। में से गोल पाने की ककी, मिट्टो मादि को लुढ़काकर पषम सयो० कि०-माना। करना। पटोरना। फटफना। B. पिघली या गली हई सामग्री से साँचे के द्वारा बनना । साँचे ढहरा'- सौर [सं० देहली] देहरी। देठापी दहलीजा में ढालकर बनाया जाना । ढाला जाना । जैसे खिलौने ढलना, सूर प्रभुकर सज टेकत कबहु टेकत ढहरि-सूर (पन्द०)। घरतन ढसना! ढहरी -सशा श्री० [सं०] मिट्टी का बरतन । मटका। 30---डगर मुहा०-साँचे में ढला इमा=बहुत सुवर मोर मुगल। न देत काहुहिं फोरि डारद दहरि ।---पूर (शब्द०)।