पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३२६

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ढहवाना ढाटा ढहवाना-क्रि० स० हि ढहाना का प्रे०रूप] ढहराने का काम पुलकित पल्लव मगुरिन मुख निज ढोपि ।-यामा.. __ करना । गिरवाना। पृ० १०७॥ ढहाना-क्रि० स० [सं० ध्वंसन या दह] वीधार मकान मादि गिराना। ढास--सबा वी० [मनु०] वह 'ठन ठन' शब्द जो सुखी खांसी माने स्वस्त करना । 7.-एक ही बान को, पाषान को कोट सब पर गले से निकलता है। इसक। हुतो चहुँ पोर, सो दियो ढहाई-सूर (शब्द०)। ढासना-क्रि० म० [हिं० ढोस] सूखी खांसी खाँसवा। ढहावनाg-क्रि० स० [हिं०] दे॰ 'ढहाना' । १०-तोपैथई फेरि ढासी- सौ. [हिं० ढोस ] सूखी खांसी। प्रति भारी। मदर मेरु ढहावन हारी।-हम्मीर०, पृ. ३०। ढाई-वि•सं• पद्धद्वितीय, प्रा. प्रड्डाइय, हिं० भदाई ] दो मोर ढाक-सबा पुं० [देश०] १. कूपती के एक ध का नाम । २. पलाश । माधा। जो गिनती में दो से पाषा अधिक हो। उ०-ससी ढाका उनकी गुफ्तगू या समझते। वह अपनी कहते थे, यह अपने ढाई पावन गला। ये।-फिसाना०, भा० ३, पृ० २४२ । ढाँकना-क्रि० स० [सं० ढक( = छिपाना)] १ किसी वस्तु को धूसरी वस्तु के इस प्रकार नीचे करना जिसमें वह दिखाई न मुहा०-ढाई होती माना = चटपट मौत माना। (लियो दे या उसपर गदंपादिन पड़े। ऊपर से कोई वस्तु फेला का कोसना ) जैसे,—तुझे ढाई घड़ी की पावे। ढाई चुल्लू या डालकर (किसी वस्तु को) मोट में करना। कोई वस्तु लहू पीना-मार डालना। कठिन दर देना (क्रोषवामय)। ऊपर से डालकर छिपाना । जैसे,-(क) पानी का बरतन पैसे,--तेरा ढाई पुल्ल सहू पोऊँ तब मुझे कल होगी। ढाई खुला मत छोड़ो, बरु दो। (ख) मिठाई को कपड़े से ढांक दो। दिन की पादशाहत करना=(१) थोडे दिनों के लिये खूब ऐश्वर्य मोगना । (२) दूल्हा बनना। संयो॰ क्रि०-देना। ढाई-पश श्री० [हिं० ढाना] १. लड़कों का एक खेल जिसे वे २. इस प्रकार ऊपर डालना या फैलाना जिसमें कोई वस्तु नीचे कौडियो से खेलते हैं। इसमें कोरियों का समूह एफ घेरे में छिप जाय । जैसे,—इसपर कपड़ा ढोक दो। रखकर उसे गोलियों से मारते हैं। २. वह कोटी वो इस' संयो०क्रि०-देना। खेल में रखी जाती है। ढाँखा-सहा पुं० [हिं० ढाफ] दे० 'डाफ' । उ०-तरिवर मरहि दाफ- सं ० [सं० मापाढक (=पलाश)] १. पसारा का करहिं बन ढोखा। मई पनपत्त फूति कर साखा ।—जायसी पेड़। छिउला। छोवल । उ.-मानदघन अजजीवन दत पं० (गुप्त), पृ० ३५६ । हिलमिलि ग्वार तोरि पतानि ढाक ।-घनानद, पृ० ४७३ । ढागा-वि० [देश॰] दे॰ 'ढालुवा' । मुहा. - ढाक के तीन पात = सदा एक सा निधन । कभी परा ढाँच-सहा पुं० [हि ढाँचा] ३. 'डांचा'। पूरा नहीं।--(निधन मनुष्य के संबंध में बोलते हैं)। ढाक तसे ढाँचा- पुं० [सं० देश या हि ठा] १. किसी वस्तु की रचना को फूहर, महुए तले की सुघड़ - जिसके पास धन नहीं रहता की प्रारभिक अवस्था में स्यूल रूप से सयोषित अंगो को वह निगुणी, मौर पनवासा सर्वगुणसपन्न समझा जाता है। समष्टि। किसी चीज को पनाने के पहले परस्पर जोर पारकर २ कुश्ती का एक पेच । दे॰ 'ढोक' । उ०-उस्ताद सम्हले बैठाए हुए उसके भिन्न भिन्न माग जिनसे उस वस्तु का कुछ रहते हैं। मगर जोर दे मनोहर के से दो तीन को प्राकार खडा हो जाता है। ठाट । दट्टर । डोल । जैसे,- करा सकते है। वस्ती, उतार, लोकान, पट, ढाक, कलाजग, अभी तो इस पालकी का ढांचा खड़ा हुपा है, तख्ते प्रावि विस्से पादि दांव चले पोर कटे-काले,०४। नही जड़े गए हैं। ढाक-सका पुं० [सं० ढक्का ] लड़ाई का बडा ढोल । -- क्रि० प्र०-खड़ा करना ।-बनाना। गोमुत, ढाक, ढोल परगवानक । बाजत रव पति होत २. भिन्न भिन्न रूपों से परस्पर इस प्रकार जोड़े हप लकड़ी भयानक !--सबल (शब्द०)। पादि के पल्ले या छ कि उनमें बीच में कोई वस्तु अमाई ढाकना-सहा पुं० [हिं०] दे॰ 'ढक्कन' । या जड़ी जा सके। जैसे, पौखटा, पिना बुनी चारपाई, कुरसी ढाकना-क्रि० स० [हि ] दे० 'ढाकना' । पादि। ३. पर। ठटरी । ४ चार लकड़ियों का बना ढाका-सम [सं० ढक] पुराने समय मे महीन सूती कपड़ों के हमा वह सड़ा बौखटा जिसमें जलाहे मिचनी' पटकाते हैं। लिये प्रसिद्ध पूर्वी बंगाल का एक नगर । जैसे, ढाके की चद्दर, ५ रचनाप्रकार। गढ़न । बनावट । जैसे,—इस गिलास ढाके की मलमल । का ढाचा बहुत अच्छा है। ६ प्रकार ।. भौति । तरह। ढाकापाटन-सा पुं० [देश॰] एक प्रकार का फुलदार महीन कपा। जैसे, यह न जाने किस ढांचे का मादमी है। ढाकेवाल पटेल-सका पु. ह. ढाक+पटेल (=पटी नाव) ] ढाँढा-वि॰ [देशी वढ (= निकम्मा । कपटी)] फपटी। तुच्छ । एक प्रकार की पूरबी नाव जिसके ऊपर बराबर छप्पर पशु। नीच। १०-रे ढोढा करि छोहड़ी कर करहारी छाया रहता है। छप्पर के नीचे बैठकर माझी नाव घेते है। काणि ।-ढोसा. (परि०२), पृ० २६६ । ढाटा-सका पुं० [हिं० डाढ़ी] १. कपडे की वह पट्टी जिससे हादी टॉपना--क्रि० स० [हिं०] १. 'डॉकना'। उ.-श्यामा हैन बोली जाती है।