पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३२७

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ढाठा १४४३ डार क्रि०प्र०-बांधना। ढादौन--संज्ञा पुं० [सं०ढिरिढणी ] जल सिरिस का पेड़। २. वह बड़ा साफा जिसका एक फेंट हादी मोर गाल से होता विशेप-यह पेड़ पानी के किनारे होता है मौर जगली सिरिस हमा जाता है। ३. वह कपड़ा जिससे मुरदे का मुह इसलिये से कुछ छोटा होता है। वैद्यक के अनुसार यह त्रिदोष, बाँध देते हैं जिससे फफन सरकने से मुंह खुस न पाय। कफ, कुष्ट मौर बवासीर को दूर करता है। ढाठा-संवा पुं० [हिं० गढ़ी] दे॰ 'ढाटा'। उ०-चारों ने ढाण-समा बी० [ देश० ] ऊँट की तेज चाल । गति । उ०-क्रम साना साया भोर ढाठे बांधा, चाँधकर तषवारें सटकाकर क्रम, ढोला पप कर, ढाण म चूके ढाल । पा मारू बीजी घले ।—फिसाना, मा० ३, पृ. ४४। महल, पाचइ झूठ एवाच !-टोपा.,दु.४०। ढाए-सधा लो[ मनु०] १ पिग्धाठ । चीख । गरज (वाघ, सिंह मुहा०-ढाण पालना = तेज चलाना। 30-ऊंट ने चढ़ता ही मादि की ) । दे० 'दहाई । २ चिल्लाहट । ढाण नहीं घासणो।-ढोला. (परि०१), १०२५४ । मुहा०-ढाड मारना=चिल्लाकर रोना। ढाना-क्रि० स० [हिं० ढाहना ] १. दीवार, मकान मारि को विशेष-दे० 'धार। गिरावाची उठी हुई वस्तु को तोड़ फोड़कर गिराया। ढाइसा-सा पुं० [सं० ] दे॰ 'ढाढस । ध्वस्त करना। ३०-जब मैं बनाकर प्रस्तुत करता हूँ तब वाह माफर ढा जाता है। कबीर म०, पृ.७९ । ढाडी-संशा पुं॰ [देश॰] दे॰ 'बादी'। उ०-धुन किसी ढाड़ी बच्चे संयो.क्रि०-बाना ।—देना । से पूछिए । मैं घुन उन नहीं जानता !-फिसाना०, भा० १, पु.२ २. गिराना। गिराकर जमीन पर मना । जैसे, किसी को ढाढ़-सवा देश० या हि० घाड़ ] चिल्लाहट । उ०-क्यों भला मारकर दाना। काम लें न ढाढ़स से । क्यों लगे ढाई मारकर रोने-चुमते०, संयो० कि०-देना। पू० ५२॥ ढापना-क्रि० स० [देश०] हे 'ढोपना', ढाद -संवा पुं० [अनु॰] एक प्रकार का बाजा जिसे ढाढ़ी ढाबरी–वि . डाबर (= गढा) 1 मिट्टी मोर कीपर मिना वाते हैं। उ०--ढादिनि मेरी नाचे गावै हौं हूँ ढाई बजाऊँ। हुमा (पानी)। मटमैला 1 गंदला । उ०-भूमि परत भा ढाबर -सूर., १०१३७। पानी । वनु जीवदि माया लपटानी ।-सुलसी (पन्द०)। ढाढना -क्रि० स० [ हि. टाना] दे० 'साढना' । उ०..-एक परे ढाबा-सबा पुं० [ देश०]पोलती। २. जाज। ३. परचत्ती । गाई, एक ढाढ़त ही फादे, एक देखत हैं ठा, पावक ४ रोटी पादि को पूफान । वह दूकान जहाँ लोग दाम देकर भयावनो-तुलसी (शम्द०)। भोजन करते हैं। ढाढस-संशा पुं० [सं० दृढ़, प्रा. रिढ ] १ सकट, फठिनाई या ढामक-सका पु० [ मनु० ] ढोल नगारे मादि का सन्द । उ०- विपत्ति के समय चिस की स्थिरता । घं। धीरष। मांति । ढमकंत ढोल ढमा सफला तब ढामक पोर 1--सूदन पाश्वासन । सास्वना । तसल्ली। उ०—क्यों भला काम लेन (शम्ब०)। १. बांस, मिट्टी प्रारि से पनी कच्ची छत । ढाढम से। क्यों लगे दाद मारकर रोने ।-भते०, ढामना-सका [ ] एक प्रकार का सांप। पृ० ५२। ढामरा-सा बी० [सं०] हसिनी । इसी । मादा हंस (को०] क्रि० प्र०-होना। ढार-समा पु० [सं०धार पा सं० अवधार, प्रा.मोढार>ढार1 मुहा०-ढाढ़स देना या बाँधना= बचनों से दुखी चित्त को यति । १ वध स्पान जो बराबर क्रमश नीचा होता पया हो करना । तसल्ली देना। पौर जिसपर से होकर कोई वस्तु नीचे फिसल या यह २. द साहस । हिम्मत। सके। उतार । उ०—सकुर सूरत प्रारम ही बिछरी क्रि० प्र०-होना। नाष बवाप। हरकि हार हरि ढिग मई दीठ ढिठाई मुहा०-ढाइस बांधना- साहस उत्पन्न करना। उत्साहित पाय :--विशारी (पम्द०)। २ पथ । मागं। प्रणाली । करना । उ०—(क) पबढे पावें पर सरस मीत मिलन दुर्षभ ढाढिन-सहा सा[हिं० ढाढ़ी ढाढ़ी की स्त्री। 30-कृष्ण ससार ।-नर प्र०, पृ० २३६ । (ब) ढेर हार हो दरब, जनम सुनि मपने पति सो हँसि ढादिन पो घोदी ४।---नव० दूजे ढार ढरे न । क्यो हूँ पामम धाम सौ नैना लागत नैन ।-- प्र०, पृ० ३३६ । बिहारी (शब्द०)। ३. प्रकार | ढांचा । छग । रचना। ढाढी-सधा पुं॰ [देश॰] [ सौ० ढाढिन ] एक प्रकार के नीच बनावट । उ०--(क) ग घरको मषतुले, देह पकों द्वार। पवैए जो जन्मोत्सव के पवसर पर लोगों यहाँ जाकर सुरति सुखी सी देखियत, बुदित मरम के पार ।-बिहारी बधाई मादिक गीत गाते हैं। उ०—ढाढ़ी पोर ढादिनि गावे (शब्द.)। (घ) तिय को मुख सुदर बन्यो, विधि फेन्यो हरि के ठाडै बजावं हरपि मसीस देठ मस्तक नवाई फै।-- परगार । तिला बीच को विदु है, गाल गोल इक द्वार ।-- सुर (शब्द०). मुबारक (शब्द०)।