पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३२८

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ढिंग ढार' ढार"..--सा स्त्री. १ ढाल माकार का, कान में पहनने का एक २ शराब पीना । मद्यपान करना। मदिरा पीना 1.से.-पास गहना विरिया । २.पछली-नामक गहना। -... फल तो खूब ढालते हो। ३ वेचना। बिक्री करना (इपाल)। ढार-सा स्त्री० [मनु] रोने का घोर शब्द। मातंनाद। चिल्ला- ४ थोड़े दाम पर माल निकालना । सस्ता बेंचना।..लुटाना। कर रोने की ध्वनि |-- - : '५ ताना छोड़ना। ध्यग्य दोलना। ५. चदा चतारना । - महा-ढार मारना या ठार मारकर रोना-पातनाद करना। . उगाही करना। (पआर) 1 ७.पिघली हई धात पाटिको चिल्ला चिल्लाकर रोना । . . . . साँचे में ढालकर बनाना । पिघली हुई. सामग्री से सांचे' के द्वारा निमिर्त करना। पैसे, खोटा ढालना, खिलोने ढालना। ढारना -क्रि० स० [सं०पार, हि० ढार+ना- (प्रत्य॰)]१. पानी . ३०-कोउ ढालत गोली कोउ चुदवन वैठिबनावत ।-प्रेम- या मोर किसी द्रव पदार्थ को पापार से नीचे गिराना। गिरा- ' धन, भा० १पू. २४ । ' कर बहाना । उ०—(क) ऊतरू देह न, लेइ-उसासू,। नारि चरित करि ढारद पासू ।-तुलसी (शब्द०)। (ख) उरण- - संयो॰ क्रि०-देना ।--लेना।' ' नारि माग भई ठाढ़ो नैननि दारति नीर ।-सूर०, १०१५७५। ढालवा-वि॰ [हिं० ढाल] [विल्सौ. ढालवी] पो प्रागे की मोर क्रमशः २. गिराना । ऊपर से छोडना । डायना । जैसे, पासा ढारना । इस प्रकार बरावर नीचा होता गया हो कि उसपर पड़ी विशेष-दे० 'डालना। . - , - - हुई वस्तु जल्दी से लुढ़क, फिसल या बह सके। जिसमे ढाल , हो । ढालदार ।- ढाल। जैसे,यह रास्ता ढालवा है, संमल- ३. चारो भोर घुमाना । डुलाना (चंदर के लिये) १०.रचि विवान सो साषि संवारा । चई दिसि-चैवर-करहि सब कर पखना । 30-हो इसी ढालवेंको जब, बस सहज उतर जावें हम। फिर समुख तीर्थ मिलेगा, वह पति उज्वल ढारा ।-जायसी (शब्द०)।४ धातु पावि को गला फर पावनतम ।-कामायनी, पु० २७९।२ ढाला हुमा साचे साँचे के द्वारा तैयार करना । दे॰ 'ढालना'-६।- के अनुरूप तैयार किया हुमा। दारस-सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'ढाढ़स'160--हर दिल को जरा ढालिया-सा पुं० [हिं० ढालना फूल, पीतल, तांबा, जस्ता-इत्यादि ढारस दीजिए।—फिसाना., भा०३, पृ. २७। ' पिघली घातुनो को सांचे में ढालकर बरतन, गहने मादि ढाल-सहा त्री० [सं०] तलवार, भाले मादि का वार रोकने का प्रस्त धनानेवाला । भरिया। खुलता। सांचिया । जो चमड़े, धातु मादि का बना हुमा थाली में भाकार का - ढाली-सहा पुं० [सं० ढालिन् ] ढाल से सुसज्ज योद्धा (को०) । " गोल होता है । फरी। चर्म । पारा फलक । ढातुओं-वि० [हिं० ढालना दे० 'ढालवा। विशेष-ढाल गड़े के पुटे पछए की पीठ, पात मादि कई चीजों दालुवाँ-वि० [हिं० ढालना] दे० 'ढालवा। की बनती है। जिस पोर इसे हाथ से पकड़ते हैं उधर यह गहरी पोर मागे की पोर उमरी हुई होती है। माग की भोर ढालू-वि० [हिं० ढाल दे० 'ढालवा। - इसमे ४-५ कोटे या मोटो फुखिया पड़ी होती है। ढावना-क्रि० स० [देश०] गिराना । ढाहना। मुहा०-ढाल वाधना ढाल हाथ में लेना। ढासा-सा ई० [सं० दस्यु] ठग । लुटेरा । गा। 3.-बासर ठासनि के ढका, रजनी चहुँ दिसि चोर । सकर निज पुर २ एक प्रकार बड़ा झडा जो राजायो को सवारी के साथ चलता राखिए, पित्त सुलोचन कोर ।-सुलसीप्र.,पु० १२२ । है। उ०-वैरख दाल गगन गा छाई। चला कटा धरती न समाई 1-जायसी ग्र०, पृ. २२४। - ढासना-सा पुं० [सं०/धा (= धारण करना)+मासन] । वह ऊंची वस्तु जिसपर बैठने में पीठ या शरीर का ऊपरी ढाल- सशा-खी० [सं० अवधार। वह स्थान जो पागे की पोर भाग टिक सके। सहारा । टेक । उठेगन । उ०-वह पलिद - क्रमश इस प्रकार वरावर नीचा होता गया हो कि उसपर पड़ी को एक स्तम का ढासना लगाकर सो.. गया ।---३० न०, हुई वस्तु नीचे की मोर खिसक या लुढ़क या बह सके । उवार । पृ० २५४ । जैसे,—(क) पानी ढाल की मोर पहेगा। (ख) वह पहाड़ २. तकिया। शिरोपधान । की ढान पर से फिसल गया। २. ढग । प्रकार | तौर तरीका। ढाइना-क्रि० स०सं० ध्वसन दीवार, मकान मादि को गिराना। 10-(क) सदा मति ज्ञान मे सु ऐसो एक ढाल है। हनु- 'भान (शब्द॰) । (ख) बाल श्री सतसय उपारा।-धरनी०, ध्वस्त करना। ढाना। उ०-(क) ढाइत भूपरूप वरु पु० ४१ ।। ३ उगाही । चंदा । बेहरी।-(पजाब)। मूला। चलो विपति-वारिधि मनुकुला ।-तुलसी (शब्द०)। (ख) वृक्ष वन काटि महलात ढाहन लायो नगर के पार ढालना-क्रि० स० [सं०-धार] १. पानी या भौर किसी द्रव पदार्थ दोनो गिराई।--सूर (शब्द०)। को गिराना । मॅडेसना । जैसे,—(क) हाय पर पानी ढाल दो। विशेष-दे० 'ढाना। (ख) घडै फा पानी इस बरतन में डाल दो। (ग) बोतल की दाहा-सा पुं० [हिं० वाहना] नदी का ऊंचा करारा। - . घराब गिलास मे ढाल दो। ढिगा -य. [हिंदिग] दे. ढिग'। उ०—करना झरे दसो सयो० कि०-देना।-लेना। दिस द्वारे, कस ढिंग मावो साहेब तुम्हारे।-घरम..., महा०-बोतल ढालना- शराब पीना। मद्यपान करना। पु० १६ ।