पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३२९

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ढिंगताना १७५ दिलाई ढिंगलाना-फिम ढकना। गिरना। 'डिटॉना--सहा पुं०-1 टा] दे॰ 'ढोटा"। उ-रूपमती दिगलाना--क्रि० स० [पूर्वी रूप गिलाना] ढहाना । लुढ़काना। मन होत विरागो, बाजबहादुर' नद ढिटोना ।-पोद्दार , गिराना हराकर गिलों की पंमि०प्र०, पृ० ३५६ । . - - वामा -aौको.पं.मा दिठपनो-सका पृ० [हिं० ढीठ+पन (प्रत्य॰)] धृष्टता । "3 "- .: r ढिंढा-संश पुं० [हिं० ढोढी ( = नाभि) पेट । उदरं । विठाई । २०-न पर फेसन कर ढिठपन ।' मलये मलापे -भरि करह निधुवन ! -विद्यापति, पृ०.४५३ । -, ' ... ...... दिड खाइन जनम गवाइन, काहुन मापु ..समार.।-गुलाल., डिठाई-संवा सो [हिं०, ढीठ + आई .(प्रत्य॰)] - गुरुजनों के ढिढोरना-क्रि० स० [अनु॰]-१-मंथन, करना ।मथना। -विलोड़न . समक्ष, व्यवहार की अनुचित.स्वच्छदता । सकोप का धनुचित -- -- करना । २..हाप डालकर टूदना। खोजना। तलाश करना। .मभाव । वृष्टता । चपलता-गुस्ताखी । ३०-छमिहहिं सज्जन मोरि ढिठाई।—तुलसी (शब्द)-.२.- लोकलज्जा का . उ.--(क) यो पिए भजिहूँ घनमानद, बैठी रहैं-घर पैठि अमाव । निर्लज्जता । उ०-गोने की चूनरी वैसिये है, दुलही । ढिढोरत-घूनानद (शब्द.)। (स) भूलि गई माखन की चोरी खात रहे घर सफल दिडोरी।विधाम (शम्द०)। . प्रव्ही से विठाई वगारी।-मति न०, पृ. २६६ । - क्रि०प्र०-बगारना = (१) -घृष्टता फरना । (२)-निलंत्रता ढिंढोरा-वंश पुं० [पनु, दम डोल] १. वह - ढोल जिसे बजाकर - करना। सर्वसाधारण को किसी बात को सूचना दी जाती है.। घोपणा करने की मेरी । डुगडगिया। २.30 । - - -

.-...-" ढिठोना-संध पुं० [हिं० ढोटा ] पुत्र।' ३०-हगर गमगे

मुहा०—हिंढोरा पीटना या बजाना=ढोल बजाकर किसी बात ' - डोलने, परी गठि ठहकाय । निहर ढिठोना नंद के, डरे उठे की सूचना सर्वसाधारण को देना । धारो पोर घोपित करना। बरराय !-ब्रज. पं०, पृ.५। । - 'मनादी करना। उ०-खुदा जाने इन्सान क्या बात करता दिपनी-संज्ञा श्री [देश॰] 1. फल या पत्ते के साथ लगा हुया टहनी है। तुम जाकर हिंढोरा पिटवा दो।—फिसाना०, भा० ३, ' ' का पतला नरम भाग। २. किसी वस्तु के सिरे पर दाने की पृ० १२०। .... - तरह समराहुपा भाग। ठोठी । ३. कुर्ष का मग्रमाग । २. वह सूचना जो ढोल बजाकर सर्वसाधारण को दी जाय। बोंडी।चूक . . . घोषणा मनावी। उ०—जो में पैसा जानती प्रीति किए दिखरी-सहा श्री [हिं० डिवा"] १. टीन, शीशे, या पकी मिट्टी दुख होय । नगर ढिढोरा फेरती, प्रीति करो जनि कोय । की डिबिया या कुप्पी जिसके मुह पर बत्ती लगाकर मिट्टी . (प्रचलित)। ' .- का तेस, जलाते हैं। मिट्टी का तेल जलाने की गुच्छीदार - - डिरिया। २...बरतन में सांचे के पल्ले के तीन भागों में से दिए-क्रि.वि.हि.] ३० ढिग'। उ०-एक से हंसा एके। सबसे नीचे का माग । साँचे की पेंदी का भाग। ५ सहित प्रदान जाति ढिए एफै।-हम्मीर०, पृ०९। ढिबरी-सक स्त्री० [हि ढपना 1१ किसी कसे, जानेवाले पेच ढिकचन- पु.देश०] गन्ने का पक भेद।। के सिरे पर लगा हुमा लोहे का चौड़ा टुकड़ा जिससे पेच बाहर ढिकलना-कि०म० [हिं० ढकेलना] धक्के से भागे जाना। मागे .. नहीं निकलता । २. पमडे या मुष को वह चकती जो परखे होना। उ.--बिना पढ़े ही मैं मागे को जाने किस वस से में इसलिये लगाई जाती है जिसमें तकलान घिसे। ढिकला ।-मा, पृ. ५४॥ ढिकुली-सका सी० [हिं०] दे० 'कुली'. माग मावा । वित उनमान ढिबुवा इक पावा ।-कबीर ग्रा, ढिंग-क्रि० वि० [सं० दिक (=मोर)] पास। समीप । निकट। पृ०२३७। .. निराला ... नजदीक । उ-मुरली धुनि सुनि सबै ग्वालिनी हरि के लिंग ढिमका, ढिमाका-सर्व० [हिं० प्रमका का मन्त्री - बलि पाई।-सूर (पन्द०)... - . . अमुक 1 पमका । फलों । फलाना।... . विशेष-यद्यपि यह. संशा शब्द है, तयापि, इसका प्रयोग सप्तमी · यो फलामा - वि.मका-ममुक अमुक- मनुष्य । ऐसा ऐसा विमक्ति का नोप करके प्राय. क्रि०वि० वतू ही होता है। मादमी। ढिग-सब सी. पास ! सामीप्य । २. सठ । किनारा । छोरा दिलड़ा-वि० [हि ढोला] 2. 'ढीला'। उ.-जन रैदास को उ.--सेतुबष ढिग पढि रघुराई। चितव, रुपालु, सिंधु पनजरिया तेरे दिल परे परान ।-२० बानी, पृ. २७ । - बहुताई।--तुलसी.( शन्द.)। ३. कपडे का किनारा। दिलढिल-वि० [हिं० ढीला ] दे० 'ढिलढिला. - पाराकोरं । हाशिया । उ०--(क)लास, विगन की सारी 'ढिलढिना-वि० [हिंढीला , ढीला ढामा.। २. (रसप्रति ताको पीत मोदनिया कोनी ।—सूर (शब्द०)। (स) , जो गाढ़ा न हो । पानी की तरह पतला। . - पट की लिंग कृत ढोपियन सोभित सुभग सुदेस । हृद.रद घर ढिलाई- मोह. ढीला ] . ढीला होने का भाव । कसा ' छवि देखिपत सव रबछद को देख।-बिहारी (शब्द) - व रहने का भाव । २. विपिलता । सुस्ती। भालस्य । किसी । क्रि० प्र०-फेरना। -कि०म० [हिं० ढकलना जाने किस वल से ० [हिं०] दे० 'देवुमा ।