पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३३०

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ढिलाई दोल कार्य करने में मनुचित बिलब। पैसे,-तुम्हारी ही ढिलाई मिलाय लेऊ, हहै बात सोई भगवंत जू को मावती। से यह काम पिछड़ा है। -हनुमान (छन्द०)। दिलाईर-संवा बी० [हिं० ढीलना ] ढीलने की क्रिया या भाव। ढीठ-वि० [सं० धृष्ट, प्रा. लिट्ठ ) १ वह जो गुरुजनों के सामने ढीला करने का काम। ऐसा काम करे जो पनुचित हो। बड़ों का प्रकोर या र न रखनेवाला। बड़ों के सामने अनुचित स्वच्छदवा प्रकट दिक्षाना'-कि. [ हि० ढोलना का प्रे०रूप] १ ढीलने का करनेवाला । वेपदव। शोख । उ०-बिनु पूछे कछु कहते काम कराना । २. ढीला कराना। गोसाई सेवक समय न ढोठ ढिठाई।-तुलसी (इन्द०) ढिलाना -क्रि० स०१ ढोला करता। २ कसी या बंधी हुई २. किसी काम को करने में उसके परिणाम का भय न करने- वस्तु को खोलना । उ.-बसु स्वामी जब चठे प्रभाठा । लन वाला। ऐसे कामो में प्रागा पीछा न करनेवाला जिनसे मोगों बंधे लखे सुखदाता । खेती हित ले गए ढिलाई। भेद न जान्यो का विरोष हो । मनुषिन साहस करनेवाला। रिना र का। गए चोराई।-रघुराज (शब्द०)। उ.-पैसे ढीठ भए हैं कान्हा दपि गिराय मटकी सब फोरी:- ढिल्लद-वि० [हिं. ढीला] १. ढीत करनेवाला। मदर । सुस्त । सर ( शब्द०)। ३. साहसी । हिम्मतवर। हियाववाला। दिल्लील-सा बौ• [हिं० ढीला ] दिल्ली का एक पुराना नाम । किसी बात से जल्दी नर जानेवासा । दिल्लीवेल... पुं० [हि ढिल्बी+-(पति)] दिल्ली का ढीठता -संज्ञा खौ० [सं० पृष्टता विठाई। नरेष्ठ । दिल्टीपति । ढीठा'-वि० [हिं० ढीठ] दे॰ 'ढोठ। ढिल्लेस-सा पुं० [हिं० दिल्ली+ईस] दिल्ली का राजा। ढीठा -सा पुं० [सं० घृष्ट ] ढिठाई । घृष्टता। दिसरना -क्रि० प्र० [सं० ध्वसन ] १. फिसल पड़ना । सरक डोटयो-सबा पुं० [हिं०] २०ढीठा'। पटना। २. प्रदूत होगा। झुकना । २०-उक्ति युक्ति सब ढीढ़ी-सबा . [देश॰] मांस का कीचड़। उ०-मौड़े मुख लार बहे तबही विसरे। बबपरित पदि तिय पै दिसरे-निश्चम मौखिन में ढीर, राषि कान में, सिनक रेंट भीतन में डार (सन्द.)।३ फलों का कुछ कुछ पकना। देति ।-पोद्दार भमि०प्र०, पृ० १६३ । होका-सहाबौदिश० दे० 'हेकुली' । ३०-ल्यो की बैक, पवन का मन का ढोठिपन-सक पु.[हि ढोठ+पन (प्रत्य॰)] घृष्टता । विठाई। सा- ढीकू, मन मटका ज बनाया। सत की पाटि, सुरत का पाठा, उ.-तखनक ढीठिग्न पहा न जाय माजे विमुसी पनि सहषि नीर मुकलापा |-कबीरपं०, पृ० १६१! रहलि लजाय।-विद्यापति, पृ. ५२ । ढींगर-सहा पुं० [सं० डिनर] १.बड़े रील रोल का पादमी। दीमा-सक [देश॰] १. पत्थर का बड़ा टुकड़ा। पत्थर का ढोका। मोटा मुस्टडा पादमी। २. पति या उपपति। 10-कह 10-सिला ढीम ढा, इला वीर वाहै। षदा पढ़ सई, भड़ा कवीर ये हरिके काज । जोइया के ढींगर कौन है साम।- भड ह है।-सूदन (सन्द०)। कबीर (शम्द०)। ढीमड़ोल-सक पु. [देश॰] कृप । कुर्मा।-(हिंगल)। ढद-सन पुं० [हिं०] दे० 'डौंढा' । दीमर -सबा सी० [सं०वीवर, या देश०] १. धीमर या धीवर ढींढस-समा पु० [सं०टिएिश] डिंडसी नाम की तरकारी। टिंडा। जाति को स्ली। २. वह स्त्री को जल मादि भरती है। उ ढाँढा-संशपुं० [सं-दुरिढ (= लंबोदर, गणेश)]१.बड़ा पेट। ढीमर वह धीमर पहिरि तूमर मदन परेर। चिहि पुरावत निकला हुमा पेट । पाहिक पत बेर सुरेर ।-स० सप्तक, पृ. ३८१।। मुहा०-ढींढा फूलना-पेट में बच्चा होने के कारण पेट निकलना ढोमा-संम पं० [देश॰] ढेला । ईंट पत्वर मावि का टुकड़ा ।ौका। २. गर्म। हमल। ढील-मक्ष बी० [हिं. ढीला] १.कार्य में उत्साह का प्रभाव । मुहा०–ढोंढा गिराना = गर्भपात करना। शिपिलता। प्रतत्परता । नामुस्तैदी सुस्ती। मनुचिट ढीगे+-क्रि- वि० [हिं० दे० 'दिग'। । विसंब। पैसे, इस काम में ढीस करोगे तो ठीक न होगा। ढीकुलीg -संभ जी. [हिं०] दे० 'ठेकली'। उ०-सुरति ढोकूमी उ०-व्याह जोग रंमावती, वरण त्रयोदस माहि। ताठ देगि से जल्पो, मन नित दोलनहार । कंवल कुवा मैं प्रेम रस पीवै विवाहिवे कामु ढोल को नाहिं !-रसरनन, पृ. ८७ बारंबार । कबीर , पु. १८। क्रि०प्र०-करना। दो-संशा स्त्री० [हि. हीह या ढीह ] दे॰ 'ढोह' । मुहा०-ढोल देना=म्यान न देना। दतषित न होना। ढीचा- संज्ञा पुं॰ [देश॰] १. कूबड़ । २. सफेद पील। बेपरवाही करना। उ०-हतर तो गजब करते हैं, प्रब ढीटा-सा सी० [देश॰] रेखा । लकीर । डंडोर। उ०—रेस छौदि फरमाय डीख किसको है।-फिसाना, मा.३, पृ. ३२३।। जाऊँ तो ग्राऊँ मछिमन जो तें भीख बिनु दिप भीख मीच हो २.बंधन को ढीला करने का भाव । गेरी यो कडा वा ना न न पावती । कोक मदभागी यह राम के न माने पायो, दरसन रखने का भाव। पावत हौं देत न सकावती। बीट मेट देऊँ फिर डीट ही मुहा०-दील देना=(१) पतंग की सैर बढ़ाना बिसे ग