पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३३१

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ढोबर पागे बढ़ सके। (२) स्वच्छदता देना। मनमाना करने का मद । सुस्त । धीमा।शिथिल । जैसे, उत्साह ढीला पड़ना। अवसर देना। वश में न रखना। मुहा०-~ढीली माखमद मद रष्टि । मघाखुली प्रांख । रसपूर्ण ढीला-वि० दे० 'ढोला'। या मदभरी चितवन। 3- देह लग्यो ढिग गेहाति तक नेह दील-संक्ष पुं० [देश॰] वालो का कोडा।। मिरबाहि । ढोली मंखियन ही इतै गई कनखियन पाहि।- बिहारी (शब्द०)। दीलना-क्रि० स० [हिं० ढीला] १. ढीला करना । कसा या तना ९ मट्ठर । सुस्त । भावसी । काहिल । १. जिसमें काम का वेग हमा न रखना। बधन मादि झी लवाई चढ़ाना जिससे बंधी कम हो । नपुंसक। हुई वस्तु मोर मागे या इधर उधर बढ़ सके। जैसे, पतग की मेरी ढोलना, रास ढोलना । ढोज्ञापन-मया पुं॰ [हिं. ढीलापन (प्रत्य०) ] ढीला होने का संयो० कि०-देना। भाव । पिपिलता। २.बंधनमुक्त करना । छोर देना। ३०--तापै सूर चछरुवन ढाला'--वि का । म्ह० ढाला। और ढीली--वित्री० [हिं० ढोला] दे० 'ढीना'। ढोलत पन बन फिरत बहे ।---सूर (शब्द०)। ३ (पकड़ी ढीली-सषा श्री [हि. मोला] ३० "दिल्ली'। 30-ढीसी हुई रस्सी मादि को) इस प्रकार छोड़ना जिसमें वह मागे माल पुणि जोईयर । उभी छई मथुरा मढण राय । या नीचे की मोर बढ़ती जाय । होरीमादि को बढ़ाना या बी० रासो, ५.८1 सखना । जैसे, कुएँ में रस्सी ढोलना। ४. किसी गाड़ी वस्तु ढीह-सझ पु० [सं० दीर्घ, हि० दीह ] ऊंचा टीला । ह । को पतला करने के लिये उसमें पानी मादि डालना। ५. ढीहा--मुसा पुं० [हिं० ढोह हह । ढोह। ढोला) 3०-सो नाग सभोग करना। प्रसग करना। (बाजारू)। ६. धारण जी के वश को तो चहा कोक हतो नाहीं। पौर परहू गिरयों करना । जैसे,—माज वे धोती ढोनकर निकले हैं। परपी ढीहा होइ रह्यो ।-दो सौ बावन०, भा० १, पृ० २६ ॥ दीवम ढाना-वि० [हिं० ढीला-ढाला] जो ठोस न हो। शिथिन । ढढा-सका पुं० [हिं० हूँढना पाई। उधक्का । ठग । लुटेरा। २०-ढीलमढाला फूला हुघा घास का गट्ठर |--माधुनिक०, उ.-चोर ढुट बटपार मन्याई अपमारगी कहावे जे।-सर (शब्द०)। ढीला-वि० सं० शिथिल, प्रा० सिठिल] १. वो कसा या तना हुमा दंढन--- पुं० [सं० ढुएढन] तलाश । खोज। पता सपाना न हो। जो सब मोर से खूब खिंचा न हो। (डोरी, रस्सी कोला तागा मादि) जिसके ठहरे या बंधे हुए छोरों के बीच झोल दुढपाणि -सा पुं० [सं० दरकपाणि ] १. शिव के एक गण हो । जैसे, लगाम ढीली करना, होरी ढीली करना, चारपाई। का नाम । २. दरपाणि भैरव। उ.-पुनि काल भैरव (की बुनावट) ढीली होना। दुंढपाणिहि मौर सिगरे देव को।-कबीर (शब्द०)। मुहा०--ठीली छोडना या देना-वधन ढीला करना । अकुश दुडपानिसमा पुं० [हिं० दुढपारिग ] दे॰ 'ढुढपाणि'। न रखना। मनमाना इधर उपर करने के लिये स्वच्छ करना। ढा-सवा सौ. [सं० हुएढा] १. पुराण के अनुसार एक राक्षसी २. जो खूब कसकर पकड़ा हुमा न हो। जो मच्छी तरह जमा का नाम को हिरयपश्चिपु की बहिन थी। या बैठा न हो। जो दृढ़ता से बंधा या लगाहमा न हो। विशेष—इसको शिव से यह वर प्राप्त पाकिमग्नि में न जलेगी। जैसे, पेंच ढीमा होना, जंगझे की छड ढीली होना। ३ जो जब प्रसाद को मारने के अनेक उपाय करके हिरण्यकशिपु खूब कसकर पकड़े हुए न झे। जैसे, मुट्ठी ढीली करना, गांठ हार गया तब उसने दुढा को बुलाया। व६ पल्लाद को लेकर ढीली होना, बधन ढीला होना। ४ जिसमें किसी वस्तु को भाग में बैठी। विष्णु भगवान की कृपा से प्रह्लाद तो न जले, गलने से बहुत सो स्थान इधर उधर छूटा हो। पो किसी दुढा अलकर भस्म हो गई। सामनेवाली चीज के हिसाब से बडा या घौडा हो। फर्राख । +२ भुने अन्न लाई प्रादि का चाशनी के साथ बना लङ्क । कुणादा। वैसे, ढोला जूठा, ढोला प्रमा, ढीला पायजामा । १.जो कहा न हो। बहुत गोला। जिसमें बल का भाग दुढा-सा पु. [ से० दुएढन (= मन्वेषण, खोजना) ] पृथ्वीराज पधिक हो गया हो। पनीला। जैसे, रसा ढीला करना, रासो मे वरिणत एक राक्षस । उ०-टूढ़ि टूडि खाए नरनि चामनी ढीली करना। ६ को अपने हठ पर मड़ा न रहे। ता ढुंढा नाम -१० रा०, ११११७ । प्रयासमा सकल्प मे शिथिल । जैसे,—ढीले मत पडना, ढाहर -सहा . [ देश ] बयपुर राज्य का एक पुराना बराबर भपवे रुपए का तकाजा करते रहना। नाम । उ०-पायो पत्र उताल सौं साहिबौधि अजएस । सुत कि०प्र०-पहना। सूरज सौ तब कली पंमि दुढाहर देस ।-सुजान०, पृ० २५ । ७. जिसके क्रोध मादि का वेग मंद पड गया हो। घीमा । शाट । बिशेप-इस राज्य की भाषा षो जयपुर, पलवर,-हाडोती मावि नरम । जैसे-जरा भी दौले पड़े फि वह सिर पर चढ़ में बोली जाती है, बाज भी 'ढाणी' या 'क्यपुरी' कही जाती जायगा। है। राजस्थानी गद्य साहित्य का अधिकाश इसी भाषा में प्राप्त क्रि०प्र०-पड़ना। होता है, राठौर पृथ्वीराज को 'सि किसन समणी री'को