पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३३२

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१६५ दुखकना टीका जो १६७३ में लिखी गई थी, इसी भाषा के गद्य मे प्राप्त 'सईस ते रईस ते नफीस स सोस' उसनीस बना वाम पोर होती है। दूरको।-गोपाल (शब्द०)। ३ ढरकना ! टपकना । बहना। ढि सम्बा ०. [सं० दुण्डि ] - गणेश का एक नाम । ये ५६ ढरको-सदा [हिं० दुरकना ] लेटकर किया जानेवाला विनायकों में से हैं। विश्राम । लेटने या पायन करने की स्थिति । झपकी। विशेष काशीखंड में लिखा है कि, सारे विषय इनके इंढे हुए दरनारसमा पुं० [हिं० ढार ] दे० 'हुनमुनिया'-२ या पन्वेषित हैं। इसी से इनका नाम दुढि या दुढिराज है। दरना-कि० म० [हिं० ढार ] १. गिरकर पहना। ढरकना । द ढित-वि० [सं०.दुपिढत ] अन्वेपित । १ हुँदा हुमा (को०] । ढसना । टपकना । नैनन दुहिं मोति मोर मूगा । कस गुह दुढिराजसमा पुं० [सं० दुएिढराज ] दे दुढि' । । खाय रहा हगगा।-जायसी (शब्द०)। छापा ढंढो'-सक्षा स्त्री॰ [देश॰] १ बाँहाबाहु । मुसुका ., माहवाह13 . " संयोक्रि०-परना। दुद्री-सझा खो[हिं० ढोंढ़ ] दे॰ 'ढोंढो',

२. कभी इधर को उघर होना। इधर उधर डोलना। ग-

मुहा०-दुढिया चढ़ाना=मुसके बांधना । उ०-उसने झट - .मगाना । ३ सया रस्सी के 'रूप की वस्तु का इधर उधर उसकी पगडी उतार दुढिया चढाय मूछ, डाढ़ी भोर सिर मूड हिलना । लहर खाकर डोलना । लहरामा। जैसे, पंवर रय के पीछे वाध लिया।-लल्लू (शब्द०)। दुरना। उ.-जोवन मदमाती इतराती देनी दुरत कटि ढुंढवाना-क्रि० स० [हिं० ढूढ़ना या प्रे० रूप ] ढूढने का काम पे पनि बाढी। -सूर (शब.)। ४ लुढ़कना। फिसल कराना । बोजवाना। तलाच कराना। पता लगवाना। पहना। ५ प्रवृत्त होना। ६ झुकना ! उ.-कभी दुर दुर हुँदाई-सक बी [हिं० हूँढना ] ढूढ़ने का काम । कर स्त्रियों को भाति दुनमुनिया भी खेलते हैं। -प्रेमघन, मा. २. पृ० ३४४ । ढंढाहरी-सबा खौ० [हिं०ढूढ़ना ] खोज । तलास । . संयो०क्रि०-पड़ना। . दुकना-कि० प. [ देश०] १ घुसना । प्रवेश करना। सयो० कि०-जाना। ६. मनुकूल होना। प्रसन्न होना । कृपालु होना। उ.-रिन - करनी मोपै दुरो कान्ह-गरीव निवाज-!-रसनिधि (शब्द॰) । २ झुक पड़ना । टूट पड़ना । पिल पडना। एकबारगी किसी मोर पाया करना। दुरदुरिया-वि• [ हि ढुरना ] ढलवा। बढ़ाव उतारवाला। उ.-मग मोके पातर मुंह दुरदरिया, चूहै, मेछन के रेखा- संयो० कि.--पड़ना। .. . शुक्ल अभि. न. (सा०),पृ. १४०1- ३ किसी बात को सुनने या देखने के लिये माह में छिपना। लुकना । पात में छिपना । जैसे, ढुककर कोई बात सुनना।

दुर दरहरी-सा स्त्री० [हि० वरना ] १ लुढकने की क्रिया का भाव । किसी को पकाने के लिये दुकना। 30---(क) दुकी रही नीचे ऊपर होते हुए फिसलने या बढ़ने की क्रिया । उ०- . जह तह सब गोरी। (ख) जउ न होत चारा कह पासा । लुटि सी करति कलहस जुग देव कहे, तुठि मोतिसिरि छिति कित चिरिहार दुकत लेइलासा ।—जायसी (शब्द॰) । बुटि दुरहरी लेति ।-देव (शब्द.)। " हकास--संवा सौ. [ अनु० दुक दुक ] पानी पीने की बहुत अधिक क्रि० प्र०-लेना। इच्छा । प्रषिक प्यास । २. पगडरी। पतला रास्ता। नथ में लगी हुई सोने के गोल क्रि० प्र०-लगना। दानों की पक्ति। दुक्का -सा [देश दूका ] दे० 'दुका। दराना-क्रि० स० [ हि दुरना ] १ गिराकर बहाना । उरकाना। दुच्ची -महापु० [ देश ] घुसा। मुक्का । .दुलकाना । टपकाना। २ इधर उधर हिलाना । लहराना । 1-ध्वजा फहराया चौर सो दराय आगे बीरन बताय यो दुटौना सका पु० दे० 'डोटा। पसार वाम पाम के। हनुमान (शन.)। ३ लुढकना। इनमनिया-सा बी० [हिं० ढनमनाना] १ लुढ़कने की किया फिसलकर गिरना। '. या भाव । २ सावन में कजली गाने का एक ढग। जिसमें स्त्रिया एक माल में घूमती हई गोल बांधकर बायसेन दुरापना@-क्रि० स० [हि दुराना] दे० 'दुरना-१' 1 30-पलक . पजाती हई गाती मौर बीच बीच में भती' और । - न सावति, रहस ध्यान परि, बारबार दुरावति पानी।- होती हैं। । - क्रि०प्र० खेलना । उ०-रात को कजली गाती व नतिया दुरुश्रा --या • [ हि दुरना ] गोल मटर । राय मटर । !" भी खेलती है। प्रेमधन:; भा॰ २, पृ० ३२६ ।

  • दुरुकना-कि० . [ हि दुलकना ] दे० 'दुनकना । ।

'दुरकनाल-कि०म० [हिं० ढार लुढ़कना । फिसलकर सरकना दुरौं -40 श्री[ हि• दुरना ] वह पतला रास्ता जो लोगों के बसते या गिरना। उ०-लोग चढ़ी मति मोहन को गति मोह महा चलते बन जाय । पगडंगे। गिरि ते दुरकी।-देव ()। २ झुकना । उ०-सग में दुलकना-कि०म० [हिं॰ ढाल + कना (मस्य), वा • लुण्ठन,