पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३३९

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हंगहाल संगहाल-वि० [फा०] १. निधन। गरीच । २ विपद्मस्त । कष्ट तंडरोण-सपा पु० [सं०तएडरीण] १ वह पानी जिसमें चावल में पडा हुमा । ३ बीमार । रोगग्रस्त । मरणासन्न । पोया गया हो। चावल का धोवन । २. माह। ३ रच तगहाली-सा सी० [फा० तग+म. हाल+फा.६ (प्रत्य॰)] मुखं बर व्यक्ति । ४. कीड़ा मकोड़ा [को०] । १. तग होने की स्थिति । कठिनाई। २ प्रमाव। ३ तंडक्षा-सका पुं० [सं० एल] १ चावल । २ वायविडग । ३ संधी परेशानी । विवकत । ४ मर्याभाव की स्थिति [को०)। शाक । पौलाई का साग । ४. प्राचीन काल की हीरे की एक तंगा- ० [देश॰] १ एक प्रकार का पेड। २. अषता । इपल तौल जो माठ सरसों के बराबर होती थी। पैसा। तंडलजल-सबा पुं० [सं० तण्डलजल] पावल का पानी जो वैद्यक गिश--सहा श्री. [हिं०] दे० 'तगी'। में बहुत हितकर बतलाया गया है। यह दो प्रकार से तैयार तंगी-संज्ञा स्त्री॰ [फा०] १ तग या संकरे होने का भाव । सकी- किया पाता है-(१) चावल को कूटकर मठगुने पानी मे यंता । सकोच । २ दुम । तफलीफ । क्लेश । ३ निधनता । पकाकर छान लेते है, यह उत्तम तलजल है। (२) पावल गरीवी । ४ फमी। उ०-बध ते निबंध कीन्हा तोड सब को थोडी देर तक भिगोकर छान लेते हैं। यह तंडलजल तगी। कहैं कधीर प्रगम गम कीया नाम रग रगी। कबीर साधारण है। १०, मा. पु०७७॥ तंडुलांबु-- [सं० तण्डलाम्बु]. वालजल । २ मारा पीच । तंजन-सका.[फा. ताजियाना ] दे० 'ताजन' । उ०—जल मिनु पंडुला-सका खी० [सं०.तएखा] १. बायबिडय । ककड़ी का पोषा। पदुम घ्रानि विनु चपा विद्या चतुर षोड दिनु तपन । स० २ बाईका साग । । परिया, पृ० ६. संडलिया-सबा बी. [सं० तएल ] चौलाई। चौराई। तंजेव-सञ्ज्ञा स्त्री० [फा. तनव ] एक प्रकार महीन और तंडुली-सबा - [सं० राडली ] १. एक प्रकार की ककड़ी। बढिया मलमल । २. चौलाई का साप । ३. यवतिक्ता नाम की लता। तंड'–राचा पु० [सं० तारइव ] नुस्य । नाच । 30---बहत गुलाव के तंडुलीक-सजा ० [सं० तएप्लीक] धौलाई का साग । सुगध के समीर सने परत कुही है जात जत्रन के तह को। तंडुलीय-सम्रा पुं० [सं० तएडुलीय ] चौलाई का साग । -रसकुसुमाकर (शब्द०)। तंडुलीयक-सा पुं० [सं० तण्डुलीयक ] १. बाविष्ग । २. चोलाई तंडो-सबा पुं० [सं० तएड ] एक ऋषि का नाम । का साग। वडलमा पु. [ से तएडा] । वध | सहार । २ पाक्रमण। तंडलीयिका-सा भी. [सं० तएडलीयिका ! वायविडंग । प्रहार । उ०-जिनबीरन बसि करन दुध पारायत तडहि ।- तंडल -सुका स्त्री० [सं०एल रायविडंग । विग । पृ० रा०६५६ तंडुलेर--सा . [सं० तएलेर ] पोलाई का साग। तंडक-सा पुं० [सं० वएडक ] १. खान पक्षी । २ फेन । ३. पेड़ का तना। ४ वह वाक्य जिसमे बहुत है समास हो। ५. वडुलेरक-सा पं० [सं० एलेरक ] चौलाई का साग । तंडलोत्थ-सा पुं० [सं० तएलोरप ] पावल का पानी। दे० बहरूपिया। ६ सज्जा । सजावर (को०)। ७. ऐंद्रजालिका माजीगर (को०)। ८ पूर्वाभ्यास अपवा पूर्व प्रभिनय (को०)। ताल बल'। तंडना-क्रि० स० [सं० तण्ड ] नष्ट करता । समाप्त करना। , तंदुलोत्थक-सबा पु० [सं० तण्डुलोत्पक ] दे० 'तडुलोरथ [को०] । उ.-तोप नगारो तडियो, मसुरी व ममाप ।-पिखर०, वडुलोदक-सका पुं० [सं० तएडलोदक] चावल का पानी। दे० पु. ६५ 'तड़लजल। तंहप -सका पु० [सं० ताण्डव ] उत्पविशेष। एक प्रकार का राहुलौष-सका पुं० [सं० तएडलोप] १. एक प्रकार का बास । कट- नाच । जैसे,—दोऊ रति पडित मखडित करत काम तडव सो वासी ।२ अनाव का ढेर (को०)।' मति कला कहूँ पूरन की। देव (शब्द.)। तला -सा ० सन्तु] 'वन्तु। २०-किंगरी हाय महे संडा-समी - [सं० तण्डा] 1. मारलना । वष । २. पाकमय। पैरापी पाच तत धुनि यह पक लागी ।-जायसी (शब्द०)। प्रहार (को०)। तंव-संधाबीहि तुरंठ] किसी बात के लिये षल्दी। मातरता । तरि-सका पू. [सं० तण्डि ] एक बहुत प्राचीन ऋषि का नाम उतावली -ध्यान की मुरदि मौखि ते मागे जानि परत जिनका वर्णन महाभारत में पाया है। इनके पुत्र के बनाए रघुनाथ ऐसे कवि है व सौ।-रघुनाप (सन्द०)। हए मं यजुर्वेद में। किप्र.-लपाना।। तबीर--सबा . [सं० तूणीर] सूणीर । तरकर । उ०-तीन तंत-समासं० तत्व]. 'तत्व'130-पोगिहिकोहपाही पनर धुनही करन प फटन तडीर!-पु. रा०, ७७६ । तवन मोहि रिस पाग। योग तत ज्यों पानी काहि करे तेहि संस--सा पु. [सं० तरहु महादेव जी क नविकेश्वर नरी। माग जायसी (शम्प.)। संदरण-सह पुं० [सं० तरादुरण] १ चावट का पानी । २. कोड़ा तत-सका पुं० [सं० तन्त्र] १. वह बापा जिसमें जाने के लिये are मकोड़ा। बगे हो । जैसे,-सितार, बीन, सारगी। 10-5) पटिनी