पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३४२

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१५ तंत्रसंस्था वंद्रा तंत्रसंस्था-सधा पुं० [सं० तन्त्रसस्था ] यह संस्था जो राज्य का तदुआ-सधा पुं० [देश॰] एक प्रकार की बारहमासी घास बो असर शासन या प्रबंध करे । गवर्नमेंट । सरकार। . जमीन मे ही जमती है भोर पारे के काम में माती है। यह तंत्रस्कंद-सका पुं० [सं० तन्त्रस्कन्द 1 ज्योतिष शास्त्र का वह अग कसर जमीन में खाद का भी काम देती है। . जिसमे गणित द्वारा ग्रहों की गति मादि का निरूपण तंदुरुस्त--वि० [फा०] पिसका स्वास्थ्य पच्छा हो। जिसे कोई रोम . . होता है । गणित ज्योतिष । या बीमारी न हो। निरोग । स्वस्य । - - तंत्रस्थिति-सभा खी• [ सं० तन्त्रस्थिति ], राज्य के शासन की तंदुरुस्ती-सका सी० [फा०] १. शरीर की पारोग्यता । निरोग होने प्रणाली। की अवस्था या भाव । २. स्वास्थ तंत्रहोम--सका १० [सं० तन्त्रहोम ] यह होम जो तंत्रशास्त्र के मत तंदुला -सदा पुं० [सं० तण्डुल] १ २० 'तडुल'। उ.--(5) तुज मागि दो' चिखाई सो दीन्हों उपहार । फाटे बसन बीपि तंत्रा-सका मी० [सं० ठन्त्रा ] दे० 'तंद्रा'। - के (रजवर पति दुर्बल तनहार ।-सूर (शब्द०) (स) तिस तदुल के न्याय सों है ससृष्टि बखान । छोर नीर के न्याय सों तत्रायो-सका पुं० [सं० तत्रायिन् ] सूर्य को । सकर फहत सुजान |-पद्माकर ग्र०, पृ०७४।२ दे०'तडुल। तंत्रि-सहा बी० [सं० सन्त्रि ] १ तत्री। २.,तंद्रा । ३. तार । तत्र उ-पाठ श्वेत सरसों को तदुल बानिये। दश तदुल परि- (को०)। ४. वीणा का तार (को०)। ५. नस । शिरा (को०)। माण सुगुषा मानिये ।-रत्नपरीक्षा (शब्द॰) । १ पंछ । दुम (को०)10. विचित्र गुणों युक्त लो (बी०)। तंटस -ए [फा.तंदर गर्जन । मावा । ध्वनि । - ८ वीणा (को०) 18 प्रकृता । गुडूची (को०)। पण चिक्कार फिकार सबद्द । तंदुल तबल दंग रखा।-पु. तंत्रिपाल-सज्ञा पुं० [सं० तन्त्रिपाल ] दे० 'ततिपात' , रा०, ६१२७ । तंत्रिपालक-सज्ञा पुं० [सं० अन्त्रिपानक] अपद्रप का एक नाम। तंदुलोयक-सबा पु० [सं० तदुलीयफ ] चौलाई का साक। चौराई तंत्रिमुख-सक पुं० [सं० अन्त्रिमुख ] हाप की एक मुद्रा या का साग। स्पिति (को०)। तंदूर-सम पुं० [फा० तनूर ] अंगीठी, चूल्हे या भट्ठी मावि की तरह तंत्रिल-वि० [सं० तन्धिल] राजकार्य में प्रकोप .. . का बना हुमा एक प्रकार का मिट्टी का बहुत बडा, गोल पोर तंत्री-सहा पी. [सं० तन्त्री] .. बीन, सितार पावि पापों मे ऊँचा पार जिसके नीचे का माग कुछ पधिक पौरा होता है। जगा हुपा तार। २. गुडूची। पुरुष। ३ शरीर की नस । उ०-भाज् तदर से, गरम रोटी पककर भूखे की झोली में ४ एक नवी का नाम . रज्जु । रस्सी । ६. वध बाजा मा गिरी।-बदनवार, पृ० ५९। ।. जिसमें बजाने से लिये तार लगे हो। संत्र। जैसे, सितार, विशेष - इसमें पहसे लफली प्रावि की खूब तेज माघ सुलगा देवे बीन, सारंगी माधि। ७ वीणा। पोर जब यह खूब तर जाता है तब उसकी दीवारों पर तंत्री-संक्ष पुं० [सं० तन्त्रिन्] १ वह जो बाजा बनाता हो। २ पीवर को पोर मोटी रोटियां चिपका देते हैं जो थोड़ी देर बह जो गाता हो । गवैया । 10-तत्री काम क्रोपनिषदोऊ __ में सिरफर साल हो जाती हैं। कभी कभी जमीन में गड्ढा अपनी अपनी रोहि । दुविमा दु दुमि है निसिवासर उपचावति । सोवकर भी तदूर बनाया जाता है। विपरीत।—सूर (शन)। ३ सैनिक (को०)। क्रि०प्र०-लगाना । तंत्री-वि० 1. जिसमें तार लगे हों। तार का बना हमा। २ वो मुहा०-सदुर झोकना = भाड़ झोंकना । निकृष्ट काम करना । तारवालाहो (जैसे, बीणा)। ३. ताका अनुसरण करने- तंदूरी'-सक्षा पुं० [देण] पफ प्रकार का रेशम जो मालदह में वाला [को०)। - - ... - माता है। तंत्री-वि० [सं० त्रिन्] १.मानसी। २. ममीन ।' विशेष-इसका रस पीला होता है और यह मस्यंत बारीक मोर । तंत्रीभांड-संवा पु. [ सं तम्त्रीभाण्ड बीमा [को०)। मुलायम होता है। यह किरसी से कुछ घटिया होता है। तंत्रीख-सक ५० [सं० तात्रीमुख' बाप कौर मुसा या तंदूरी-वि० [हिं० तर + ई ( प्रत्य० ) ] तपूर संबंधी । जैध, परस्थान तपुरी रोटी। तंदरा -सका बी० [सं०वमा. तर .-पास तदेही-संणा बी. [फा० जनविही] परिषम । मेहनत । २. तरणि जुम्हाई ज्यों तरुण तम तरुणी तपी पों. तरुण ज्वर प्रयत्न'। कोशिश । ३ किसी काम को करने के लिये बार बार तदरा ।--वेग (स.)। चेतावनी । ताकीय। तंदरान-सा पुं० [देश॰] एक प्रकार दिया चंगर जो टा. कि० प्र-करना । रखना। पापपास होता है और जिसको सुखाकर किशमिश बमाते। तंद्र-वि० [• त] १. थकित । वलीत । २ सुस्त तदिही--मका सी० [फा० तनदिही 1 दे० 'तदेही। उ०--मगर तंद्रयाप, तद्रवाय-सका ० [सं० तन्त्रवाय, सम्द्रवाय] दे० 'ततुवाय । कोशिश व तदिही करने से वह सब मासानी रफा हो सकती - तंद्रा-सा सी० [सं० तन्द्रा] वह अवस्था जिसमें बहुत अधिक नाद है।-श्रीनिवास०प्र०, पृ० ३२ 1 मालूम पड़ने के कारण मनुष्य कुछ कुछ सो जाय। उषा। Wण