पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३४३

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तंद्रासस १९८१ तंवरण ऊंघ। २. वह हलकी वेहोशी जो चिंता, भय, शोक या दुर्बलता तंबाला-सा पुं० [देश॰] एक पौधा) 3.-निकम माया मू मादि के कारण हो। तबालू के सार । दक्खिनी० ए०६०। विशेष-वैद्यक के अनुसार इसमे मनुष्य को व्याकुलता बहुत होती तंक्किा -संभा खोस० तम्बिका गौ। गाय । है, इंद्रियों का ज्ञान नहीं रह जाता, जमाई माती है, उसका तंक्यिा -सबा पुं० [हिं० तtu+इया (प्रत्य॰)] १ तवि का बना शारीर भारी जान पड़ता है, उससे बोला नहीं जाता तथा इसी हमा छोटा तसला या इसी प्रकार का और कोई गोल बरतन । प्रकार की दूसरी बातें होती है । तद्रा कटुतिपत या कफनाशक २. किसी प्रकार का तसला। वस्तु खाने पोर व्यायाम करने से दूर होती है। तंबीर-सक पुं० [सं० तम्बीर] ज्योतिष का एक योग। उ०-होय क्रि० प्र०-पाना। तबीर जब कठिन कुंदो करे चामदत कष्ट तहाँ परे गादी।--- तंद्रालस--वि० [सं० तन्द्रा+पलस] १ बंद्रालीन । मालस्ययुक्त। राम धर्म. प. ३८१। सुस्त । २ बचात । यकित । ३ निद्रित । -भीतर नव- तंपीह- बी. [10] १ ऐसी सूचना या क्रिया प्रादि जिसके राम और प्रेमा का स्नेहालाप चद हो चुका था। दोनों तंद्रा- कारण कोई मनुष्य मागे के लिये सावधान रहे। नसीहत । बस हो रहे थे।-इंद्र०, १० २२ । शिक्षा । २ दर। सजा । (सपा)। तंद्रालु - वि० [सं० तन्द्रालु] चिसे तंद्रा पाती हो। तंवू-सच पुं० [हिं• तनना] १. कप, टाट, कनवास, मावि का बना तंद्रि-सका श्री. [सं० तन्द्रि] दे॰ 'तद्रा। हुमा यह बड़ा पर जो खमों पर खूटों पर तना रहता है और वंद्रिक --सहा मुं० [सं० तन्द्रिक] एफ प्रकार का ज्वर [को०)। जिसे एक स्पान से उठाकर दूसरे स्थान तक ले जा सकते है। सेमा । डेरा ।शिविर । शामियाना। वंद्रिक सन्निपात--सपा पुं० [सं०] ऐसा सन्निपात ज्वर जिसमें उचाई विशेप-साधारणत तबू का व्यवहार जगलो में शिकार पादि विशेष माए, उवर वेग से चढ़े, प्यास विशेष लगे, जीभ काली के समय रहने पथवा नगरों में सार्वजनिक सभाएँ, खेल, तमाशे होकर खुरखुरी हो जाप, दम फूले, दस्त विशेष हों, जसनन मोर नाच मादि करने के लिये होता है। हो पौर कान में दर्द रहे। इसकी भवधि २५ दिन है। क्रि०प्र०-खड़ा करना।—ठानना । तद्रिका-सच श्री० [ न्द्रिका] दे० 'तद्वा। २ एक प्रकार को मक्षली वो गांव की तरह होती है। तंक्ति - किस तन्द्रित] नद्रा युक्त। अलसाया हुमा। 30-यक तंबनाप-सा पुं० [हिं० तम्बू] ३. 'त'1 30-हायी घोग तदित राम रोग है, अब जो जाग्रत है वियोग है।-साकेत, तंबुपा मावै केहि कामा। फलन सेव बिछायते फिर गोर पृ. ३२१ । मुकामा पलटू, भा०, ३, पु०१७। वंद्रिसा--- स्त्री० [सं० तन्द्रिता] तद्रा में होने का भाव । तंबूर'-सका यु० [फा०] एक प्रकार का छोटा ढोल । तद्रिल-वि० [संवन्द्रिय] १ जिसे तवा माती हो। मालसी । २. तंबूर--- पुं० [हिं०] ३० तवूरा'। तद्रा या मालम्प से युक्त। ३ अलसाया हमा। तद्वित। तंचूरची--सबा पुं० [फा० तम्बूर+पो (प्रत्य॰)] तंदूर बजानेवासा । सुस्त । 30-तदिन तरतल, छाया शीतल, स्वप्निल ममर। हो साधारण लाद्य उपकरण, तुरा पात्र मर ।-मधुग्वास, तंबूरा-सा पुं० [हिं० तानपूरा या तुम्दुरु (ग)बीन या सितार की तरह का एक बहुत पुराना बाजा जो मलापपारी में केवल सुर का सहारा देने के लिये बजाया जाता है। तान- तंद्रो-पपा नौम तन्द्रो] १ तवा । २ भृकुटो। मौछ । पूरा। उ०-अजब तरह का पना तबुरा, तार लगे मो साठ तंद्रो-वि० [सं० तद्रिन्] १. थका हमा। नांत । २ पालसी कोन रे। लूटी टूटी तार विलगाना कोई न पूछ पात रे!-- तपा–श श्री[ तम्पा] गौ। गाय । कदीर श०,१.४७। तंफना-क्रि. [सं० स्तम्भन 1 स्वभना। स्तमित होना। विशेष--इससे राग के बोल नहीं निकाले जाते। इसमें बीप ९४-घर व्यान प्यान तिन प्रगनि ईस। पडे सु जगि तर्फ में लोहे के दो तार होते है जिनके दोनों पोर पो मोर तार जगीम । --प० स० १४८८ ! पीतल होते हैं। कुछ मोग कहते है कि इसे तुचुर गधर्म तवा'--एच औसतम्बा गो। गाय ।। ने बनाया था, इसी से इसका नाम तवूरा पड़ा। इसको संवा-सा पुं० [फा० तयान] वहत चौटी मोहरी का एक प्रकार का पवारी पर तारों के नीचे मूत रख देते, जिसके कारण पायजामा ! उ०-तथा सूपन सरो जाघिया तनिया पवला। उनसे निकलनेवाले स्वर में कुछ झनझनाहट मा जाती है। पगरी धीरा तागोस वदा सिर अगला । —सूदन (पन्द०)। तवरा तोप-सका पी० [हिं० वूरा+सोप]45 प्रकार की बड़ी तोप । तंबाकू-सका पु.[म. टोबैको] दे० 'तमाकू'। वंवून - पुं० [० ताम्बूध पान | वाचून । तंबाकूगर-सपा पु० [हिं० तबा+फा गर] उमाकू बनानेवाला। तंवेरण -सा पुं० [सं० स्वम्वे रम हापी (०)।