पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३४९

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सखड़ी १९६५ तखड़ी-सधा श्री० [हिं तकडी] तराज। भिपेक । उ.-मोर तस्तनशीनी के दरबार का वो फिर कहा वखत-सधा पु. (फा• तस्त] ३० तस्त'। 30-दो भेजि हरम हो क्या है। प्रेमधन०, भा॰ २, पृ० १५४ । हजूर मरहट्ठी वैगि, पाहिये जो कुसल तखत सिरताजी की।- वस्तपोश-सहा पु० [फा० तस्तपोच] १ तस्त या चौकी पर बिछाने हम्मीर., १० २१॥ ___ को चादर । २ धोकी । वस्त। " मुहा०-तलत पलटना -तख्ता उलटना । उ-जब निव हो तख्तवंद-मक्षा पुं० [फा. तस्तवद] १ बदी। कैदो। २ कारावास । बने सबल सगी। तब पलटते न किस तरह वखने । तो चले फैद । ३ लकडी की वह स्वपची जो टूटी हड्गे को जोड़ने के क्यो बरावरी करने । वल वरावर पगर नहीं रखते।-- लिये बांधी जाती है [को०)। हुमते० पू०६८ तख्तबदी-वस खी० [फा० तस्तबदी] १ तस्तो की बनी हुई दीवार। तखतनसीन -वि० [फा० तस्तनशीन] दे० 'तरुननशीन'। 10-- २ तक्तों की दीवार बनाने की क्रिया। ३ बाग की क्यारियों जो है दिल्ली तखतनसीन । पातसाह मालाउद्दीन । हम्मीर०, • पादि को दंप से सजाना (को०)। पृ० १७। तस्वरवाँ-सपा पुं० [फा० उतरवा ] १ वह तख्त जिसपर बादाम तखफीफ-सा बी० [म. तखफ़ फ्र] कमी । न्यूनता । सवार होकर निकलता हो। हवादार । २ वह तस्स या बड़ी तखमीनन्-कि० वि० [प० तखमीनन्] प्रदाज से । अटकल से। चौकी जिसपर शादियो मे बरात के मापे रध्यिा, नापरवाल अनुमान से। या लोडे नाचते हुए चलते हैं। ३. उड़नखटोखा। सख मीना-संवा ० [अ० तखमोनह.] पदाज । पनुमान । पटकल । तख्ता-सा पु० [फा० तख्तह.] १, लकड़ी का वह पीरा हपा ला क्रि० प्र०—करना । —लगाना । चौडा पार पौकोर टुकड़ा जिसकी मोटाई मधिक न हो रहा तखय्यल-सधा पुं० [५० तखय्युल] १ विधारना। २. कल्पना। पटरा । पल्ला। ३. काट्यविषय । मुहा०-dबता उलटना-(१) किसी प्रथ का नष्ट भ्रष्टो तखरी-सका श्री [हिं• ] दे० 'तकड़ी। जाना। किसी वने बनाए काम का बिगड़ जाना । (२) किसी सखलिया-सबा पुं० [प० तसिलयह, एकात स्थान । निर्जन स्थान। प्रबंध को नए भ्रष्ट करना। बना बनाया काम बिगाना। तख्ता हो जाना =ऐंठ या मकड़ पाना । तेस्ते की तरह पर वखल्लुस-सया पु० [अ० तखल्लुस) कवि या शायर का वह नाम से जाना। जो वह अपनी कविता में लिखता है। उपनाम। " २ लकड़ी की बडी चौकी । तस्त । ३ भरथी। टिसटी। ३. खानास पुं० [सं० तक्षण] बढ़ई । कागब का ताव। ५ खेतो या मागों में जमीन का वह अलग तखिया-सा स्रो० [फा० ताकी] लची टोपी, जो मत लोग लगाते

  • टुकड़ा जिसमे बीज बोए या पौधे लगाए जाते हैं। कियारी।

ये। उ०-विनु हरि भश्न को- मेष लिए कक्षा दिप तिलक . यौ.--तस्तए कागज - कागज का ठाव । वस्तए ताबूत = वह सिर तखिया। -भीखा. श०, पू०७१। । संदूक या पलय जिसमें शव ले जाते है । तस्तए तालीम = बह तखिहा-वि० [प्र. ताफ] वह वैच जिगको दोनों प्राँखें दो रप फाला पटरा जिसपर बच्चों को प्रक्षर, गिनती प्रादि सिखाते की हो। हैं। शिक्षापटल । ब्लैफ बोड । तस्तप न = चौसर खेलने सखीत-सशस्त्री० म० तहकीक] १ तलाशी। २ तहकीकात । का तख्ता। ततए मय्यत - मुर्वे को नहताने का तस्ठा। (लप०)। ततए मपक % (१) बच्चो की तस्ती। (२) वह चीष पो तस्त-सा पु० [फा० तस्त] १. राजा के बैठने का पासन । सिंहा बहुत प्रयुक्त हो । तस्तए मोवा ग्राफाश । मासमान । सन । २ तख्तो की बनी हई वडी चोकी। तख्तापुल–सा पुं॰ [फा० तस्तहू, + पुल] पारो का पुल जो किले को यो०-उस्त की रात = सोहागरात । (मुसल०) सदफ पर बनाया जाता है। यह पुल इच्छानुसार हटा भी ३ राज्य । शासन । हुकुमत (को०)। पलग । चारपाई (को०)। लिया जा सकता है। ५ जीन (को०)। तस्ती-सका श्री० [फा० तख्ती] १. छोटा तस्ता । २ काठ की वह वस्तगाह-समा श्री० [फा० सपाह] राबधानी [फो०] | . पटरी जिसपर महक अक्षर बिखने का अभ्यास करते हैं। वख्त ताऊस-- पुं० [फा० तत्त+५० ताऊस] एक प्रसिद्ध पटिया । ३ किसी घोष को छोटो पटरी। राजसिंहासन जिसे शाहपहा ने ६ करोड रुपया लगवाकर तस्तोताजा पृ० [फा०] शासनसूत्र । राज्यभार । शासनप्रबष बनवाया था। इसके कार एक जडाक मोर पख फैलाए हुए (को०। खडा था। इस सख्त को सन् १७३६ ई. में, नादिरशाह तहमीना-सपा पुं० [५० तखमीनह] दे० 'वस्वमीना'। लूटकर ले गया। तगमव्य० [हिं०] दे० 'वक'30-राजा हीन हयात तय तख्तनशीन-वि० [फा० तस्तनशीन] जो राजसिंहासन पर बैठा हो। वारणाह के तावे नहीं हुमा [-दक्खिनी०, पृ. ४४३ । 1 सिंहासनारूढ़। नगड़ा--वि० [हिं० तन+ कडा] [वि० सौ ठगी] १. जिसमें ताकत वख्तनशोनी-शा की [फा० सस्तनशीन (प्रत्य॰)] राज्या. ज्यादा हो । सबल । बलवान् । मजबूत । २. प्रच्छा पौरपड़ा।