पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३५०

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तगड़ो तपाना Hai का एक तगाफुल देगा प्रसाद जायन इन तगड़ी'- श्री• [हिं०] दे० 'तागड़ी' । तगाड़-सक्षा पं० [हिं०] १२० 'तगार'। २ वह चौकोर इंटों का तगड़ोर--समा श्री० [हिं०] दे॰ 'तखड़ी' । घेरा जिसमें गारा पा सुरसी पूना सानते है। तगण-संगापु० [सं०] धंद.शाल में तीन वणों का वह समह जिसमें तगादा-या पु० ।ह. गारा) [बातगाड़ी] यह तसमाया मोहे फा बिछला बरतन जिसमें मसाला या चूना गारा रखकर पहले दो गुरु मोर तर एक लघु (1) वर्ण होता है। जोड़ाई करनेवालो के पास में जाते हैं। प्रदिया। सगदमा, तगदम्मा-सका पुं० [प० तफदुम] १ व्यय प्रादि का किया हुमा भनुमान । तस्लमीना । २.३० 'तकदमा' । तगादा-सया पु० [म. तकाजा] दे० 'तकाजा'। क्रि० प्र०-करना। वगना-क्रि० प्र० [हिं० तागना] तागा जाना। तगाना--क्रि० स० [हि. तागना का प्रे० रूप] तागने का काम तगनी-सचा बी० [हिं० तागना] तागने का भाव । गाई। कंगना । दूसरे को वागने में प्रवृत्त करना । तगपहनी-सधा श्री० [हिं० तागा+पहनना ] जुलाहों का एफ। पोजार जो टूटा हुमा सूत जोड़ने मे काम पाता है। तगाफुल-सपा पुं० [प० तग्राफुल] १. गफलत । उपेक्षा । ध्यान । न देग। प्रसावधानी। उ०-हमने माना कि उगाफुलन सगमा-सा पुं० [हिं०] दे. 'तमगा'। करोगे रोकिन, साफ हो जायेंगे हम तुमको खबर होने तक। तगर-सश पुं० [सं०] १..एक प्रकार का पेंड़ जो अफगानिस्तान, -कविता को०, पा. ४,५०४६६ । कश्मीर, भूटान भौर कोकण देश में नदियों के किनारे पाया वगार-सहा थो• [देश॰] 2. 'गारी' । पाता है। विशेष-भारत के बाहर यह मागास्कर पौर जजोबार में भी । तगारा-सधा पुं० [हि. गर] १. हलवाइयों का नाव। २. तरकारी वेचनेवासे का नाद। होता है। इसको लकड़ी बहुत सुगषित होती है पर उसमें से रहत अधिक मात्रा में एक प्रकार का तेल निकलता है। तगारीमा खो दिरा०] १. उखप्ती मादने का गढा । २. हलवाइयों यह पफडी अगर की लकड़ी के स्थान पर तथा पोषष फे काम का मिठाई बनाने का मिट्टी का घड़ा बरतन या नद। ३. में पाती है। लकड़ी काले रंग की पौर सुगषित होती है चूना गारा इत्यादि होने का तसला। पौर उसका बुरादा जलाने के काम में पाता है। मावप्रकाप तगियाना-क्रि० स० [हिं० तागा से नामिक पात] दे. 'तागना। के अनुसार तगर दो प्रकार का होता है, एक मे सफेद रग के तगीर -सपा पुं० [अ० तगीर, तगईर] बदलने की क्रिया या भाव। पौर दूसरे मे नीले रग के फूल लगते हैं। इसकी पत्तियों के परिवर्तन। बदलना। कुछ का कुष कर देना। तन्दोली। रस से भाख के अनेक रोग दूर होते हैं। वैद्यक मे इसे उष्ण, उ.--(क) महदी गह रोग मनता। जागीर तगीर करता। वीर्यवर्षक, शीतल, मधुर, स्निग्ध, लघु भोर विष, अपस्मार, •--विश्राम (शब्द॰) । (ख) जोवन मामिल पार के भूपन शूल, राष्टिदोप, विपदोष, भूतोन्माद पौर विवोष प्रादि का कर तदधीर । घट बढ़ रकम पनाह के सिसुता करी तगीर । नायक भाना है। -रसनिधि (चन्द । पो०---वक । कुटिल । ठ । महोरग । नत । दीपन । विनम्न। तगोरी-सधा खी• [म० तगरपुर, द्वितगीर बदली । परिवर्तन। कुचित । घट । नहुष । पार्थिव । राजपंग। क्षत्र । धीन । उ.-गैरहाजिरी लिसिंह कोई। मनसर घटै तगीगे होई। कासानुशारिवा । कालानुसारक। -साल कवि (शब्द०)। २ इस वृक्ष को जब जिसकी गिनती गंध द्रव्यों में होती है। तगैय्युर--म) बी० [म. तनपुर) बहुत बड़ा परिवर्तन । उ•-- इसके चबाने से दांतों का दद मच्छा हो जाता है। ३. मुझको मारा ये मेरे हान नगैय्युरन कि है. कुछ गुमा मोर मदनवृक्ष । मैनफल। ही घड़के से मिरी मूनिस्के !-प्रोनिवास० प्र, पृ० ८५ ! तगर-सपा पु. [देश०] एक प्रकार की शहर की मयखी । तम्गना -कि०म० [हि.] दे. 'तगना'। तगला-सश ० [हिं० तकला] १ तकसा । २ दो हाप संवा तधार, तघारी--सपा श्री० [देश० दे० 'तगार'। सरकंडे का एक छड़ जिससे खोलाहे साथी मिलाते हैं। तचना--मि० भ० [हितपना] तस्ना । तप्त होना। उ०-(3) तगसा- पु. [देश॰] वह लकडी जिससे पहाकी प्रातो में ऊन तापन ओ तवती विमैं पिन का या मन मोहि विदूषी। को कातने से पहले साफ करने के लिये पीटते है। -प्रताप (शमा)। (ख) मानों विधि पर उलटि रखी तगा' -सका पुं० [हिं०] दे॰ 'वागा'। 30-प्रफुल्लित व के री। जानष्ठ नही सटी का ते पहोवेष तपी ।- मान दोन है यशोदा रानी झीनी ए झगुली तामें फवन को सूर (पाब्द०)। तगा।-सूर (शब्द०)। वचा --सपा श्री. चापमा। खाल । क्या । २०-तुम तगा--सक्ष. [देश॰] एक जाति जो कहेलखर में बसती है। इस बिन मा रहे तवा। पवनति बिरह गई पचा।-- जाति के लोग जनेऊ पहनते भौर पपने मापको ब्राह्मण जायसी (शब्द०)। मानते हैं। तचाना-क्रि० स०हि-तपानापाना। जलाना 8 करताrds "-सम बी० [हिवागना] १. तागने का काम । २ तागने करना । उ०-मनल उचाट रूप जाऊँ मैं वचाई भारीपारीगर का भाव . तागने की मजदूरी।। काम ने सुधारी मभिराम सान ।--दीनदयालु ( शम्द०)।