पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३५१

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तच्छ तलावुज वच्छ -सु पुं० [सं० तक्ष] दे॰ 'तक्ष'। वजगरी-संवा सी० फा० तेजगरी 1 सिकलीगरों को दो पंगुल तच्छुक -त्रा ए० [सं० तक्षक] दे० 'तक्षक'। पौड़ी भौर पनुमानत नालिश्त लंबी लोहे की पटरी जिस- तच्छना--क्रि० स० [सं० तक्षण] १ फाड़ना। २. नष्ट करना । पर तेल गिराकर रदा तेज करते हैं। फाटकर टुकड़े करना। तजदीद-सका सी० [म. तज्दीद] १ नया करना । नबीनीकरण । तच्छपरा-सा पुं० [हिं०] दे॰ 'तक्षक' । २. नवीनता । नयापन [को०] तच्छिन-कि० वि० [सं० तत्क्षण] उसी समय । तरकाल। तजन -- पु. [ सं० त्यजन ] तजने की क्रिया या भाव । तछन -क्रि० वि० [हिं०]२० 'समर'। 3.-के राषिप्रापने स्याए । परित्याप। लये । पगिनिहि तछन भन्छन करि गये।-नंद०प्र०,५०३१. तजन-धंधा पुं० [सं० ठजीन ] कोड़ा या चाबुक । तछिन -पत्र्य. संरक्षण] देवग्छिन'। 30-बार वजना-क्रि० स० [सं० स्थजन ] त्यागना । छोडना । 30-(क) हे जात र कोई। तधिन भवन करि गरे मोईना सब ज । हर मज । -(शन्य०) । (ख) वहु पास विष 4, पृ. २७७। विष गृह जाहू।—मानस, श२५२। वज-सथा पुं० [सं० स्व] १ माच पोर दारपोषी को जाति का तजरबा-सबा पुं० [म• तत्रबह, तजिरह, तजुबह.] १ वह शान मझोले कर का एक सदाबहार पेड जो कोचीन, महापार, जो परीक्षा द्वारा प्राप्त किया पाप। मनुभव। जैसे,-मैंने पूर्व जगाप, कासिया की पहाड़ियों पोर परमा में अधिकता सब बातें अपने तबरने से कही हैं। से होता है। यो०--वजरबेकार = घिसने परीक्षा द्वारा पनुभव प्राप्त किया विशेष-भारत के प्रतिरिक्त यह पोन, सुमात्रा पार पाषा मावि हो । अनुभवी। स्थानों में भी होता है खासिया पौर षयसिया की पहाड़ियों २ वह परीक्षा को ज्ञान प्राप्त करने के लिये को षाय । - में यह पेड यषिकतारी लगाया जाता है। जिन स्थानों पर माप पहले तबरषा कर बीजिए, तब बीजिए। समय समय पर नहरी वर्षा के उपरात को धूप पड़ती है, राजरथाकार-सपा पुं० [अ० तत्रुवह +फा० कार बिसने नजरमा यही यह पहुच जो पढ़ता है। इसके पेड़ प्राय पांच पांच क्रिया हो । पनुमवी। हाय फी पूरी पर वीज से लगाए जाते हैं मोर जब पेड़ पर घजरमाकारी-सहाबी०[प.तचुबह + फ़ा कारी (प्रत्य०) मनुषः । वर हो जाते हैं, तम वहां से हटाफर दूसरे स्थान पर रोपे तजरी ( [4. तज्जीद 1१. उद्घाटित कर किधी पोज को पाते हैं। छोटे पौधे प्राय परे पेड़ों या माडियों पाधि की प्रेसषी दया में फर देना। नपा कर देना। २. (काट/ छाया में ही रसे पाते हैं। सवारी में मिलनेवासा तेजात छोटकर ) सजाना पा संगरना। ३ सुधार करना। ४' पा तेजपत्ता इस पेट का पत्ता पोर तप (लकडी) इसकी एकाकी जीवन । ब्रह्मचर्य। उ.-कोई वजरीव तफरीद छाख है। कुछ बोग इसे पौर वारपीनी ये पेड़ को एक ही बोलते है नई नफी। दक्विनो०, पु० ४३३ । मानते, पर वास्तव में यह समसे गिन्न है। इस वृक्ष की सजरुषा-सबा पुं० [५० बह दे० 'सबरवा। गलियों की फुनगियो पर सफेद फूल लगते ६ चित्रमें गुलाब हजरुबाकार-माई• [म. सपा +फाकार२० सपरबा- को सौ सुगम होती है। इस फल करदि से होते है जिसमें कार। से तेल निकाला जाता है और इस तथा भई पनाया जाता तजरबाकारी---सका बी० [प० वजुबाफा० कारी]. 'तपा- है । यह वृक्ष प्राय दो वर्ष तक रहता है। फारी'। २. इस पैए की छायो पहत सुपंधित होती पोर पोषध तसल्ली-सह श्री० [1०1१प्रकास। रोपनी। ।२ प्रताप । काम माती है। वास में दर परपरा, पीतल, झा, जलाल। ३. अध्यात्म ज्योति । 30-कीजै फहम फना को से स्वादिष्ट, कफ, खाँसी, पाम, फंघ, प्रचि, फमि, पीनस पावि मूर सुजल्ली प्रपना -पलटू, भा० ३.पू.६२ । को दूर करनेवाला, पिरा तया धातुक्षक मार षटकारक राजयोज- बी० [प्र. तज्वीज़ ] १ सम्मति । राय । २. माना पाता है। फैसला। निर्णय । ३ वदोबस्त । इतिजाम । प्रबंध । पर्या०-भूग। वरीप । रामेट। बिजुल । त्वच । सकट तजबीजसानो-सधा बी.प. ज्वीज+सापी] किसी प्रवासात में पोल । सुरभिवल्फल । सूतफट 1 मुखशोषन । सिंहष । सुरस । ससी अदालत से किए हए किसी फेपले पर फिर से होनेवामा कामवल्लम । बहगध ! वनप्रिय । लटपणं। पषवाकल । विपार । एक ही हाकिम के सामने होनेवाचा पुनर्विचार । वर । सीत। रामवल्लभ । तजावुज-सा पुं० [प्र. बावुज़ ] १ सीमा का उल्लंघन । २. तजकिरा-सबा पुं० [प. तजमिरह ] १ वर्षा । विन। अपने पितयार से बाहर कोई काम करना । ३. प्रवशा। क्रि० प्र०-करना-पलना ।-बिना-होना। हुक्मी ।.-भारीपत मानेमा पौर हो । २. वालाप। बातचीत (को०)। ३. स्पति । प्रसिद्धि (को०)। इस एप पे तणावुधन करे।-दक्खिनी०, . ४२६ । ४ ४. प्रसंग । सिलसिला (को॰) । धृष्टता । गुस्ताखी (को०)।