पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३५२

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तजुब १६६८ वदकाना सजय-प्रध्यम तमन्जुब ] पाश्चर्य । विस्मय । पर्यभा। तटिनो-सदा श्री० [सं०] नदी। सरिता दरिया। उ०—जुब नही कि वोपरी टूट जाय ।-प्रेमघन०, भा० २, तटी-सधा बी० [सं०] १. तीर । कूल । किनारा । तट । २ नदो। पु० १५५। सरिता । 10--वाहि समै पर नाभि तटी को गयो उहि सेवक तज्जनित-वि० [सं०] उससे उत्पन्न पौन प्रसंग में ।-सेवक (शब्द०)। ३ तराई । घाटी। तज्जन्य-वि० [0] उससे उत्पन्न | उ.-कविता हमारे मन पर तटो-सका खौ० समाधि। पड़े हुए सामाषिक प्रतिवषो पौर तज्जत्य विचारों की प्रति- तटा-मम्प० [सं० ता] वहाँ । उस जगह पर। किया है।-नया०, पृ. ३ । तठना-क्रि० वि० [सं० तत्र, प्रा. तुय्य ] वहाँ। उ०-जुध वेल तज्जातपुरुष-सधा पु[सं०] का निपुण थमी । होशियार कारीगर। खगे रिण छोड़ जठे। तन पाथ जिसौ रुघनाप तठ।-रा. तज्जी-सा श्री. [सं.] हिंगुपत्रो। १०, १० ३५। तज्ञ-वि० सं० तज+श (+) 1१.तरव का जाननेवाला। तद-सदा पुं० [सं० तर १ समाज में हो जानेवाला विभाग । पक्ष। तत्वज्ञ। १०-देवतज्ञ सर्वज्ञ जज्ञेश अच्यूत विभो विस्व यो०-तड़पदो। भवदपा एमव पुरारी।-तुलसी (शब्द०)।२ ज्ञानी । २ स्थल । खुरकी। जमीन।-(लश०)। वटंका -सया पुं० [सं० लाडू] फर्णफूल नामक कान का माभूषण। तड़-सधा पु. [पनु.] १. पप्पट मादि मारने या कोई चीज पटकने करणंफूल । उ.--चलि पक्षिमावत श्रवण निकट पति सचि से उत्पन्न होनेवाला शब्द । तटक फंवा ते । -सुर (पन्द०)। यो०-तयात तट-सचा पुं० [सं०] १ क्षेत्र। खेत । २ प्रदेश । ३ तीर । २ पप्पड |--(दलाल)। किनारा । कूल । ४ शिव । महादेव । ५ जमीन या पर्वत क्रि० प्र०---जमाना !-देना ।—लगाना । का ढाल (को०)। ६. पाकाश (को०)। ३ लान का प्रायोजन । मा मदनी की सूरत ।-(दलाल)। तट-क्रि० वि० समीप । पास । नजदीक । निकट । क्रि० प्र०-जमाना ।-बैठाना । तटक-सशा पु० [सं०] नदी, तामामादि का किनारा [को०। . तड़क'---मरा स्त्री० [हिं० तडसना] १. तडसने की क्रिया या भाव। तटका-वि० [हिं०] [वित्री तटको] दे० 'टटका' 1 उ.-निसि के २. तड़कने के कारण किसी चीज पर पाहमा चिह्न। ३ उनी नैना तैसे रहे टरि टरि। किधों कहूँ प्यारी को तटकी भोजन के साय पाए जानेवावे मचार, चटनी मादि घटपटे लागी नजरि ।-सूर (शब्द०)। पदार्थ चाट । तरक्कना-क्रि० भ० [हिं०] दे॰ 'तरकना' । उ०-तटक्क दुह छोह इक-सा स्त्री० [सं० तएरक = (घरन)]18 बडी साड़ी को दीवार लोह चलावै ।-५० रासो, पृ०६३ ! से वंडेर तक लगाई जाती है और जिसपर दासे रखकर छप्पर तटग-सज्ञा पुं० [सं०] तडाग । छाया जाता है। तदनी मचा मी० [९० तटिनी ] (पटवाषी) नदी। सरिता। बड़कना-कि. प्र. [ मनु. ] 1. 'तड़' शन्दी साप फटना, दरिया । उ०--(क) माफिनि तटनि तीर मजु मृग बिग फूटना या दुटना । कुछ मावाज के साथ टना। घटकना। भौर पौर मुनि गिरा गंभीर माम पान की।-तुलसी (शब्द॰) । कडकना । जैसे, शीशा तरफना, पकडी पकना । २. किसी (ख) कदम पिटपके निकट तटनी पाय मटा पढि चाहि चोज का सुखने मादि के कारण फट जाना । जैसे, छिलका पीठपट फहरानी सो।-रसखान (शब्द०)। तडकना, जखम तरफना। ३ जोर का शब्द करना । ३०- तटवर्ती-वि० [सं०] तट सवध रखनेवाला या होनेवाला (को०] । कहि योगिनि निगि हित मति तडकी। विंध्याचल के ऊपर तटस्थ'---वि० [सं०] १ तीर पर रहनेवाला । किनारे पर रहनेवाला । खहको-गोपाल (ब्द०)। ४ क्रोध से बिगड़ना ! मुंभ २ समीप रहनेवाला। निकट रहनेवाला। ३. किनारे रहने. खाना । विगहना १५ जोर से उछलना या कूदना ! तउपना । वाला। अलग रहनेवाला। ४ जो किसी का पक्ष न ग्रहण सयो कि-जाना। करे। उदासीन । निरपेक्ष । तड़कनारि-क्रि० स० का वेना । छौंकना । वधारना। यौ.-ठटस्थ युत्ति। तड़क भड़क-सपा श्री. [मनु०] वैभव, शान मादिको दिखावट । तटस्थर--सहा पुं० किसी वस्तु का वह लक्षण जो उस स्वरूप को टडकली-सहा श्री. देशाताटक । तरौना। भूपणा तरका। लेकर नहीं बल्कि उसके गुण मौर धर्म प्रादि को लेकर बत- उ.-नाग फण का तडकली, छोटि कसण पयोहर खोची ।- साया जाय । दे० 'सक्षण। वी. रासो०, पृ०७२। यौ०-तटस्थ लक्षण। तड़का-सज्ञा पुं० [हिं० तडकना] १. सवेरा । सुबह । प्रात काल । तटस्थित-वि० [सं०] दे० 'तटस्थ' । प्रभात । २ छौंक । वधार । तटाफ-सहा पुं० [सं०] तड़ाग । तालाब । क्रि० प्र०---देना। तटाकिनी-सच्चा श्री० [सं०] बड़ा तालाव (को०] । तड़काना-क्रि० स० [हिं० तडकना का सक० रूप] १ किसी वस्तु सटाघात-सश पुं० [सं० ] पशुभो का अपने सींगो या दातो से को इस तरह से तोड़ना जिससे 'त' पाप हो। २. किसी जमीन खोदना। पदा को सुखाकर पा मोर किसी प्रकार बीच मे से फाड़ना।