पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३५४

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वड़ित ततरी सरिताओ कमानी का । पामा तडित-सक्षबी-[संगित् ] बिजली। विद्युत् । २०-उपमा संतान । ५ वह बाजा जिसमें बजाने के लिये वार लगे। एकमत भई तर पर जमनी पट पीत उदाए। मील पैसे, सारगी, सितार, पीन, एकतारा, बेहसा मादि ।। बस पर अपन पिरत तषिमभानु मनो तड़ित छिपाए। विशेष--तत बाजेदो प्रकार के होते हैं-एक ठो वे जो खाली -यसो (स.)। ' उँगली या मिजराब मादि से बजाए जाते हैं, जैसे, सितार तड़िता--बाबी- [सं०तरित 'वदित'। उ.-सरप तडिता बीन, एकतारा मादि। ऐसे बाजों को अंगुलित्र यत्र कहते। पई मोरण तें छिति छाई समीरम सीसहर। मदमाते महा गिरि भौर जो कमानी की सहायता से वजाए जाते, जैसे, सारगी, सुगनि गन मैजु मपूरन के कहर।-तिहास, पृ० ३१८ । बेला प्रावि, वे धनु यत्र कहलाते हैं। तस्मिार-संक० [सं० हरिकुमार ] जैनों के एक देवता जो तत-वि०१ विस्तृत । फैला हुमा । २ विस्तारित । ३ ढका हमा! भुवनपति देवगण में से है। छिपा हमा। ४ झुका हुमा । ५ अंतररहित । लगातार [को०]] तत्पिति- [.सरिस्पति बादल । मेघ । ततg+3-वि० [स० तप्त] तपा हमा। गरमा ३०-नखत सबिभा-सा स्त्री० [सं.रिप्रभा ] कातिकेय की एक मात्रिका प्रकासहि चढ़ा दिपाई। तत तत लूका परहिं बुझाई।-- का नाम । जायसी (शब्द०)। तस्तिान-. [ तस्त्विान् ] 1 नागरमोथा। २ वादल । सतg४--सका पुं० [सं० हत्त्व दे० 'तस्व' । तडिदूगर्भ-सं• [सं० तरिदगर्भ ] बादल । तव -सवं० [सं० तत् ] उस । जैसे,-ततक्षन = तत्क्षण। विराम-सबा . [सं०वडिझामन् ] बिजुलता । विद्युल्लता । ततकरा-क्रि० वि० [सं० तत्काल] तुरंत । ३०-ततकरा मपवित्र कर बिवली चमकते समय दीलनेवाली रेखा [को०)। मानिए पैसे कागदगर करत विचार। रैदास, पृ०३७ । तचिन्मय-वि० [सं० तडिम्म] विजली की तरह चमकने- ततकार-मध्य० [हिं०] दे० 'तत्काल । वाला [को०] । ततकाल -मन्य० [हिं० ] दे० 'तरकाल'। तरिया- लो. [देष.] समुद्र के किनारे की हवा ।-(लश०)। ततखए-कि० वि० [सं० तत्क्षण, प्रा. तक्खण] दे॰ 'तत्क्षण'। तड़ियाना'-क्रि.म. [हिं०] दे० 'तरुपना' । उ.-ततखण मालवणी कहइ सालि कत सुरंग ।-ढोला, तड़ियाना-कि० . [हिं॰]'वड़पाना'। तदियाना-कि०म० [हिं०] जल्दी करना | जल्दी मचाना। ततखन@-क्रि० वि० [हिं० ] दे॰ 'सतक्षण'। उ०.-ततखन माइ तबिल्लता-बा लो० [सं० तडिल्लता ] विद्युल्लता [को०] । विवान पहुंचा। मन ते अधिक गगन ते चा!--- तदिल्लेखा-संवा स्त्री० [सं० तडिल्लेखा बिजली की रेखा (को०] । जायसी (शब्द॰) । ततच्छन-क्रि० वि० [सं० तस्क्षरण ] दे० 'तत्क्षण' । ३०-(क) राज तही-सहा जी• [बसे पनु०] १ चपत । पौल। काज मापय विद्यालय वीष नवच्छन ।---प्रेमघन॰, पृ.४१५) क्रि०प्र०-जड़ना ।-जमाना ।—देना ।-लगाना। (a) मरज गरज सुनि देत उचित मादेश ततच्छन ।--प्रेमघन०, २. पोखा । 11-(दलाल) ३ बहाना । होला । मा०२पु.१५। क्रि० प्र०-देना ।-बताना। हड़ी-सहा स्त्री [देष. ] जल्दी । शीघ्रता । ततछन--कि. वि. [हिं०] दे॰ 'तरक्षण' । तवछिन -कि० वि० सं० तत्क्षण, हि ततछन | दे० 'तत्सएं। सगीत -सका ली. [हिं०] दे० 'तस्ति। उ.-सिंघ पौरि वृषभानु की, ततछिन पहुंचे जाह!-नद० तण -प्रव्य० [हिं. तनु] की तरफ । मोर का । -०, पृ० १९८॥ तणई-मशास्त्री० [सं० तनया ] कन्या । पुत्री। ततताथेई-सौ . मिन] नृत्य का शब्द । नाच के बोल । तामीर-सहा [हिं० } मुसलमान । ततत्व-सक्षा पु० [सं०] १. विलबित काल ! मद काल ।-(संगीत), तणी'-मय. [हिं० ] दे० 'ता। २. नैरतर्य। निरंतरता [को]। तणी-पप [हिं० तनिक ] थोड़ा। पल्प । ततपत्री-संशा ला[सं०] केले का वृक्ष । तणु -पक पुं० [हिं० ] दे० 'तमु । ततपर-वि० [सं०तस्पर] दे० 'तत्पर। तगोल-मध्य. [हितनु लिये । की तरफ। ततवार -स.. [सं० तन्तुवाय ] ३० 'वंतुवाय' । तत-पा० [सं०] १ ब्रह्म या परमात्मा का एक नाम । जैसे,- सतबीर -सबा सी.मतदबीर1० तदबीर। उ०- पोत सत् । २ वायु । हवा । कोउ गई बस पैठि तरुनी और ठाढ़ी तीर । तिनदि खाई बोला तत्२-सर्व० उस। राधा करत सुख ततबीर। सूर (शब०)। विशेष-इसका प्रयोग देषल सस्कृत के समस्त शब्दों के साथ ततवेता-वि. सस्ववेत्ता'1ज्ञानी। उ०-सादत माका उनके पारम में होता है। जैसे,—तत्काल, तरक्षण, तत्पुरुष, तैसा मिक्षा न कोय । ततवेता निरगुन रहिस, निरगुन परत तस्पश्चाद, अवनतर, तदाकार, तारा, तत्पूर्व, उत्प्रपम । ' होय।-कबीर सा० से.,पृ.१८। वत'- पुं० [४०] १ वायु । २. विस्तार ! ३.पिता। ४. पुत्र। ततरी-संहा सी. .] एक प्रकारका फषवार पेट।