पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३६४

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२०१० तपश्चरण ६ पग्नि । ७ एक कल्प का नाम । एक लोक का नाम : तपनमणि-संथा. [सं०] सूर्यकांत मणि। वि० दे० 'तपोलोक' तपनाशु-सका पुं० [सं०] सूर्य की किरण । रश्मि । तपर-सहा '० [सं०] १.ताप। गरमी। २ ग्रीष्म ऋतु। ३. तपना--क्रि० स० [सं० तपन] १ बहुत अधिक गर्मी, प्राच या बुखार । ज्वर। धुप पावि कारण खूब गरम होना। सप्त होना। 30- सपना-क्रि० स० [वि. टपकना या समकना] १ घड़कना निज पप समुझि न कुछ कहि जाई। तपइ मयो इव उर उछलना। 10-रतिया मेषेरी धीरन तिया परति मुख मषिकाई। तुलसी (शब्द॰) । पतिया कढ़ति उठ छतिया तपकि तपकि!-देय (शब्द.) संयो० कि०-जाना। २ दे० 'टपकना। मुहा०-रसोई सपना = दे० 'रसोई मुहाविरे । तपचाक-सका पुं० [देश०] एक तरह का सुर्की घोड़ा। २. संतप्त होना। बव्ठ सहना । मुसीबत झेलना। वैसे, हम तपच्छद-सञ्चा पुं० [सं०] दे॰ 'तपनच्छद'। घंटों से यहाँ पाप के मासरे तप रहे हैं। उ०-सीए सेवाति तपढ़ी-सहा स्त्री० [देश०] १. हु । छोठा टीषा। २. एक प्रकार का कहें तप समुद मझ नीर।-जायसी (शब्द०)। ३. तेज फर जो पकने पर पीलापन लिए बाल रग का हो जाता है। या ताप धारण करना। गरमी या ताप फैलाना। 30- पहजामत में बाजारों में मिलता है। पइस भानु जप ऊपर तापा-बायसी (शब्द०)। ४ तपती--सका सी० [हिं०] दे० 'तपन"। प्रबलतर, प्रमुख या प्रताप दिखलाना। भातक फैलाना । सपवि-वि० [देश॰] बूढ़ी। वृव । 3.-मोग रहै भरपूरि मायु यह जैसे,-माजकल यहाँ के कोतवाल खूब वप रहे हैं। 30- पीति पई सब । तप्पो नाहिं तप मढ़ अवस्था तपति भई (क) सेरसादि दिल्ली सुलतानु । पारिउ खंड तपइ पस प्रब!-ब्रज.पं., पु०१०६ । भानु । -जायसी (धन्द०)। (ख) कर्मकाल, गुन, सुभाउ सबके सीस तपत --तुलसी (शब्द०)। तपती-सका स्त्री० [सं०] महाभारत अनुसार सूर्य की कन्या का नाम। तपना-क्रि० स० [सं० तप्] तपस्या करना । तप करना। विशेष-यह छाया के गर्भ से उत्पन्न हुई थी। सूर्य ने कुरुवंची तप संवरण की सेवा मादि से प्रसन्न होकर तपती का विवाह तपनि -सा बी० [हिं०] दे० 'तपन'। . उन्ही के साथ कर दिया था। तपनी'--सबा बी० [हिं० तपना] १ वह स्थान जहाँ बैठकर सोग सपतोदक -सचा पुं० [सं० तप्त+अप] परम पानी । उ-यह प्राय तारते हों। कोडा । मलाव । तीनों रसजर के नेती। पीस पिए तपोषक सेती।-० कि०प्र०-तापना । तपस्या ! तप । ३. तपन (को०)। तपन-सना पुं० [सं०] १ तपने की क्रिया या भाव। ताप। तपनी--एक श्री .] १ गोदावरी नदी। २. पाठा लता (को०)। पलन प्राचाबाह। २. सूर्य। पादित्य । रवि।३ सूर्य- तपनीय-सपा पु-सं०] सोना । कांत मणि ।' सूरजमुखी। ४ ग्रीष्म । परमी। एक तपनीयर-वि० तपने या वापवे योग्य [को०] 1 प्रकार की पग्नि । ६ पुराणानुसार एक नरक पिसमें बातेही तपनीयक-सम० [सं०] दे० 'तपनीय'। शरीर जलता है। धूप । ८. भिलावेका पेए। .मचार। पाक। १० भरनी का पेड़। ११ वह क्रिया या हाव भाव तपनेष्ट-सका पुं० [सं०], ताया। पादि जो नायक के वियोग मे नायिका करे या दिखलावे। तपनोपल-सा पुं० [सं०] सूर्यकांत मणि। इसकी गणना मलकार में की जाती है। ' तपभूमि-सबा नी० [सं० तपस् + हि. भूमि] दे० 'तपोभूमि'। यो०-तपनयौवन - सूर्य का पौवन । सूर्य की प्रखरता। सपराशि-सबा संतपोराचि दे० 'तपोराषि'। . १०-प्रखर से प्रखरतर हुमा तपनपौवन सहसा । अपरा, सपरासो-सक्ष पुं० [हि० ] दे० 'तपोराचि' । --ब्रह्म ०६१।. उपासी सपरासी बनबासी पर विपुल मुनीयन के. पाश्रम: तपन:पका स्त्री० [हिं० तपना] तपने को किपा पा नाव । ताप। सिपायो में।-राम धम०, पृ. २६... तपसोक-सं० [सं.सपोलोकहि "तपोलोका। ... मुहा०-पन का महीना,वह महीना -जिसमें गरमी खूब तपवाना-१०.० ० पाना का प्रेरूप] १. गरम करवाना। पड़ती.हो। गरमी.1 . , . , . , । तपाने का काम दुसरे से कराना। ३. किसीसे व्यर्थ व्यय तपनकर- पुं० [सं०] सूर्य की किरण । रश्मि ।। . . करामा। मनावश्यक व्यय कराना। " तपनच्छप-संज्ञा पु० [सं०] मवार का पेड़। , I तपद्ध -वि० [सं०'तपोवृद्ध, हिं० दे० 'सपोपूर्व -7 तपनतनय-सक्षा पुं० [सं०] सूर्य के पुत्र--यम, कर्ण, शनि, सुग्रीव मादि। रानी - तपशील-वि० [सं० सप पील] तपस्या करनेवाला [को०].' तपनतनया-'श्री० [सं०] १. शमी वृक्ष । २ यमुना नवी। तपश्चरण-सम पुं० [सं०] तप । तपस्या । जलन । गरमी।-,,,