पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३६५

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तपश्चर्या २०११ तपिया तपश्चर्या-संवा सौ. [सं०] तपस्या । तपश्चरण। अपना जीवन बिताये।६दीन मोर दुखिया स्वी। ७ बड़ी तपस-सच पुं० [t०] १. चद्रमा । २ सूर्य । ३ पक्षी। गोरखमुंडी। ८ फुटकी । कटुरोहिणी। तपस-सा बी• [सं० उपस] तप। तपस्या। 30-न्याय, तपस, तपस्विपन-सच पुं० [सं०] दमनक वृक्षादौने का पैड। ऐश्वर्य में पगे, ये प्राणी धमकीले लगते। इस निदाघ मर में तपस्वी'--सा पु[सं० तपस्विन् ] श्री. तपस्विनी]. वह षो सूखे से, स्रोतों के सह जैसे अगते ।-कामायनी, पृ० २७०। तप करता हो। तपस्या करनेवाला। २ दीन । ३. क्या तपसा-AN तपस्वी। करने योग्य। ४ घीकुपार । ५ तपसी नचली। तपसोमूर्ति का एक नाम। तपसनी-समाली० [हिं॰] दे० 'तपस्विनी'। 30---काम कुमती उप्पनी दीय तपसनी साप। बीसल दे दृषि पल विचल तपस्स -या पुं० [सं० उपस ] दे० 'तपस्वी' । ४०-- धर्मकी प्रगटि पुव को पाप-पृ० रा०, १४३५।। घरा घंम धमै घरकी। कपिलू कंमद मद करक्की ये मङ्किगं सो दिगपाल स्वं । तरक्के बके मुनि जन तपस्स। तपसरनो-सका श्री• [हिं०] दे० 'तपस्विनी'। -मय विवाद -पु. रा०, ६।११। पाहुटु दुति तपसरनी को कोप। बल वेली हि पाग विप। तपा -मक्षा पुं० [ हि तप ] तपस्वी । १०-मठ मंडप पहुंपास ते जिन भए पसोप-पृ०रा०, ११५०७ । संवारे। सपा पपा सब पासन मारे ।-जायसी (धन्द०)। तपसा-सका बी० [सं० तपस्पा] १. तपस्या । सप। २. वापती तपा-वि० सप में मग्न । जो तपस्या में मौन हो। ४०-फेरे मदी का दूसरा नाम पो बैतून पहार, निफासकर बंधात ' मेष रहे पा सपा धूरि मपेटा मानिक छपा।-पापपी की खाडी में गिरती है। (शद०)। तपसालिgसध पुं० [हिं० तप + साली ] दे० 'तपसाली'। तपाक-सपुं० [फा. पावेश । जोश । जैसे,—पातेही या तपसाली-सहा० [सं० तप.शामिन् ] वह विसने बहुत तपस्या पर तपाक से पोला। की हो। तपस्वी। 30-~-प्राए मुनिवर निकर बौविधादि मुहा०-सुपारपरसमा नाराज होना। बिगड़ जाना। तेवर तपसालि -तुलसी (शब्द०)। बचना। आपसी-सका पुं० [ से• तपस्वी ] पस्या करनेवाला । तपस्यो। २ देग । तेषो। उ०-तपसी तुमको तप करि पावें। मुनि भागवत गृही गुर तपात्यय-सहा पुं० [सं०] प्रीष्म का प्रत या वर्षाकाख । बरसात । गावें।-सूर (शब्द०)। तपानल- सं ० [सं०] तप से उत्पन्न वेज। वह तेज पो तप तपसी मछली-सवा स्त्री० [सं० तपस्या मस्स्य] एक बालित खंबी करने के कारण उत्पन्न हो। एक प्रकार की मछली। तपाना-कि० स० [हिं० तपना] १ बहुत अधिक गर्मी, माय, धूप विशेष-यह बंगाल की पारी में होती है। साख या जेठ. पादि की सहायता से गरम करना । तप्त करना। २. महीने में प्रदे देने के लिये यह नदियों में चली जाती है। संतप्त करना। दुख देना । क्लेश देना। ३ तप करके शरीर तपसोमर्ति--सपु.[सं०] हरिवश अनुसार पारहवें मन्वंतर को फष्ट देना । तप करने में पारीर को प्रवृत्त करना। के चौथे सावरिण के सपियों में से एक। तपायमान-वि० [सं० तप] सप्त। तुसी । १०-एक काल में भृग तपस्तक्ष-संझ ० [सं०] इंद्र। की स्त्री जात रही पी, सिसके वियोग कर वापि तपायमान तपरतति-श पुं० [सं०] विष्णु । हुमा !-योग०, पृ.७। तपस्य-सबा पुं० [सं०] १. कुंद पुष्प । ५.. पस्या । वप। ३. तपारो-संवा • [हिं०] सपस्वी (को०)। हरिवंश के अनुसार तामस मन के दस पुत्रों में से एक पुत्र का सपावत-संगपुं० [हिं० तप+वंत (प्रत्य॰)] तपस्वी तपसी। नाम । ४. फागुन का महीना। ५ अर्जुन । वह जो तपस्या करता हो। उ०--तपार्वत घामा लिखि विशेष-मर्जुन का एक नाम फाल्गुन भी पा, इसीलिये तपस्य दीन्हा । वेग चलाव पहूँ सिषि कीन्हा 1-बायसी (शब्द०)। भी पर्जुन का एक नाम हो पया। तपाव-मस पुं० [हि. सपना+भाव (प्रत्य॰)] तपने की क्रिया तपस्या-सा बी० [सं०] १. तप। व्रतपर्या। २ फागुन मास । या भाव । गरमाहट । ताप। ३ दे० 'तपसी मछली'। तपावस -संश-[हिं० दे० 'तपस्या | To-करे तपावस प्रबली तपस्वत्-सहा पुं० [सं.] तपस्वी। माप । उम्मम कालु कर मारे पाप।-प्राण०,०२२७ । तपस्विता--सहा श्री[सं०] तपस्वी होने । "पवस्या पा भाव। तपित -वि० [सं०] तपा मा गरम । सप्त । तपस्विनी--सबा बी.[सं०] १ तपस्या करनेवाली स्त्री। २ सपिय-सबा पुं० [हिं०] दे० 'तपी'। उ.--सुनत बान कलिजर तपस्वी की स्त्री। ३. पतिव्रता पा सती सी। ४ बटा- निता था तो स्त्री४ जटा- ई। सपिय परव पर सारेउ सोसू ।-ईदा., ०१६। मामी . वह सीखो पपने पति के मरने पर बल अपनी तपिया-संच. [रा०] एक प्रकार का क्ष पो मध्यभारतबाट संतान का पालन करने लिये सठी न हो पौर कष्टपूर्वक तथा भासाम में होता है।