पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३७१

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तमयी यौ०-तम प्रम, तम.प्रभा-एक नरक। तमःप्रवेश- (१) तमगा-संक्ष पु. [तु तमग्रह ] परक । तगमा । मेडल । अंधेरे में टटोलना । (२) विपाव। तमगुन -संशा पुं० [ से० तमोगुण ] दे० 'वमोगुण' । वम-संबा ० [सं० तम, तमस् ] १.अंधकार। भेषेरा । २. पर तमगेही'-वि० [सं० तमगेहिना भषकार में घर बनानेवाला। का भगला भाग। ३ तमाल वृक्ष । ४. राह। ५. वराह । अंधकार में रहनेवाला (को०] । सुपर। पाप । ७. क्रोष। ८. प्रज्ञान । ६. कालिका नगर सहा पतंगा। काखिमा । श्यामता । १०. नरक! ११. मोह। १२. सांख्य तमबर-सका पु० [सं० तमीचर ] १. राक्षस । निशाचर । २. के अनुसार प्रविद्या । १३ सांख्य के अनुसार प्रकृति का उलूरू। उल्लू । तीसरा गुण जो भारी और रोकनेवाला माना गया है। तमचुर -संभा पुं० [सं० ताम्रचूड ] भुरगा। कुक्कुट । १०- विशेष-जय मनुष्य में इस गुण की अधिकता होती है, तब । (क) सुनि तमघुर को सोर घोस की बागरी। नवसत उसको प्रवृत्ति काम, क्रोध, हिंसा मादि नीच और बुरी बातों साजि सिंगार चली ब्रज नागरी।-सूर । शब्द०)। (ख) की मोर होने लगती है। ससि कर हीन छीन दुति तारे। तमचुर मुखर सुनह मोरे सम-वि०१ काला । दुषित । बुरा [को०] । प्यारे !-तुलसी (शब्द०)। तम-वि० [सं० तम] एक प्रकार का प्रत्यय, जो विशेषण शब्दों में चूर -सका पुं० [सं० तापवूड, हि. तमचुर ] दे० 'तमपुर। लगने पर पतिशय या सबसे अधिक का पर्य प्रकट करता है उ.-(क) बोले लागे ठोर ठौर तमचूर । हहिं बोली री वैसे, क्रूरतम, कठिनतम । पिक बनी।--नंद. प्र., पु० ३६७। (स) बिख राखे तम -सर्व० [से० स्वाम, हिं. तुम, गुज. तम] दे॰ 'तुम'। नहिं होत अंगूरु । सबद न देइ बिरह तमचूरू।—जायसी 'उ०-हाहुलि राय हमीर सलप पामार चैत सम । कयौ राज . (शब्द०)। इम मात तात अप्पी दिल्ली तम ।-पु० रा०, १८ा। तमोर -सका पुं० [सं० ताम्रचूड ] दे० 'तमधुर'। तमय-संवा खी[म. तमम् ] लालच । लोम । हिस। २ तमच्छन्न-वि० [सं० तमस् (श्)+च्छन्न ] तम से माच्छावित। चाह । इच्छा । स्वाहिस । अंधकारमय । उ०-घस्य माक्से ! चिर तमच्छन्न । तमक-सक पुं० [हिं० तमकना] १. जोश । सग । २. तेजी। पुथ्वी के उदय बिस्तर पर, तुम त्रिनेत्र के ज्ञान पक्ष से प्रकट तीव्रता । ३. क्रोष । गुस्सा। हुए प्रखयकर ।-युगवाणी, पृ० ३८ । तमकर-सपुं० [सं०] सुश्रुत अनुसार श्वास रोग का एक भेद। तमजित्-वि० [सं०] अधकार को जीतनेवाला। उ०-बांधो. विशेष-इसमें दम फूलने के साथ साथ बहुत प्यास लगती है, बांधो किरणें नेतन, तेजस्वी, हे तमजिज्जीवन ।-प्रपरा, पसीना पाता है, जी मिचलाता है पौर गले में घरघराहट पृ०२०६। होती है। जिस समय माकाय में बादल छाए हों, उस समय तमत-वि० [सं०] १. इच्छुक । मभिलाषी ।२ वाछित पर इसका प्रकोप अधिक होता है। हुमा को]। तमकनत-सका पी.[.] १. इक्जत । प्रतिष्ठा । २ गौरव। तमतमाना-कि० मा० [सं० ताम्र ] १ धूप या क्रोध मादित ३ गौरव का मनुचित प्रदर्शन । ४ माडबर। ५. घमः। कारण चेहरा लाल हो जाना । २ चमकना । दमकना । गरूर को०] । तमकना-क्रि० म. [ मनु०] १ कोष का प्रावेश दिखलाना। तमवमाइट-सज्ञा स्त्री० [हिं० तमतमाना] तमतमाने का भाव। क्रोध के कारण उछल पड़ना । उ०-अंजन त्रास तजत वमकत तमता-संज्ञा खी० [सं०] १. तम का भाव 1२ मंधेरा । मघकार। तकि तानत दरसन डीठिा हारेहू नहिं हटत ममित बल बदन तमददुन-सा पुं० [सं०] १ शहर में एक स्थान पर मिल जुलकर पयोषि पईठ।-सूर (शब्द०) २.३० 'तमतमाना' । रहना और वहाँ की व्यवस्था करना। नागरिकता। २. तमश्वास--सना पुं० [सं०] एक प्रकार का मा जिसमें कंठ रुक किसी की वेशभूषा, रहन सहन का ढग और प्राचार व्यवहार। जाता है भोर घरघराहट होती है। सभ्यता [को०] । विशेष-इसके उत्पन्न होने से प्राय रोगी के मर जाने का मी तमन-सा पु० [सं०] पम घुटने की अवस्था [फोगा। __ मय होता है। तमना-क्रि०प० [हिं॰] दे० 'तमकना'। तमका-सन्ना स्त्री० [सं०] सुम्यामलकी । भुरंपविला [को०] । तमन्ना---एक सी• [म.] माकांक्षा । इच्छा । स्वाहिश । कामना । तमकाना--क्रि० स० [हिं० तमफना का प्रेरूप] तमकने में अभिवाया। उ.---दिल लाखों तमन्ना उस पै और ज्यादा प्रवृत्त कराना। हवस । फिर ठिकाना है कहा उसके टिकाने के लिये। तमकिल-सक बी० [हिं० तमक ] दे० 'दमक"। उ०-सतगुर -तुरमो. १०, पृ०४।। मिलिम समकि मिटि जाई । नानक तपसी को मिली रसाई। तमप्रभ----सका ० [सं०] पुराणानुसार एक नरक का नाम । -प्राण, पु०६०। तमयी-संकबी• [सं० तमी अथवा तममयी ] रात। स्थान पर पपस्था समषा,