पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३७२

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समरंग तमाई तमरंग-सच्चा पुं० [देश०] एक प्रकार का नीबू जिसे 'तुरंज कहते हैं। तमस्वी-वि० [सं० तमस्विन ] प्रधकारयुक्त । घंधकारपूर्ण किना। विशेष-दे० 'तुरज'। तमस्सुक-सदा पुं० [म.] वह कागज जो कण लेनेवाला श्रण के तमर-सहा पुं० [सं०] बग । प्रमाण स्वरूप लिखकर महाजन को देता है। दस्तावेज । तमर-सका पुं० [सं० तम ] प्रधकार । मधेरा। ऋणपत्र । लेख। तमराज-सका पुं० [सं०] एक प्रकारको खाँर जो पैद्यक में ज्वर, तमहड़ी-सका क्षी० [हिं० तावा+हाडी] हाड़ी के साकार का तो वाच तपा पित्तनाशक मानी गई है। ____ का एक प्रकार का छोटा बरतन । तमलूक-सका पु० [हिं० तामलुक ] दे॰ 'तामलुक'। तमहर-स पुं० [हिं. तम+हर] दे० 'तमोहर'। तमलेट-सपु टम्ब्लर].. लुक फेरा हुमा टीन या लोहे महाया-वि० [सं० तम+हिं० हाया ] १ ममकारवाला। २ का बरतन । २. फौजी सिपाहियो का लोटा। तमोगुणी। तमस्-सका पुं० [सं०] १. प्रषकार । २. मशान का प्रघकार । ३. तमहीद-समा स्त्री० [६. तम्हीद ] वह जो कुछ किसी विषय को प्रकृति का एक गुण । तमोगुण । वि० दे० 'गुण' । भारभ करने से पहले किया जाय । भूमिका । दीवाचा। तमस-सका पुं० [सं०] अषकार । २. प्रज्ञान का अंधकार। क्रि० प्र०-~-बांधना , ३. पाप।४ नपर।. कूप । कुपों। वाचा-सका पुं० [फा० तमाचह] दे० 'तमाचा'। तमसा--वि० काले रंग का । श्याम वर्णका [को०] । तमासका पुं० [सं० तमा।, तमस्] राहु । तमस --सहा स्त्री० [सं० तमसा ] ६. तमसा नदी। टौंस। तमा-सका श्री० रात । रात्रि । रजनी । ज०-पायो तमस नदी के तीरा। तर साडिल परिहार तमा-सका सी० [म. तमन] दे० 'तमम'। सुबीरा-रघुराज (शब्द०)। तमा-सबा स्त्री॰ [फा० तमाम] दे० 'तमाम'। उ.--तमा दुनिया तमसनाल-कि. म० [हिं.] दे॰ 'तमकना'। उ-तमसि की जर पर कर वह बदजात । उठाया दोन से इकबारगी तमति सामंत जाइ वर वीर सुरु ध्यो। उभय पुत्त इक पषु हात।-दक्खिनी०, पृ० १६०। मोम भगीरप बल बंध्यो।-पु. रा०, १२६१५३ । तमाइप-सबा सी० [म. तमन] दे॰ 'तमम'। 30-(क) लोक तमसा--सबा पी० [सं०] टौंस नाम की नदी। दे० 'टौंस'। परलोक विसोक सो तिलोक ताहि तुलसी तमाइ कहा काहू विशेष-इस नाम को तीन नदिया है। वीर दान को।-तुलसी (पन्द०)। (ख) भाप कीन तप तमसाच्छन्न-वि० [सं०] मधकार से ढका हमा। उ०-उसे खप कियो न तमा जोग जागन विराग त्याग तीरप न तन प्रपनी माता के तत्काल न मर जाने पर मुझलाहट सी हो को।-तुलसी (शब्द॰) । रही थी। समीर मधिक शीतल हो चला। प्राची का प्राकाण तमाई-सका श्री. दिश०] खेत जोतने से पूर्व उसमें को पास मादि स्पष्ट होने लगा, पर सोया का मष्ट तमसाच्छन्न था।- इंद्र०, पु. ११०॥ साफ करना। समसावृत--वि० [सं०] मंधकार से घिरा हपा। उ.-मानव र तमाई- पञ्चा श्री० [सं० तम+हिं० माई (प्रत्य॰)]१ मधेरा। का मदिर, कब से मौतर से तमसान्त !-युगपप, पृ०१०३ । श्यामता। साम्रता। २ प्रज्ञान । उ०.--साहब मिग्न साहन भए कछु रही न तमाई। कहैं मलुक तिस घर गए जंह पवन न तमसील-सक स्त्री० [म. तम्सीष] १. उपमा। तुलना। २ समानता। परापरी । ३ दृष्टात । उदाहरण। मिसाल । जाई।-मलूक० पू०७। उ०-याने इसका तमसील यू है।-पविखनी०, १०३६५ तमाकू-सा पुं० [पुतटबैको] १.तीन से छह फुट तक ऊँचा एक तमस्क-सका पुं० [सं०] १. अंधेरा। २. विषाद । म्लानता [को०] । प्रसिद्ध पोषा जो एशिया, अमेरिका तथा उत्तर युरोप में तमस्कार-सहा पुं० [सं० तमस्काण्ड] घना अंधेरा। भारी मषिकता से होता है । तबाकू। मंधेरा (को०। विशेष-इसकी भनेक जातियां हैं, पर खाने या पीने के काम तमस्वर-सक पुं० [4. तमस्खुर] मस्खरापन। उ०-उसके में केवल ५-६ तरह के पत्ते हो माठे हैं। इसके पत्ते २-३ मिजाज में बराफत भौर तमस्खुर जियादा है"-प्रेमघन०, फुट तक लरे, विषाक्त और नशीले होते हैं। भारत के भिन्न भाग २, पृ० १०२। भित प्रातों में इसके पोने का समय एक दूसरे से अलग है, तमस्तति-सका सी० [सं०] अषकार की पधिकता। मधकार का पर बहुषा यह फुधार, कातिक से लेकर पूस तक बोया जाता है। इसके लिये यह जमीन उपयुक्त होती है जिसमें खार बाहुल्य को०] प्रधिक हो। इसमे खाद की चहन अधिक प्रावश्यकता होती तमस्तरण-वि० [सं०] अषकार को तरने या पार करनेवाला । 10-- है। जिस जमीन में यह बोया जाता है, उसमें साल मे बहुषा मग. डगमग पग, तमस्तरण पाये जग ।-पचना, पृ० १४ । केवल इसी की एक फसल होती है। पहले इसका बीज बोया तमस्वती- श्री. [सं०] दे॰ 'तमस्विन्। जाता है मौर जव इसके मकुर ५-६ इच के ऊंचे हो जाते समस्विनी-- की- [सं०] १. रात्रि। रात रजनी। २. हरुदी। हैं, तब इसे पूसरी जमीन में, जो पहले से कई बार बहुत सं.] मधकार पर अमलाहट सझार