पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

समारी तमाकू प्रच्छी तरह बोती हुई होती है, तीन तीन फुट की दूरी पर गरम, करपा, मद मौर वमनकारक तपा दृष्टि को हानि रोपते हैं। पारभ से इसमें सिंचाई की भी बहुत अधिक पाव पहुँचानेवासा माना जाता है। श्यकता होती है। इसके फूजने से पहले ही इसकी कलियो ३. इन पत्तों से तैयार की हुई एक प्रकार की गोसी पिढी जिसे पौर नीचे के पो छाँट दिए जाते हैं। बस पत्ते कुछ पीले चिलम पर पलाकर मुंह से धूमा खीचते हैं । रंग के हो जाते है और उसपर चिनियाँ पड़ जाती है, तब विशेप--पत्तियों के साथ रेह मिलाकर जो तमाकू तैयार होता या तो ये पत्ते काट लिए जाते हैं या पूरे पौधे ही काट लिय है, षद कडुमा' कहलाता है, गुड मिलाकर बनाया हुमा 'मीठा' जाते हैं। इसमें बाद वे परो धूप में सुखाए जाते हैं और कहलाता है, पौर कटहल, वेर मादि की खमीर मिलाकर अनेक रूपो में काम में लाए जाते हैं। इसके पत्तों में अनेक बनाया हुपा 'समीरा' कहलाता है। इसे चिलम पर रखकर प्रकार के कीड़े लगते हैं पौर रोग होते हैं। उसके ऊपर कोयले की प्राग या सुलगती हुई टिकिया रखते हैं और सारो हाप गौरिए अथवा हक्के पर रखकर नसी सोलहवीं शताब्दी से पहले तबाकू का व्यवहार कवल अमेरिका के से घूमा साधते ।। कुछ प्रतिी के मादिम निवासियो में ही होता था। सन् १४९२ मुहा०-तमा चढ़ाना-माकूको चिलम पर रखकर और में जब कोलंबस पहले पहल अमेरिका पहुंचा, तब उसने वहाँ उसपर पाप या टिकिया रखकर उसे पीने के लिये तैयार के लोगो को इसके पत्ते पाते और इसका धूपी पोते हुए करना। तमाकू पीना तमाकू का पूमा खीचना । तमाकू देखा था। सन् १५३६ में स्पेनवाले इसे पहले पहल यूरोप में भावा- दे० 'तमाकू पढ़ाना। गए थे। भारत में इसे पाले पहर पुर्तगाली पादरी लाए थे। सन् १९९५ में इसे प्रसदवेग ३ धीषापुर (दक्षिण भारत) में। तमाखू-मशEि .] दे॰ 'तमाकू'। देखा था और वहां से वह अपने साथ दिल्ली ले गया था। तमाचा-सा पु० [फा. तमरह] हथेली भोर उँगलियो से गाल तमाचा वहाँ उसने हक्के पौर पिलम पर रखकर इसे पकवर को पर किया हमा प्रहार । थप्पड । झापड । पिलाना चाहा था, पर हकीमों ने मना कर दिया। पर पागे क्रि० प्र०-बडना ।-देना।-मारना । —लगाना । चलकर धौरे धीरे इसका प्रचार बहुत बढ़ गया। पारंम में तमाधारी- पुं० [सं० तमाचारिन् ] राक्षस । देश्य । निशिचर । इगलैंड, फ्रांस तथा भारत मादि सभी देशो में राज्य की मोर तमादी-सषा बौ.[4.11.पषि बीत जाना । मुद्दत या मियाद से इसका प्रचार रोकने के प्रनेस प्रयल किए गए थे, गुजर जाना। २. उस अवधि का बीत पाना जिसके मदर धर्माधिकारियो पौर चिकित्सकों ने भी इसका प्रचार रोकने के सेन देन सबधी कोई कानूनी कार्रवाई हो सकती हो। उस पनेक उद्योग किए थे, पर वै सर निष्फल हप। अब समस्त मुद्दत का गुजर जान। जिसके मदर मदालत में किसी दावे की संसार में इसका इतना अधिक प्रचार हो पया है कि स्त्रिया, सुनवाई हो सकती हो। पुरुष, बच्चे मौर वुड्ढे प्रायः सभी किसी न किसी रूप में क्रि० प्र०-होना। इसका व्यवहार करते है। भारत की गलियों में छोटे छोटे तमान-कापु० देश० ] एक प्रकार का घेरदार पाजामा जिसकी बच्चे तक इसे खाते या पीते हुए देखे जाते हैं। मोहरी नीचे से तंग होती है। २. इस पेड़ का पचा । सुरती। तमाना-कि.म० [सं० तम से नामिक पातु ] ताव में माना। विशेष-इसका व्यवहार लोग अनेक प्रकार से करते हैं। घर मावेश में माना। पोपने लिये माली में या तमाम-वि० [.] 1. पूरा। संपूर्ण । कुल । सारा विल्कुल । चिलम पर वलाते है। इसमें नशा होता है। भारत में धूर्मा जैसे,—(क) दो ही परस मे तमाम रुपए फूक दिए। (ख) पीने के लिये एक विशेष प्रकार से तमाङ्क तैयार किया जाता तमाम शहर में बीमारी फैली है। २ समाप्त । खतम। है (३० तीसरा मथं)। इसका बहुत महीन चूणं संपनी कहलाता मुहा०-तमाम होना=(१) पूरा होना। समाप्त होना। (२) है जिसे लोग सूंघते है । भारत के लोग इसके पत्तों को सुखाकर मर जाना। पान के साथ प्रयवा यों ही खाने , खिये कई तरह का पुरा तमामी- सी. [प० तमाम + फ्रा०६ (प्रत्य॰)] 4 प्रकार पनाते हैं, जैसे, सुरती, परदा मावि पानसाप खाने के का देशी रेशमी कपड़ा। लिये इसकी गीली गोली मनाई पाती है मौर एक प्रकार का विशेष—इसपर कलाबत्तू की धारियां होती हैं। यह प्राय गोट मवलेह भी बनाया जाता है जिसे 'फिवाम' कहते है। इस लगाने के काम में माता है। देश मे लोग इस सूखे पत्तो को पूने साथ मलकर मुख तमारा-सा पुं० [हिं०] दे॰ 'तबार। में रहते हैं। चूना मिलाने से पह बहुत तेज हो जाता है। तमारि'-सा पुं० [सं०] सूर्य । दिनकर । रवि। इस रूप में इसे 'सैनी' या 'सुरती' कहते हैं। युरोप, तमारि-सदा स्त्री० [हिं०] दे० 'तवार'। ३०-पल में पस रूप अमेरिका प्रावि देशो में इसके पूरे को कागज या पत्तो पादि वीतिया लोगन बगी तमारि-कबीर (शब्द०)। मे लपेटकर सिगार या सिगरेट बनाते हैं। इसका व्यवहार तमारी-सका पु. [ हि.] ३० 'तमारि। 30-सत उदय संतत नशे के लिये किया जाता है और इससे स्वास्थ्य और विशेपत सुखकारी। विस्व सुखद जिमि इंदु तमारी |--मानस, माखो को बहुत हानि पहुँचती है। वैद्यक में यह तीक्ष्ण, ७११२१७ विशेष