पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३७७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२०१५ तरजना विशेष-हाथ की लिखी पुरानी पोपियों में इस प्रकार पक्षर तरकीब-सबा खी० [प्र. १. सयोग। मिलान मेख। २. या शब्द लिख देने की प्रथा पी जिस पर लगाए जा सकें। बनावट । रचना। ३ युक्ति । उपाय । ढगाढव । जैसे,--उन्हें पृष्ठो पर अंक देने सी प्रथा नही थी। यहाँ लाने की कोई तरकीब सोचा। ४. रचना प्रणाली। तरको...संज्ञा पुं० [सं० तक( सोप विचार)] २ मडचन । बाधा। शौली। तौर । तरीका। जैसे, उनके बनाने की तरकीब २ व्यतिक्रम। भूल चुक। मैं जानता हूँ। कि०प्र०-पहना। तरकुला--सश ०[सं० ताल+कूल ] ताड का पेड़। सरक---सक पुं० [५० तक] १. स्याग । परित्याग । २. घटना। सरकुला-स पुं० [हिं० तरकुल] कान में पहनने का एक कि०प्र०-करना। गहना । वरकी। तरकनाल-कि०म० [हिं०] दे तड़कना'। तरकली-सौ [हिं० तरकुल ] कान का एक गाना तरकी। तरकना-वि० तड़कना । महकनेवाला। • उ०—लछिमन संग बूझ कमल कदर कहूँ देखी सिय कामिनी तरकुली कनक की। हनुमान (शब्द०)। तरकना-क्रि० प.[60 तक १ तर्क करना । सोष विचार कर २. पनुमान करना । उ.---दरकिन साहि बुद्धि मन वानी। तरक्कना----कि० भ० [हिं०] तरकना । उछलना। माना। ३०- नव अह नपफेरि भैरी सभाल। तरमय सेग मनी विज्ज तुलसी (शन्द०)। नालं!-पु०रा०, १२० तरकना-कि.५० [मनु०] उछलगा। कुधना । झपटना) - बार बार रघुवीर संभारी। तरकेट पवन नयब मारी। तरक्की --का स्त्री [.प. तरक्की ] वृद्धि। पढ़ती। उन्नति । (सरीर, पर एवं वस्तु भादि मे )। तुलसी (शब्द०)। क्रि० प्र०—करना ।वेना-पाना !-होना । तरकश-प्रज्ञा पुं० [फा० तपा] तीर रखने म चोगा । भाषा। तूणीर। तरन-सा पु० सं०] १ लफरबग्या । २. पीता [को०] । तरकशबंद-सगा पुं० [ फा तर्फशबद ] तरका रखनेवाला व्यक्ति। तरक्षु -सुज्ञा पुं० [सं०] १. एक प्रकार को बाप । कम्पमा । तरकस संशा पुं० [फा० तकश ] दे० 'तरकर । परग। २. पीता (को०)। तरकसी-सबा बी.फा. तकंच ] छोटा रिका । छोटा तुपीर। तरखा-संज्ञा पुं० [सं०तरग] जल का तेज बहाव । ठीन प्रवाह। . उ.-धरे धनु सरकर कसे कटि तरकसी पोरे पठ मौड़े तरखान-सज्ञा पुं० [सं० तक्षण ] लकसी का काम करनेवामा। प'चारु चलिग मंग सूपन जराय के जगमगत हरत बन के पी को तिमिर भालु । —तुलसी (शब्द॰)। वरगुलिया-संज्ञा ली• [ देश० ] पक्षत रखने का एक प्रकार का तरकारी-सक पुं० [हिं० ] दे० 'तरका। 202 छिछला बरतन। वरका सदा पुं० [.] मरे हुए मनुष्य की जायवाद । वह , सरचखी-संज्ञा नो. [देश॰] एफ फारुका पौधा जो सजावट के सरचर । जायदाद जो "सी मरे हुए मादम वारिस को मिले। लिये बगीचों में लगाया जाता है। तरका -सया पुं० [हिं० तार ] बड़ी तरकी। वरच्छी -वि० सी० [हिं०] तिग्छी । "टेढ़ी। 30-सजम पप नाकाचा र तप सौपरत, त जुत प्रोग बिनाए। प्राय तरच्छी ईलता स्त्री० [फा० तरह ( - सबजी, शाक)+कारी३. । बीता समषा जाए।-चांकी पं०, भा. ३, पृ० ३४ । वह पौधा जिसकी पत्ती, जड़, डंठल, फल फूल मादि पकाकर )। साने के काम में आते हैं। जैसे, पालक, गोभी, भालू, कुम्हड़ा, खरछव -कि वि० [हिं० तर] नीचे । नीचे की मोर। इत्यादि । शाफ । सागपात भाजी २. खाने के लिये तरछत'---सशास्त्री० [ हिं.] दे० 'तलछट'। पकाया हुमा फल फूल, कद मूल, पत्ता पादि। णाफ भाजी। तरछन--सबा श्री• [हिं०] दे० 'तलछट' । ३ खाने योग्य मास । ---(पजाय) 148 तरछा-सहा पुं० [हिं० तर ( = नीचे)] वह स्पान जहाँ टेली गोबर कि०प्र०-बनाना। इफट्ठा करते है। तरकी-सश सी. [ से ताडकी ] ने का फल के भाकावरछाना-क्रि० स० [हिं० तिरथा ] तिरछी घाव से इशारा का एक गहना। करना । इंगित करना । ल०-भरध जाम जामिनि गए विशेष-इस पहने का वह भाग षो कान पदर रहता है, सखिन सकुषि तरछाय। देति विदा तिय इतहि पिय चितवन ताके पत्ते को गोल लपेटफर बनाया जाता है। इससे चित सलघाय!-देव, (शब्द.)! यह शन्द ' तासे निकला मा पान पसता है। स० शब्द तरछाव तिरछा । उ--मलत इरछी तरछी तरवारि 'ताड' से भी यही सूचित होता है। इसके अतिरिक्त इस पहै। मार मार फरत परत पलभल है।-सुंदर० प्र०, मा० पहनें को तालपत्र भी कहते हैं। इसे पाकल छोटी पाति १.५० ४८५1 को लिया प्रषिक पहनती हैं। पर सोने के कणंफल मादिके तरज-सपा पु० [म. तज २० 'तज'। लिये भी इस शब्द का प्रयोग होता है। वरजना-कि०म० [सं० तर्जन ] १. वाइन फरना। पटना।