पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३७९

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वरनवार २०१४ तरबूज तरनतार-मश पुं० [सं० वरण 1 निस्तार। मोक्ष । मुक्ति । तरपन -सबा पुं० [हि० ] दे० 'तर्पण। 30-तरपन होम फहिं क्रि.प्र.-करना होना। विधि नाना ।—मानस, २ । १२६ । । तरनतारन-चा पु० [सं० सरण, हि० तरना1१ उदार तरपना@t-क्रि० प्र० [हिं०] दे० 'तइपना' उ.-तर जिमि निस्तार। मोक्ष। २. उद्धार करनेवाला। वह जो भवसागर बिज्जुल सी पिय पे भरपै मननाय सबै घर में !-सुदरी- पार करे। सर्वस्व (शब्द०)। तरना-फि०१० [सं०तरण] पार करना। वरपर-कि० वि० [हि. तर+पर] १ नीचे ऊपर। २ एक के पीछे सरना-कि..! भवसागर से पार होना । मुक्त होना । सद्गति दूसरा प्राप्त करना । जैसे,-तुम्हारे पुरखे तर जायेंगे'। २. तैरना तरपरिया-वि० [हिं०] १ नीचे ऊपर का। २ पहला पौर न बना। दूसरा ( सतान) । क्रम मे पहला पोर नाद का (बच्चा)। तरना-क्रि० स० [हिं० ] दे० 'वलना'। तरपीला-वि० [हि. तप+ ईला प्रत] तपवाला। तरना-सा . [देश॰] व्यापारी जहाज का वह अफसर जो यात्रा चमकदार । में व्यापार संबंधी कार्यों का निरीक्षण करता है। तरपू-सज्ञा पुं० [ देश० ] एक वहा पेड़। तरनाग-सहा . [ देरा०] एक प्रकार की चिड़िया। विशेष-इसकी लकड़ी मजबूत और सूरे रंग की होती है और तरनाल-सक्ष पुं० [ देश ] वह रस्सा जिसकी सहायता से पाल को मकानो में लगती है। यह पेड़ मसाबार और पच्छिमी घाट लोहे को धरन में वधिते है। -(लश०) । के पहाड़ों में पाया जाता है। तरनि'-सा मी हि] दे० 'तरणी'। तरफ-सक्षा स्त्री० [प० तरफ] १ पोर । दिशा । पलंग। जैसे, पूरव वरनिर-सशपु० दे० 'वरणि'। २०-तरनि तेम तुलाधार परताप तरफ । पश्चिम तरफ। २ किनारा पाय । बगल । जैसे, पहियोरे।-विद्यापति, पृ०६। दाहिनी तरफ। वाई तरफ। ३ पक्ष। पासदारी । वैसे,-- यौ०-तरनितनया - सूर्य की पुत्री। यमुना। 30-~तरनितनया (क) लड़ाई में तुम फिसकी तरफ रहोगे ? (ख) हम तुम्हारी तौर जगमगत ज्योतिमय हमि पे प्रगट सब लोक सिरताजै। तरफ से बहुत कुछ कहेंगे। -पनानद, पृ०४६३। यौ०-तरफदार। वरनिजा-उमा हि.] दे० 'वरगिजा' . तरफदार-वि० [अ० तरफ+फादार (प्रत्य॰)] पक्ष में रहने- तरन्नि--सपा पु० हिं० दे० 'तरणि'। उ०-भूपन तीवन तेज वाला । साथी या सहायता देनेवाला । पक्षपाती । हिमायती। तग्नि सौ वैरिन को फियो पानिप हीनो। भूषण पं०, समर्थक। पु०४८। तरफदारी-सक्षा स्त्री० [म० तरफ+फादारी (प्रत्य॰)] पक्षपात । तरनो-साधी- [सं० तरपी] नाव । नोका। उ०-रातिहि क्रि० प्र०करना। घाठ घाट की तरती। माई अगनित जाहि न घरनी।- तरफना-क्रि० स० [हिं०] दे० 'तडफना' । उ-या पनि भोलनि मानस, २०१२.२. पद छोटा मोढा जिसपर मिठाई फा फी तिया। इसनि फलू तरफति है हिया।-नद० प्र०, पाल या खोंचा रखते हैं। दे० 'वन्नी'। पृ० २६६। तरनीर- सागEि 1 उमस के याकार की बनी हुई चीज तरफराना-क्रि० प्र० [अनु॰] दे॰ 'तड़फडाना'। जिसपर खोमचेवाले अपनी थालो रखते हैं। तरब---सज्ञा पुं० [हि. तरपना, तड़पना] सारगी में वे तार जो तोत सरन्मुष-सा पुं० [म.] पालाप। फे नीचे एक विशेष क्रम से लगे रहते हैं और सब स्वरों के सरप-मश सी. [ हिं ] दे तड़प । साथ गूजते हैं। तरपट-वि० [हिं० तिरपट ] (चारपाई) जो टेको हो। पिसमें तर बतर-वि० [फा०] मींगा हमा । माद्र । शराबोर । मौन हो पाटो सोषी हो। तरवन्ना' सशपु० [सं० ताल+हिं० बन] ताड़ का वन । तरपट-पमा पु० टेढ़ापन । भेद । तरवन्ना -मक्ष पुं० [सं० ताडपणं ] दे० 'तरवन' । तरपत--सा पुं० [ तृप्ति].. सुपास। सुबीता। २ माराम। वरबहना-सहा पु० [हि तर+पहना] थाली ऐसाफार फा तावे चैन । 10-तुदो सम सर तजत खर मंन्त पर तरपन - या पीतल का एक बरतन जो प्राय ठाकुरजी को स्नान कराने गोपाल (शव्य०)। के काम में लाया जाता है। तरपटी -सपा पौ• [हिं.] दे॰ 'त्रिकुटी'। उ...-जुग पानि र तराबयत- तरबियत-सक्षा श्री० [अ० तबियत ] १ पालन पोषण करना। मामि वाली बनाय। रमि दिष्ट सिष्ट गिरवान राय। तरपटी देखरेख या परवरिश करमा। २ विक्षा। ३ सभ्यता पोर साप सिख कमल मुर। इष्टि भदि भाष तप तपनि जुर ।--पु. शिष्टाचार की शिक्षा (को०)। रा० ।५०४। वरवूज-समा पृ० [फा० तखुज, तरबुजह ] एक प्रकार की वैष पो