पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३८०

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वरयूजई २०१६ वरपरिहा 73 जमीन पर फैलती है और जिसमें बढ़त बडे बड़े गोल फल तरराना-कि. म. [भनु.] ऐंठना । ऐंडाना। लगते हैं। फलीदा । कालिंद । कलिंग। तरलंग-वि० [सं० तरलङ्ग चपल, पचल । ३०- जेहल कीना विशेष---ये फल खाने के काम में पाते हैं। पके फलों को काटने अमर, ते दीना तरलंग।--बाको००, मा०३, पृ०७१. पर इनके भीतर झिल्लीवार लाल या सफेद मूथा तथा मीठा तरल-वि० [सं०] १. हिलता रोलता चलायमान | पल । बल। रस निकलता है। बीजों का रण लाल या काला होता है। उ.-लखते सेत सारी सक्यो तरल तरौमा कान ।-बिहारी गरमी दिनों में तरबूष सरावट के लिये लाया जाता है। ( ब)।२ मस्थिर । एभंगुर । 1. (पानी की तरह) पकने पर भी तरबूज के छिलके का रग गहरा हरा होता है। यहनेवाखा । द्रव । ४. चमकीला मास्वर। कांतिवान् । ५. यह बलुए खेतों में, विशेषता नदी के किनारे के रेतीले मैदानों खोसला । पोसा। ६. विस्तृत (को०)। ७. लपट (०)। में बारे के पत में बोया जाता है। ससार प्राय सब गरम तरल...सका पुं० १. हार बीप को मणि। २ हार। ३. होरा। देशो मे तरबूज होता है। यह दो तरह का होता है-एक ४ लोहा। ५. एम. देश तथा वहां के निवासियों का नाम उसली या वार्षिक, दूसरा स्थापी। स्थायी पौधे केवल (महाभारते)1६,तल । वा ७.घोड़ा। अमेरिका के मेक्सिको प्रदेश में होते हैं जो कई साल तक फलवे फूलते रहते हैं। तरलता-साडौ• [सं०] १. पबलता । २. द्रवत्व ।। जरबजई-विस ५० [फा० तरबुजह ई (प्रत्य॰)] ३० 'सरवूषिया'। तरलनयन-सहा पु० [सं०] १७ घणपत का नाम जिसके प्रत्येक परण में पार नगए होते हैं। उन्न त सुघर ससिन तरबूजा-सा ५० [फा० तरवूजह,J१ दे० 'तरवूज' । ३. ताजा फस । सहित पिरपिरकि फिरत मुदित। रजिया -वि॰ [हिं० तरबूज] तरबूज के छिलके के रम का। तरलभाव-सा • [सं०] १. पतलापन। २.अपलता चपसता । 'पहरा हरा । काही। तरला-सशी -[..] 1, यवागू पोको माह। २. मदिरा। तरबृजिया-सा t० गहरा हरा रंग । ३. मधुमक्षिका । शहद की मक्खी । । तरबोना'---क्रि० स० [हिं० तर+ बोरना] तर करना । मच्छी तरह तरलासंगापु० [हि. तर ] छाजन के नीचे का वास । भिगोना । वरलाई७-मक्ष श्री. [सं० ठरल+हिं० माई (प्रत्य॰)] .. तरखोनारे-कि०म० तर होना । भीगना। पषषता । वपसता । २.वल। ताबोर-वि० [वि.] दे० 'तराबोर। उ०-वूड़ गए तरबार का तालायित-वि०सै०1हिलायापा। पाया पाका] ! कहुँ खोज न पाया।-मलुरु० पु.10। तरलायित-सका ली० सहर । दरग। हिलोर [फो०] 11 तरभरी-समस्त्री० [मनु०] १ तहमद को पावाज । २. खलबली। तरलित-वि० [सं०] १. तरल किया हमा। 30-कहो कैसे मन तरमाची-सक पी• [हिं०] दे॰ 'तरांची' । को समझा लू, झझा के दूत माघातों सा शुद्धि के परखित तरमाना-क्रि० प. [देश०] विपड़ना । नाखुश होना। उत्पातो सा, पा वह प्रणय तुम्हारा प्रियतम |-त्यलम्, तरमानारे-क्रि० स० किसी को नाराष या नाखुश करना । । पृ. २७ । वरमाना-क्रि०प० [हिं० तर+माना (प्रत्य॰)तर होना । तरछ+-संवा स्त्री॰ [हि. तर+बैंछ (प्रत्य॰) ] जुए के नीचे तरमाना'-क्रि० स० तर करना। की पकड़ी जो बैलो के गले नीचे रहती है। तरवादी। तरमानी-सहा स्त्री० [देश॰] वह तरी जो जोती हुई भूमि में वरवट-सा पुं० [सं०] एक क्षुप । माहुल्म । दतकाष्टक []] . पाती है। तरवड़ी-सबा स्त्री० [सं० तुला+टी (प्रत्य०] छोटी तराजू क्रि० प्र०-माना। का पलड़ा। सरमिरा- स ० [देश०] एक प्रकार का पौधा जो प्राय डेढ दो तरवन-सा पुं० [सं० तालपणं] १ कान मे पहनने का एक गहना । हाय ऊँचा होता है और पश्चिमी भारत मे जीपा बने तरको। २. कर्णफल । साप पोया जाता है। तिरा। तिरा। तरवर-सहा पुं० [सं० ल्वर ] बड़ा पेक वृक्ष । विशेष-इसी पीजों से तेल निकलता है जो प्राय जलाने के तरवर–सा पु० स० तरुवर ] एक प्रकार का लवा पेट् विसका काम में पाता है। थाल से चमड़ा सिझाया जाता है। तरमीमा-समस्त्री० [म.] सशोधन । दुरुस्ती। विशेष-यह मध्यभारत और दक्षिण में बहत पाया जाता है। क्रि० प्र०-फरवा ।-होना। इसे तरोता भी सारे हैं। वरय्या-सका स्त्री० [हिं० ] दे० 'रई'। उ०-खो विशाखा को तरवरा-या पुं० [हिं०] दे० 'तिरमिला'। तरया चद्रकला को बहाई फरें तो क्या पचभा है।- तरवरिया-सया पुं० [हिं० तर वार] तलवार चलानेवाला। सकुतखा, पृ.५१। तरवरिहा-सपा पुं० [हिं० तरवार ] दे० 'तरवरिया' ।