पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३८१

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. तराँची तरहटी तरवाँची-संगा स्त्री॰ [हिं० तर+माचा ] जुए के नीचे की सकती। क्यों वन मे बजी। बन रसा तरसा परसा सुधा ।-प्रिय. मरी। पु. १२८1 तरबॉसी-समस्त्री० [हिं०] दे० 'बरवांची . तरसान-मज्ञा पुं० [सं० नौका [को०] । तरवासन पुं० [हिं. तलवा] दे० 'तलवा'। 10---मंगुरीन तरसाना--क्रि० स० [हि. तरसता] १. प्रभाव का दुख होना लौं बाय भुलाय तही फिरि प्राय लुभाय रहे तरवा । पषि किसी वस्तु को न देकर यान प्राप्त कराकर उसके लिये बेचे चायनि पूरकै एदिनि छवै धपि धाय छकै छवि छाय धवा करना। २. किसी वस्तु की इच्छा मौर माथा उत्पन्न कर। --घनानंद, पृ०८। उससे वचित रखना। व्ययं ललचाना । तरवाई, सिरवाई–समा बी० [हिं० तर+सिर ] ऊपी अमीन संयोकि --डालना :--मारना।। मौर नीची जमीन । पहाड मोर घाटी।। तरसि-क्रि०वि० [हिं॰] दे॰ 'तरसा'। -तरसि पधार हु तरबाना'-कि० म० [हिं० तरवापाना] १ बैलों के तनवों तय्यारी। धीर सोमायौ प्रतधारी।-रा०६०, पृ०१५ का पनवे पखते घिस जाना जिससे वे लंगड़ाते हैं। २. पेलो तरसौहार-वि० ० तरसना+मोहा (प्रत्य॰)] तरसनेवाला का लंगाना। उ.-तिय तरसौहें मुनि किए करि सरसोई मेह। पर परसी संयो-क्रि०-जाना। है रहे झर परसौहें मेह ।-बिहारी (शब्द॰) । तरबाना-कि० स.हि. तारना का प्रे०प ] तारने की प्रेरणा तरस्वान-वि० [सं० सरस्वत्] तेज गतिवाला। वेगवान् । २ वीर करना। बीमार तरुण [को०)। तरवार-सा पुं० [हि.] 'तलवार'। वरस्वान्– '०१ पिव । २ गरुड । ३ वायु को। तरवार -सहा . [हिं०] दे० 'सरवर।। तरस्त्री-वि० [सं० ठरस्विम् ] [वि॰ स्त्री. तरस्विनी] १. छ तरवार-वि० [हि. तर ( = नीचा, सले)+वार (प्रत्य॰)] बनी। उ०-अली, मनस्वी, तेजस्वी, सर, तरस्वी जानि निपली। खलार (भूमि)। कज, प्रवरिण, भास्वरि, सुभट, राधे जिन करि मान ।-नव तरवारि-सं० [सं०] खड्प का एक भेव । तमवार । १०-रोषन प्र., पृ० ११३ १ २ वेगवान् । फुर्तीला। । रसना जनि खोलिए यय खोलिए तरवारि । तुलसी (पद०) सरस्वो--सा पु०१.धावक । दूत । २. नायक । धौर । ३. पवन तरवारी-संच (हिं. तरवार] तलवार चलानेवाला। वायु । ४ गरुड (को०)। तरस--सg[सं०] १ बल । २ वेग । ३. बानर 1४ रोय। , तरह-सवा बी• [भ.] प्रकार । भाति । किस्म । जैसे, यहाँ त ५ तीर । तट। तरह की चीजें मिलती हैं। तरस --सक पुं० [सं० प्रस( रना) पयवा फ़ा० तसं ( - भय, महा-किसी की तरह किसी के सय किसी के समान उर, खौफ) ] दया करणा। रहम । जैसे,—उसकी तरह काम करनेवाला यही कोई नहीं है। कि० प्र०-मामा। २. रचना प्रकार । ढाँचा। शैली। डोल। पद्धति। चनावट मुहा०-(किसी पर) तरस खाना = दयाद्रं होना । क्या करना। रूपरंग । जैसे,—इस छीट की तरह पच्छी नहीं है । ३ ठा __ रहम करना। तर्ज । प्रणाली । रीति । ढंग । जैसे,-वह बहुत बुरी तरह . पढ़ता है। विशेष-इस शब्द का यह मयं विपर्यय द्वारा पाया हुपा जान पड़ता है। जो मनुष्य भय प्रकाशित करता है, उसपर दया मुहा०-तरह उड़ाना = ढग की नकल करना। ४ युक्ति। हम। उपाय। जैसे,—किसी तरह से प्रायः की जाती है। र रुपया निकालो। तरस-सहा पुं० [सं०] मांस को। मुहा०-तरह देना = (१) खयाल न करना। पपा खान तरसना'-क्रि.प. [सं० तपंण (-पभिवापा)] किसी वस्तु है विरोष या प्रतिकार न करना। क्षमा करना । पाने देन पभाव में उसके लिये इच्छुक पोर प्राकुल रहना । पभाव का उ.--इन तेरह तें तरह दिए पनि पावै साई।---गिरि दुध सहना । (किसी वस्तु को) न पाकर बेचैन रहना । पैसे,—(क) वह लोग दाने दाने को तरस रहे है। (ब) कुछ (राय)। (२) टालटूल फरना । ध्यान न देना। ५. हाल । दशा (प्रवस्या । पैसे,—माषकम उनको । दिनों में तुम उन्हें देखने के लिये तरसोगे । १०-दरसन धिनु तरह है? पंचियो तरस रही। -(गीत)। ६ समस्या । पद्य का एक चरण। ) सयो० मि०--जाना। ८ . मुहा०-तरह देना=पूर्ति के लिये समस्या देना। तरसना-क्रि० भ० [./स् ] अस्त होना। ७ न्यास। नींव -बुनियाद । ८ घटाना वाफी। व्यवकल. तरसना-नि० स० त्रस्त करना। पास देना। तफरीक । ६ वेशभुषा । पहनावा । तरसा-कि. वि० [सं० तरस् ] शीघ्र उकमललोचन क्या तरहटी-सधा स्त्रो० [हिं० तर (नीचे)+हंट (प्रत्य॰)] नी कल मां गए, पलट क्या फुफपाल क्रिया गई। मुरखिका फिर भूमि । २. पहाड़ की तराई।