पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३८३

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सरारा' २०२६ वरी तरारा'-सका ० [देश या मनु०] १ उछाल । छलांग। कुलांच। नाव का महसूल लेनेवाला । उतराई सेनेवाला । ३ मल्लाह। क्रि० प्र०-भरना !-मारना । केवट । मांझो। मुहा.-तरारा मरना-जल्दी जल्दी काम करना । फर्राटे तरिका-सा बी• [सं०] १. नाव नौका । २. मक्खन को! साथ काम करना। रारा मारनासँग हांकना। पढ़ तरिका-सबा श्री. [ से० तडित् ] बिजली। विद्युत । बढ़कर पातें करना। तरिकी--म पु० [सं० तरिकिन् ] मांझी । मल्लाह [को०)। २ पानी की धार जो बराबर किसी वस्तु पर गिरे। तरिको-सबा पुं० [सं० ताउडू] कान का एक गहना । तरको । तरारा२-वि० [फा० तर+हि. पारा (प्रत्य॰)] गीला । सजल । तरौना। उ-ते क्त तोरयो हार नौसरि को मोती बरि मादें। उ०-माए जर मोहन रंग भरे । मयों मो नेन तरारे है सब वन मैं गयो कान को रिको।—सूर (शब्द०)। करे।-नद.., पु० १५२ । वरिणी-सक बी० [सं०] तरणी [को०] । तरालु-सका पुं० [सं०] छिछले पंदे की एक बड़ी नाव (को०] तरिता'-पुथा बी. [सं०1१ तर्जनी उंगली। २ भाग।३ तरावट-ससी .[फा. तर+हि० मावट (प्रत्य॰)] 1 गोसा- गौत्रा। पन । नमी। २ ठढक । शीतलता । जैसे,—सिर पर पानी तरिता -सबा बी० [सं० तरित ] बिजली। उ०--करप झपै पड़ने से तरावटमा गई। कौषे फ तरिता तर पूनि लार छटा में घिरी।-पजनेस क्रि० प्र०-पाना। ३. सात पित्त को स्वस्थ करनेवाला शीतल पदार्थ । शरीर तरित्र-पधा पु० [सं०] [स्त्री० तरित्री मी नाव । नौका। पोत । की परमीणात करनेवाचा माहार पावि।४ स्निग्ध मोषन । पैसे, घी, इष मादि। तरित्री-सहा जी [सं०] नाव । नौका (को०)। तराश--सका बी-[फा. , काटने का उग। फाठ । २. काट- तरिया-[हिं. तरना ] तैरनेवाला। छाँट । बनावट । रचनाप्रकार। तरियाना-क्रि० स० [हिं. तरे (नीचे)] १. नीचे कर देना। यो०-सराश सराश। नीचेगल देना । वह में बैठा देना।२ ढाकना । छिपाना।। ३ ढग । तर्ज। ४ ताश या गंजीफे का वह पत्ता जोक पटुप के पेंट में मिट्टी राख मादि पोतना जिसमे पाँच पर पढ़ाने केवाय हाप में प्रावे। मे उसमें कालिख न बमे । लेवा लगाना । जरियाना-क्रि. प० तले बैठ जाना । तह में बमना। तराश खराश-सा स्त्री॰ [फा०] काटछाँट । कतरब्योत । व तरियाना-क्रि. स. [ फा तर से नामिक धातु ] तर करना। तराशना-क्रि० स० [फा० ] काटना । कतरना । फलम कर गोधा करना। सरास -सपा पुं० [सं० त्रास दे० 'पास'। सरासर-सहा श्री० [फा० राष] दे० 'तराश तरिवन--स . [हिं० ता] , कान का एक गहना । वो फूल के माकार का होता है । तरकी। तरासना+-क्रि० स० [सं.त्रास+ना (प्ररम०)] भय दिखलाना विशेष—इसका वह भाग जो कान के छेद मे रहता है. तारके डराना । त्रस्त करना । 3.--चमक बीजु धन गरजि तरासा। पत्ते को लपेटका बनाया जाता है। बिरह कास होइ जीव गरासा ।—जायसी (शब्द०)। २ कर्णफूल। तरासार-वि०० तृषित ] प्यासा ।। तरिषर -सा ५० [सं० तरु+वर ] दे० 'तरुवर'। तरासार-सहा स्त्री० [सं० तृवा ] प्यामा। तरिहत+--कि० वि० [हिं० तर+पत, हत (प्रत्य॰)] नीचे। वराहि-प्रय. [ सं नाहि ] दे॰ 'त्राहि । तले । उ०-बुधि जो गई दै हिय गौराई। गवं गयो हरिहंत वराही/-कि० वि० [हिं॰] दे॰ 'तरे'। सिर नाई। -जायसी (शब्द०)। तरिवा- पुं० [हिं. तरना+पा (प्रत्य॰)] वह पीपा पो तरी सशत्री० [सं०] नाव। नौका। २. गदा । ३. कपड़ा समुद्र में किसी स्पान पर अगर द्वारा दिया षाताई रखने का पिटारा। पेटी। ४. घूमी। धूम। कपड़े का मोर लहरों ऊपर उतराया रहता है।-(स.)। छोर । वामन । विशेष—ये पीपे पट्टान पारिको सूचवा लिये बांधे जाते है तरी–सबाजी [फा०] १ गीलापन । पाता। २ ठंढक। और कई साकार प्रकार होते। इनमें से किसी किसी में शीतलता । ३. वह नीची भूमि जहां बरसात का पानी बहुत घटा, सौटी मावि मी लगी रहती है। दिनों तक इकट्ठा रहता हो । चार। ४. तराई । तरइटी। परि-सा भी. [सं०] १. नौका । नाव । २ कपड़ों का पिटारा। ५. सपदि । पनाउघता । मासबारी। ३ कप का छोर वामन । तरी -संवा स्त्री० [हिं० तर(नौरे)] १. वे का दला। २. तरिक-संत पु० [सं०] १. प्रल में रनेवालीसकड़ी। डा। २. तलछट । सलो। मना