पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३८५

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तरराग-सबा पुं० [सं०] नया कोमल पत्ता । किसलय । तरैली-संशा श्री. [हिं॰] दे० 'वरैनी'। तरुराज-सका पुं० [सं०] १. कल्पवृक्ष । २. साह का वृक्ष । तरोंचा-सा बी.[हिं० तर नीचे+मोष (प्रत्य॰),या देश.] तरुरुहास खो• [सं०] बौदा । १ कंषी के नीचे की मकड़ी। २.दे.'त छ। तरुरोहिणी-सवा स्त्री० [सं०] बांदा । बदाफ । तरोंचा-मुक्षा [हि. ठर(-नीचे) बी.तरोंची] जुए के नीचे तरुवर-सका पुं० [सं०] वृक्ष । की लकड़ी। तरवरिया--सका श्री. तरवारि] तलवार । तरोंडा-सका पुं० [देश॰] फसल का उतना मनाप जितना हलवाहे तरुवल्ली-सहा स्त्री० [सं०] जतुका लता । पानड़ी। पादि मजदूरों को देने के लिये निकाल दिया जाता है। वरुवासिनी-वि० [सं० तरु+ यासिनी] पेड़ पर रहनेवाली। उ०- तरोई-सच्चा स्त्री० [हिं०] दे॰ 'तुरई। कूक उठी सहसा तववासिनी ! गा तू स्वागत का गाना । किसने । तरोता-सश [.तरवट ] एक सबा पेड जो मध्यभारत और तुम्को अतर्यामिनि । चतलाया उसका माना ?-वीणा, दक्षिण भारत में पाया जाता है । इसकी छाल चमड़ा सिझाने पु. ५८। के काम मे पाती है । इसे 'तखर' भी कहते हैं। तरुसार-सक पु० [सं०] कपूर । तरोना -संडा पुं० [हिं०] दे० 'तरोना' । उ-प्रमा तरोना लाल तरस्था-समा स्त्री० [सं०] बौदा । की परी कपोलन मानि। कहा छपावत चतुर विय कत दत तरुट, तरूट---सप्मा । [सं०] कमल की जह । मसीए । मुरार । छत जानि ।-नद०प्र०, पृ. ३३५ । तरंदा-सचा पुं० [सं० तरएड] 1. पानी में तैरता हुमा काठ। बेठा। सरोवर, सरोवर -संच पुं० [सं० तस्वर] दे॰ 'तर २. वह तैरनेवाली वस्तु जिसका सहारा लेफर पार हो सकें। रोम रोम प्रति गोपिका ह गई साँवरे गात । काम सरोवर १०-सिंह तरेंदा जेइ गहा पार भयो तिहि साथ। ते पय सावरी, ब्रज बनिता ही पात। -नद.०, पृ० १८९ बूढे वारि ही में पूछ जिन हाप।—जायसी (शब्द॰) । - तरे-क्रि० वि० [सं० तल] नीचे । तले। वरौंछ- स्त्री॰ [हिं० तर + मौछ (प्रत्य॰)] तमघट। मुहा०--(किसी के) तरे बैठना(किसी को) पति बनाना । तरौंछी- स्त्री० [हिं० तर+भौधी (प्रत्य॰)] १ वह लकी तरेg -वि० [हिं०] दे॰ 'तरह 13०-बाने की लाज राख्यौ को हत्थे में नीचे की तरफ लगी रहती है। -(जुलाहे) । २. बैलगाड़ी में लगी हुई वह लकड़ी जो सूजावा के नीचे तुमसे है सब इलाहौ। गलबाहियो मानि नाखौ रस उस तरे रहती है। ही चासो-ब्रज ०,१०४ रेटा-सा पुं० [हिं० वर+एट (प्रत्य॰)] नाभि के नीचे का तरोटा-सका पु. [हि तर+पाट] माटा पीसने की पक्की का 1 नीचेवाला पाट । जाते के नीचे का पत्थर । हिस्सा । पेड़। वरेटी-समा स्त्री० [हिं० तर ] पर्वत के नीचे की भूमि । तराई। तरौंवा-सका पु० [ हिं• तर + पौंता ( प्रत्य॰)] छाजन मे के धरहटी। वसहटी। पाटी। सकड़ियो जो ठाठ के नीचे दी जाती हैं। तरेड़ा-सा पुं० [पनु.] दे० 'तरेरा', 'तरारा'। तरीस -सहा . [हिं. तर+मौंस (प्रत्य॰)] तक। तीर । तरेरना-क्रि० स० [सं० तज(डाटना)+हि. हेरजा(= देखना)] किनारा । उ०-स्याम सुरति करि राधिका तकति तरनिजा मांखों को इस प्रकार करना जिससे कोष या अप्रसन्नता प्रकट तीर। मंसुवनि करवि तरोस को छिनक खरौंहो नीर।- हो। दृष्टि कुपित करना । प्रॉस के इशारे से डांट बताना। बिहारी (शब्द.)। दृष्टि से असम्मति या असतोष प्रकट करना । 30--सुनि तरौना–समा पु० [हिं. ताड+बना] १ कान में पहनने का एक खछिमन विहसे बहुरि नयन तरेरे राम |-मानस, १२७८ । गहना बो फूल भाकार का गोल होता है । तरकी। विशेष-कर्म के रूप में इस सध्द के साथ भाव या उसके (इसका वह प्रश जो कान के छेद में रहता है, तार के पत्ते पर्यायवाची शब्द पाते हैं। को गोल लपेटकर बनाया जाता है)। तरेरा--सभा [प० तरारह] लहरों का पेड़ा। विशेष तरको', 'ताडक'। तरेरा-सदा पुं० [हिं. तरेरना] क्रुद्ध दृष्टि। २ कर्णफूल नाम का माभूषण। उ०लसत सेत सारी ढक्यो वरेसा- पु. [सं० सर+ईश, या देश०] कल्प वृक्ष । उ०-दड तरल तरोना कान-विहारी (बन्द०)। फाल करगा तरेस सी गणेस देत ।-रघु०६०, पृ० २४६ । तरोनार सय ० [हि तर(नीचे] वह मोड़ा जिसपर मिठाई सरैनी-सबा नी [हिसर (-नीचे)+ऐनी (प्रत्य॰)] वह पचार का खोचा रखा जाता है। जो हरिस पौर हल को मिलाने के लिये दिया जाता है। तर्क- ० [सं०] किसी वस्तु के विषय में प्रज्ञात तत्वको वरैया-संकी• [हिं॰] दे॰ 'तराई। ति द्वारा निश्चित करनेवाची उक्ति या विचार। वरेवा--समपु० [हिं० तरे] किसी स्त्री के दूसरे पति का पुत्र । त। विवेचना। दसील।