पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२०१२ विशेष-तरूं न्याय के सोलह पदार्थों ( विषयों ) में से एक है। तर्कविद्या-सहा • [सं०] तर्कशास्त्र । [को०] । जब किसी वस्तु . संबप मे वास्तविक तत्व ज्ञात नहीं होता, तर्कश- सा पु० [फा०] तौर रखने का बोंगा । भाषा । तूणीर। तब उस तत्व के ज्ञानार्थ ( किसी निगमन पक्ष में कुछ तकशास्त्र-सबा पुं० [सं०] १ वह शाल बिसमें ठीक तया हेतुपूर्ण युक्ति दी जाती है जिसमें विरुद्ध निगमन की अनुप- विवेचना करने के नियम पादि निरूपित हो। सिद्धांतों पत्ति भी दिखाई जाती है। ऐसी युक्ति को तर्क कहते हैं। तर्क खंग्न मंडन की शैली बतानेवाली विद्या । २ न्याय शास्त्र । मे शका का होना भी प्रावश्यक है, क्योकि जब यह शंका तर्कस-सज्ञा पुं० [फा• तरकथ] दे॰ 'तकंश'। होगी कि बात ऐसी है या वैसी, तभी वह हेतुपूर्ण युक्तिवी तकसी-शा स्त्री. [फा० तरकश छोटा तरकश। मायगी जिसमें यह निरूपित किया जायगा कि बात का पैसा तकसा होना ही ठीक है वैसा नही। जैसे, शंका यह है कि मात्मा तकों-- सज्ञा स्त्री॰ [td.] त [को०)। नित्य है या पनित्य । यहाँ पात्मा का यथार्थ प ज्ञात नहीं तर्कोट- सज्ञा पु० [सं०] भिक्षुक । यापक [को०] । है। उसका पयार्थ रूप निश्चित करने के लिये हम इस प्रकार तांतीत-वि० [सं०] तसे परे । उ०-तर्कातीत थवा से हटकर । विवेचना करते हैं,-यदि मात्मा पनित्य होती तो अपने फर्म एक बुद्धिसगत, लौकिक, मानववादी नैतिक बोष का रूप का फल न पार कर सकती पौर उसका मावागमन या मोक्ष लिया ।-नदी०, पृ.१०। न हो सकता। पर इन सब बातों का होना मसिर दी है। है। तर्काभास-सज्ञा पु. [सं०] ऐसा तकं को ठीक न हो । कुतकं । मत मारमा नित्य है, ऐसा मानना ही पड़ता है। २ चमत्कारपूर्ण स्तिोल की बात। चोष की बात। तकारी'-ज्ञा स्त्री० [सं०] | मंगेथू का वृक्ष । परणीस । २ चतुराई से भरी बात। उ०-यारी को मुख घोइके पट बैठका पेड। पोंछि सवारयो। तरक बात बहते कही कुछ सुषि न तकोरी-सज्ञा स्त्री० [हिं०] दे० 'तरकारी। संभारयो। -सूर (शब्द॰) । ३ व्यग्य । साना । १०- तकिण-सज्ञा पुं० [सं०] पकवंड। पवार । दे सब तोलिई मोको तास बहुत रेराऊँ ।--सुर (सम्ब०) तकिल-संज्ञा पुं० [सं०] चकरा पवार । ४ धारणा । पनुमान (को०)। ५ विचार | विचारणा । नरममा कारणा। ती-सज्ञा पुं० [सं० सकिन्] [स्त्री. स्निी ] तक करनेवाला । कहा । वितर्क (को०)। ६ शुद या स्वतत्र चिंतन के प्राधार पर . तर्की-सज्ञा श्री• [हिं०] टरकी ! पक्षी। स्थापित विचार व्यवस्था (को०) 1 ७ छह को सख्या (को०)। . कारण (को०)। ६ इच्छा। प्राकाक्षा (को०)। वकी-सज्ञासी• [हिं०] दे० 'तरकी'। न्यायशाल (को०)। शान (को०)। १२ अर्थवाद (को०)। तीव-सज्ञा बो• [हिं० तरकीब] दे० 'तरकीर'। यौ०-तर्कशील = तर्क में प्रवीण । ताफिक । तर्क करनेवाला। तर्कु-ज्ञा पुं० [म.] तकला । टेकुमा । २०-प्राचीन हिंदू बजे तकगील थे। -हिंदु. सभ्पता यो०-तकुंशाण %Dसान धरने का पत्थर । पृ०६२। तकुंक--वि० [स०] निवेदन करनेवाला । प्रार्थी [को०। वर्क'-सा पुं० [१०] १ त्याग । छोडना । २ छूटना । तकुंट-ज्ञा पुं॰ [सं०] काटना (को०] । क्रि० प्र०-~करना। तकुंदी-सज्ञा स्त्री० [सं०] १ तकला । टेकुमा । २ काटना (को॰) । यौ-तप्रव-पशिष्टता । मसभ्यता । तदुनिया = साघु या तपिंड तपीठ. तर्कपीठी-सज्ञा पुं० [सं० तॉपिएड] वकले की फकीर हो जाना। फिरकी। वक-सका पुं० [सं०] १ तर्क करनेवाला । तर्कशास्त्री। तार्किक । कुल-संज्ञा पुं० [सं० ताड+कूल] १ तार का पेड । २ तार २ याचक । मंगता । का फल । तकण-बापुं० [सं०] [वि० तणीय, तक्यं] तक करने की क्रिया। तक्य–वि.. जिसपर कुछ सोच विचार करना प्रावश्यक हो। बहस करने का काम । विचार्य । चिस्य । तर्कणा-सा बी० [सं०] १ विचार । विवेचना । कहा । २. युक्ति। तनु-संज्ञा पुं० [सं०] उदुमा या चोता नामक जतुः । दसौल। तक्ष्य-संज्ञा पुं॰ [सं.] पवाखार नमक। तईना'- सच्चा खो• [सं० तकरणा] दे० 'तकंणा' । तर्गशा--संज्ञा पुं० [हिं० दे० 'त '। उ.--ना उर्गय न धन तर्कना -कि.म० [सं० तर्क +ना (प्रत्य॰)] सकं करना । खडो ना सिपर तलवारि।-प्राण, पृ०२८६ । तर्कना3-क्रि० म.[हिं०] उछलना । कूदना । तर्ज-सका पु०, सी.[म. त]१ प्रकार किस्म । तरह। २ तकमुद्रा-सा श्री० [सं०] तंत्र की पक मुद्रा। रोति । थैली। उग। उससे बातचीत करने का तर्ज । तर्कवितर्क-सक्षा पुं० [सं०] १ऊहापोह । विवेचना। सोप विचार। जैसे,इस छींट का तर्ज पन्छा नहीं है। २ वाद विवाद बहस । तजन-संज्ञा पुं० [सं०] [वितषित].धमकाने का कार्य। क्रि०प्र०करना। भयान । २. ऋोष। ३. तिरस्कार फटकार डॉट अपट।