पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३८७

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वर्जना २०५ तक्ष यो०-जब गजट फटकार । क्रोधप्रदर्शन । गया किस तर्फ 1 इक झलक Bो मुझे दिखा करके ।-भारतेंदु तर्जना-सा श्री.[0]. 'वजन' [को०] । य, भा०२, पृ. २२० । तना -कि.प्र.हैदन] टना। धमकाना| पटवा। वबंट-प्रज्ञा पुं० [सं०] १ एकर पवार । २ भाद्र वरसर । वर्ष। तलेनी-बी• [सं०] अंगूठे पास की उपखी । पंगूठे और तर्षियत--सपा जी [प०] शिक्षा दीक्षा । उ.-पाप हो की तालीम मध्पमा बोर की उपक्षी। प्रदेशिनी। उ०-वहाँ कुम्बा मौर तबियत का यह पसर है।-प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ. ६१ बतिया कोड नाहीं । जे सजनी देखि मरि पाहीं । तुषसो तजसमा पु० [हिं॰] दे॰ 'तरवून'। (अम्ब.)। तरधोना-- सा पुं० [हिं०] दे॰ 'सरोना । विशेष-सी गली में किसी वस्तु की भोर दिखाते या इशारा तरचौना+-सा ० [हिं० तरौना ] दे। 'तरीमा'। उ.-पको वरघोचा ही रह्यो धुति सेवत इकण। पाक वास बेसरि तर्जनीमुद्रा- सका श्री. [सं०] तत्र की एक मुद्रा जिसमे बाएँ लहो पति मुकुतनि सग।बिहारी र, पो०२.। हप की मुद्रो बषिकर तजनो मोर मध्यमा को फखात है। सर्ग-सक्षा देशपाबा का फीता या डोरी जो की मेधी तर्जिक-सक'० [सं०] एक देश का प्राचीन नाम । तायिक पेशा रहती है। तर्जित-वि० [सं०] 1.Mटा या फटकारा हुमा । धमकाया हमा। तर्राना-मणा पुं० [फा. सरावा] एक प्रकार का पाना। दे० 'हरामा' २ पपमाचित । तिरस्कृत [को०] तर्राना-क्रि० प्र० [हिं०] दे० परीना' । तर्जुमा-शा पु० [.] भाषातर । सल्या । मनुवाद। तरी-सशा औ•[ देश ] एक प्रकार को घास बिसे भैसेंब प्रेम तणे-सज्ञा पुं० [सं०] गाय का पक्षमा । पछवा । खाती हैं। तर्णक-प्रज्ञा पुं० [सं०11.तुरत जन्मा हुमा गाय का घछा। त-सा पुं० [सं०] १. पभिखापा । २ तृष्णा । पछतोष । उ.- २ शिशु । बच्चा। देव शोक संदेह मय हर्ष तम तर्प पन साधु सद्युक्ति विच्छेदन तर्णि-सज्ञा श्री. [+] दे० 'तरणि । कारी । तुलसी (पन्द०)। ३. नेहा । ४. समुद्र । ५ सूर्य। तरीक-शा ० [सं०] चाव। तर्पक-TN पु० [सं०] कफ का एक भेव ।- माधय०, पृ० ५८ ॥ वर्वरीकर-वि० १. पार पारेवाला । २ पार ले पानेवाषा (को०)। तर्पण- पुं० [सं०] [पि० तपित] : पिपासा । प्यास । । मभिः वर्दू-संशा श्री• [सं०] गेई (फो०] । लाषा । इच्छा तर्पण-शा पुं० [सं०] [वि० तपंणीय, तपित, पी] १. दर तपित वि[सं०] १ प्याया। २. वो मालसा किए हो। इच्छुक । करने की भ्यिा । सतुष्ट करने का कार्य । २.कमर की एक तघुल-वि० [सं०] दे० 'तर्षित' [को०)। किया जिसमें देव, हषि पौर पितरों को तुष्ट करणे के लिये तर्स- सपा पुं० [हिं०] दे० 'सरस' । उ०—तसे है यह देर से, प्रा आप या परपे से पानी देते हैं। पडो शृगार में।बेला, ५०६७। विशेष-सम्पाहं स्नान पीछे तर्पण करने का विधान है। वह-सका स्त्री० [म.] दे० 'तरह। हि०प्र०—करना । होना। यो०-तह प्रदाज- तहं अफगन नीव डालनेषाला । बुनियाद ३ पक्ष की अग्नि का ईधन (को०)। ४. भोजन । माहार (को०) रखनेवाया। ५ मोख में तेष गलना (को०)। वहदारी-सक्षा स्री [म. तर+फा० दारी (प्रत्य॰)] १.धोकापन । तर्पणी-संप स्त्री० [सं०] बिरनी का पक्ष । २. गगा नदी । छबीलापन । पाजसज्जा । १ हाव भावनाज महरा। ३. तर्पयो –वि. तृप्ति देनेवासी। इस्न ! सौंदर्य । उ०-है नई सजायट नई तहकारी है। सघ कहो किससे पावकल नई पारी है।-प्रेमपन०, पा.२, वणीय-वि० [सं०] तृप्ति के योग । पु. ३६४। तर्पिणी-संजा श्री. [सं०] पगारिणी खता। स्थल कमसिमी। तई -सका काम.] दे० 'सरह। 30-फाशी पडत घरो स्पलपप। पाव बहोत हे मनाव ।-दक्सिनी., पृ०४६ तर्पणेच्छ-वि० [सं०] १ तर्पण करने की इच्छा।२ तर्पण कराने की इच्छा को तल - सहा से०] . नीचे का माय । २. पेंदा । तल पक्ष नीचे की भूमि । ४ यह स्पान जो किसी वस्तु के नीचे परता तर्पणेच्छु-सज्ञा पुं॰ भीम को०] । हो। वैसे, तहतल। नर्पित-वि० [सं०] तृप्त किया हमा। सतुष्ठ किया हमा। मुहा०---तन करना = नीचे या शेगा। छिपा लेना।-(जुमारी)। ती-वि० [सं० तपिन्] [ वि० स्त्री तपिएी] १ तृप्त करनेवाला। ५ पैर का तमया । ६ हयेली।७ बपत । पप्पा किसी संतुष्ट करनेवाला।२ तर्पण करनेवाया। वस्तु फा पाहरी फैलाव । बाह्य विस्तार। पृष्ठदेश । समक्षा तर्फ-संशा श्री.हि.] दे० 'तरफ' 13.-क्या तुपा यार दिप जैसे,-भूतस, परातम, समतल । ६. स्वरूप । समाव । १०.