पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३९२

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तबर ससोदा २०३८ तलोदा--सशा बी० [सं०] दरिया । नदी। वल्वकारी-सधा पुं० [सं०] दे० 'तलवकार'। तलौच-सदा सी० [सं० तल (= नीचे) +हिं० पौंछ (प्रत्य॰)] नीचे तल्हार-सका सी० [हिं० ] तमा। बीचे। 3-जिता गंज है जमी हुई मैल पादि। तलछट । यो बमीले तल्हार । तो यक बोल पर ते सः उसफूधार1- तलोपन-पक्ष पुं० [4.1१ वह परिवर्तन को मत, सिद्धांत एवं दरिखनी०, पृ० १५२। । विचार में हो पाता है। २. रग बदलना। ३. छिछोरा- सवॅचुर -समा पुं० [सं० ताम्रचूणं, हिं० तमपुर ] मुर्गा । पन [को०] । तव-सर्व० [सं०] तुम्हारा। तल्फ-सपा पुं॰ [सं०] वन । तवक-संहा पुं० [सं०] धोखा । वचना । प्रतारणा [को०] 1 . , तल्ख-वि० [फा० तल्ख ] १. करमा । कटु । २. बदमषा । बुरे तवक्का-समा सी [५० तवनका ] १ विश्वास । २ माशा। स्वाद का। ३ प्रार्थना । 10-नहि तू मेरा सगी भया। तुलसी तवका तल्खी-सक्षा स्त्री॰ [फा. तल्खी ] कड़वाहट । कामापन । ना किया ।-तुरसी श०, पृ०२४ । तल्प-सज्ञा पुं० [सं०] १ अय्या । पजम । पेष। २ पट्टाविका। तवक्कु-सहा पुं० [प. तवक्कुम ] १ विलय। देर। २ पटारी । ३. (लाक्ष०) पत्नी।चार्या । बेरी, गुरुतल्पग (को०)। ढोपापन को। तल्पक-सधा पुं० [सं०] १ पचंग। २ वह सेवफ जो पलग पर तबक्षीरस पुं० [सं० फा० तबाशीर ] तवापीर । तीखुर। विस्तर मादि लगाता है [को] । तवक्षीरी-सौ . [.] कनकचूर विसको बहरे एक प्रकार तल्पकीट-सा पुं० [सं०] मत्कुरण । खटमल । का तौखुर बनता है। पपीर इसी तीखुर का बनता है। तल्पज-या पुं० [सं०] क्षेत्रज पुत्र । तवज्जह-या स्त्री० [प.१ ध्यान । रख। सल्पन-सधा ० [सं०] १. हायो को पीठ पर की मासपेशियां। क्रि० प्र०-फरना ।-देना । २ हायी की पीठ या उसका मांस [को॰] । २. कृपाइष्टि । तल्पाना-सापु० [फा० सल्वानह] गवाहों को तलब कराने का तवन -सा श्री० [सं० तपन] १ गर्मी । तपर २ प्राग। खचं । दे० 'तलबाना'। उ.-स्टांप, सल्याने वगैरे हिसाब तवन २-सवं० [हिं० तौन] वह । में लोगों को धोका दे दिया करता था। श्रीनिवास प०, तवना-सका पुं० [हिं०] १. 'स्तवन' उ.--चित अनेक विधि पु.२१.। विवर विल नदिनी निकास। मत्र कप गगा तवन लगे करन तस्पल-धम पुं० [सं०] हाथी का मेरदंग, रीढ़ या पृष्ठवण (को० । रिष तास ।-१० रा., १।१५४. तल्ल-सबा पुं० [सं०] १. विल । गङ्गा । २. ताल । पोखरा। तवना@+-क्रि० स० [सं० तपन.] १ तपमा। परम होना । २. तल्लह-सम पुं० [सं० ] कुत्ता। ताप से पीड़ित होना । दुख से पीडित होना । उ०-(क) तल्ला--संबा पु० (सं०] तलतले की परत । पस्तर। भितहला। काल प्रताप कासी तिह वाप सई है।-तुलसी प्र०, पृ० २ ढिग । पास। सामीप्य । १०-तियन को तल्ला पिय, २४२ । (ख) जपते न्हान गई तई ताप भई बेहाल । भली नियन पियल्ला स्पागे ढोसत प्रचल्ला भल्ला पाए राजद्वार करी या नारि की नारी देखी लाल।-१० सत० (शब्द॰) । को ।- रघुराण (शब्द॰) । ३ प्रताप फैलाना । तेष पसारना। उ०-छतर गगन लग ताकर सुर सवा जस पाप ।-बायसी (शब्द०)। ४ कोष तल्ला-सहा पुं० [सं० तल्प ] मकान का मजिल । जैसे, तीन तल्ला से जलना । गुस्से से बाल होवा । कुढ़ पाना । २०-(5) मकान । भरत प्रसग ज्यो कालिका लह देवि तन मे तई ।-नाभावास तल्लास -सश सी० [फा० तलाशा दे० 'तलाथ'। उ०- (शब्द०)। () महादेव बैठे रह गए। वक्ष देखि के तेहि फौज तल्लास कर हारी। माप जहाँ भूप बेजारी! तुरसी दुख तए ।-सूर (गन्द०)। प., पु०६५। तवनापुर-क्रि० स० [सं० तापन] दे० 'तपावा'। तल्लिका-सा बी० [ से० ] ताली । कुषी तवना@:-क्रि. प. [ स्तयन ] स्तुति करना । तल्ली'-- सबा औ० [सं०] 1 जूते का वषा । ३ नीचे फी सलछट तषनाई-सचा पुं० [ हिं• तवा ] हलका तवा । षो नौद मे पैठ जाती है। तवना --सुद्धा पुं० [हिं० माना( = ढकना, मदना)] ठक्कम । मूंदने तल्ली-सहा स्त्री० [सं०] १ तरुणी। पूवती। २ नौका । नाव । ___ का साधन जो छेप या किसी वस्तु के मुह को वद करे। ३ वरण की परनी। वघरकुर-सधा पुं० [हिं०] ३० तल'। उ०-प्रवनी के तवरे तल्लीन--वि० [सं०] उसमे लीन । उसमें लग्न । दत्तधित [को०] । प्रगनिज अदरे मजा कवरे विच मवरे । सिरियादे सिवरे हरि तल्लुबासचा पुं० [देश०] गाढ़े की तरह का एक कपठा । महमूची। हित हिवरे ही निवरे जो जिवरे ।-राम० धर्म, तुकरी। सल्लम । पृ० १७६ । वल्ली -सहा पुं० [सं०तल] जति के नाचे की पाट । तवरसमा पुं० [हिं॰] दे० 'तोमर' ।