पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३९३

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तशफ्फी वघरक २०३६ तवरक----सधा पुं० [सं० तुवर ] एक पेड़ जो समुद्र पौर नदियों में तवाजा-मक्षा श्री० [अ० तयाजह 1१.मादर। मान । पावभगत । तट पर होता है। २. मेहमानदारी । दावत । ज्याफत । । विशेष---इसमें इमली के ऐसे फट लगते हैं जिन्हें खाने से चौपायों कि प्र-करना । होना। का दूध बढ़ता है। तवाना-वि० [फा०] चली। मोटा ताजा । मुस्टहा। तपरना-क्रि-स. [?] कहना । उ.--वदन पफ सहस दुय सहस · तवाना-क्रि० स० [सं० तापब, हिं• ताना] तप्त करना। गरम कराना। रसना वणो । तिको फरणपती गुण पक तवरी-रघु० रू., तवाना—कि स० [हिं० ताना] ढक्कन को चिपकाकर वरतन का पृ०५७। मुंह बंद कराना। तवराज-सक पुं० [सं०] तुरंषधीन । पवास परा। तवाना--क्रि०प० [हिं० तार से पामिक धातु ] वाव या पावेथ । तवर्ग-सा पुं० [सं०] त पोर न के मध्य के समस्त पक्षर समूह। में माना। प्रतल ताल । उ--तवल-पात वाज कत तवायफ-सका खौ.प. तवायफ वेश्या । रंडी। भेरि भरे फुक्किपा:-कीति०, पृ० १६ विशेष-यद्यपि यह शव्य तायफहू का वह है, पर हिंदी में एक- तवक्षपोल- पुं० [हिं॰] दे० 'तबलवी'।-कीर्ति०, पृ. ६६ वचन बोला जाता है। कहीं कहीं तायफा मी बोला जाता है। तवल्ल -सबा पुं० [हि. ] दे० 'तबला'। तवारा-संज्ञा पुं० [सं० ताप, हिं० ताव + रा (प्रत्य॰)]मलन । दाह । तवल्लह-संज्ञा पुं० [वि.] दे० 'सवल'। उ०----पर इफ एक वाप । 30-तवते इन सबहिन सचुपायो। जबतें हरि सदेश पनेक सुपान । मलक्कत मुतवल्लह मान । --पु० रा०, तुम्हारो सुनत वषारो पायो।-सूर (शब्द॰) । तवारीख-सबा स्त्री- [प० सवारीख] इतिहास । तवस्सल-संज्ञा पुं० [प्र. तवस्सुल ] सहायता। उ.-सोलह वश विशेष—यह 'तारीख' पाब्द का बहुवचन है। हक्म जारी करें। जो-सतगुरु तस्सव तयारी करें।- - तवारीखी-वि० [म. तवारीख +फाई (प्रत्य॰)] ऐतिहा- कवीर म., पृ० १३१ । सिक [को०] । तवस्सत-संज्ञा पुं० [म.] मध्यस्थता । बीच में पड़ने का कार्य। तवालत-सका स्त्री.[म.] १ लंबाई । दीर्घत्व । २ प्राधिक्य । उ०पापके तवस्सुत की मार्फत मेरी ५०० बिल्दों में से भी प्रधिकताधिकाई। ज्यावती। ३. बखेड़ा । तूल तवील। कुछ निकल जाय तो क्या कहना।-प्रेम. प्रौर गोर्की, पु. ५८. तविप'-संहा पुं० [सं०] १, स्वर्ग। २ समुद्र । ३ व्यवसाय । ४ तवा-प्रज्ञा पुं० [हिं० ववना बलना)] 1. लोहे का एक शक्ति । छिछला गोष बरतन जिसपर रोटी सेंकते हैं। तविपर--वि० १ वृद्ध । महत् । २. वसवान । ५। धली। ३ क्रि० प्र०-चढाना। . . " पूज्य (को०)। महा०-तवा सा मु कालिख लगे हुए तवे को. तरह काखा तविपी- -(सं०] १. पुष्यो। २. नदी। ३. शक्ति । ४. इंद्र मु। तवा सिर से पोषना- सिर पर प्रहार सहने लिये की एक कन्या का नाम [को०] । तैयार होना। अपने को खूप इन पौर सुरक्षित करना। तवे तविष्या-सबा श्री० [सं०] शक्ति । पल। तेज [को०)। का हसना = तवे के नीचे जमी हुई कालिख का बहस चलते तवी-समा बी० [हिं० तवा ] 1 छोटा तवा । २ पतले किनारे- जलते लाल हो जाना जिससे घर में विवाद होने का कुणकुन . वाली लोहे की थाली । ३ कश्मीर की एक नदी। समझा जाता है। तवे की बूंद-(1) क्षणस्थायी। देर तक न टिकनेवाला। नश्वर। (२)जो कुछ भी न मालूम हो। तवीयन -सबा पुं० [अ० तवीय ] वैद्य । चिकित्सक । - जिससे कुछ भी तृप्तिम हो । जैसे,--इतने से उसका क्या होता सवीप-सका पुं०.[सं०] १ स्वर्ग। २ समुद्र । ३. सोना [कोण। - , ,,इसे सवे की वूप समझो। “ , तवेला-सा पु[हिं० तबेला ] दे० 'तबेला' - - २ मिट्री या खप का गोज ठिकरा जिसे 'चिलम पर रखकर तवै -प्रव्य.[हिं०] दे० 'त' उ० सवै बाषि तै' सेख भ तमाखू पीते हैं। ३ एक प्रकार की लाल मिट्टी-खो हींग में 4जु भायो। फष्ट्र वस्स ही भगताको उढ़ायो।-हम्मीर०, मेस देने काम में पाती है। ३ तवे के पाकार का साधर पु०.३८ । ... खो पुर में पाने विचार से छाती पर रहता बाा तशीश-संशा बी.[प्र. सखीस] १.ठहराव । निश्चय । २. 'समा सौ.[हिं०] दे० 'तबाही' 80-दुश्मन देख के मकं की पहचान । रोप का निदान । ३ लगान निर्धारित - सवाई परना। युवा मिल बाद खाना-दक्खिनी०, १ करने की क्रिया या स्थिति (को०)। .. पु.१५। '.. ए तशददुद-सबा पुं० [.] १..पाक्रमण । २ कठोर व्यवहार । सवाई -सथा श्री० [हिं० ताप ] ताप'! ..... , ज्यादती । सख्ती [को०]. दवाखोर-पाई [सं० स्वक्षीर Jथरोचन । सलोचना, तशफ्फी-सथा नी• [म० तपो] १. ढाढस । सात्वना । ..