पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३९४

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सशरीफ २०४० वसला ऐसे फठकों को प्रेमचंद से पूरी तशफ्फी हासिल होती है।- तण्ड णिहार । तस भस हुवा प्राइण्ड, तिणि सिणगार प्रेम मौर गोर्की, पृ० २१७ । २. रोगमुक्ति (को०)। उतार-ढोला०, दू०५८०। तशरीफ-संश खी० [अ० तशरीफ़ ] बुजुर्गी । इज्जत । महत्व। तसकर-संश पुं० [सं० तस्कर ] दे० 'वस्कर'। उ०-सान बड़प्पन । बहुरंग तसकर, बड़ा अजुगुति कीन्ह । -जग० वानी, पृ. ४५॥ महा.---तशरीफ रखना=विराजना। वैठना (प्रादरायंक)। उसकीन-मन्ना बो• [अ० तस्कीन ] सल्ली। ढारस। दिलासा । तशरीफ लाना=पदार्पण करना। माना (भादरार्थक)! तसगर-संज्ञा पुं० [देश॰] जुलाहों के ताने में नीलक्खी के पास को तशरीफ ले जाना-प्रस्थान करना । चला जाना: दो लकड़ियों में से एक। तश्त-संज्ञा पुं० [फा०] १. पाली के प्राकार का हुलका छिछला तसगीर-सचा त्री० [५० तस्गीर ] १. संक्षेप करना। २ सक्षेप वरतन । २. परात । लगन। ३. ताव का वह बड़ा बरतन करने की क्रिया या माव [को०] । जो पाखानों में रखा जाता है । गमला। तसदीक-सा जी० [५० तस्दीक ] १ सचाई। २. सचाई को तश्तरी-संशा सी० [फा०] पाली के आकार का हलका छिछला परीक्षा या निश्चय । समर्थन । प्रमाणो के द्वारा पुष्टि । ३ बरतन । रिकावी। साक्ष्य । गवाही। तश्वीश-संशश्री. [१०] १. चिता। फिक। २. भय । डर। क्रि०प्र०—करना। होना। पास। उ०-किसी किस्म के तरदुद पोर तश्वीण फी तसदीह -संशात्री० [म. तस्वीम १ दर्दसर । २. तकलीफ। गुंजाइश नहीं है। --प्रेमघन॰, भा॰ २, पृ० १३५ । दुःख । फ्लेश । उ.-नहिं चुन घीव सबील ही तसदोह सब तषति@ संक्षा पुं० [फा० तल्त ] दे० 'तख्त' । उ०-तपति निवास ही की सही । सुदन (शब्द०)। ३ परेशानी । मट ___की मा मनि भाई।-प्राण, पृ० ५३ । तपते-सह पुं० [अ० मत ] दे० किवाड़'। उ०-सुरति वारी तसहक-संश पुं० [अ० तसद्दुक ] १ निछावर । सदका । २ तपते खोले । तव मानक विनसे सगले मोले । प्राण बलिप्रदान । कुरबानी। पु० ३७। तसनीफ-सचा बी०म० तसनीफ़ 1 ग्रंप की रचना। तष्ट---वि० [सं०] १. छीला हुमा । २. कुटा हुमा। पीसफर दो तसबी-सं०बी० [40 तस्वीर नानी- दे० 'वसनीह। उ०-फेरै न दलों में किया हुमा । ३ पीटा हुमा । सवी जपे न माला ।--पलटू० पू०६१ । तब्दा–संज्ञा पुं० [सं०] १. छीलनेवाला । २. छील छालकर गढ़ने- . - तसवीर-संजय सी० [थ तस्त्रीह] दे० 'तसवीर'। उ०-लिखे- वाला। ३. विश्वकर्मा । ४. एक प्रादित्य का नाम । चितेरे चित्र में पिय विचित्र तसबीर। दरसत हग परसत हिये तष्टार-संज्ञा पुं० [फा० तश्त ] तौवे की एक प्रकार की छोटी परसत तिय धर धीर । स० समक, पृ० ३६७ ।। तपतरी जिसका व्यवहार ठाकुर पूजन के समय मुतियों को तसबीरगर-सञ्ज्ञा पुं० [म. तस्वीर+फा. गर (प्रत्य॰)] नहलाने के लिये होता है। चित्रकार । उ०-डीठि मिचि बात मिचि इचठ ना एंधी तष्टी--संश स्त्री० [हि.] दे० 'तष्टा । एक प्रकार का वरतन । संची विचत न तसवीर तसवीरगर पै।-पजनेस०, पृ.७॥ धातपात्र। 30-पूनि चरवा चर? तुष्टी तवला झारा लाटा नयनीट-संहाली fuo तस्वीटा समिरिनो। माला। अपमाला। गावहिं । सुदर० ग्रं, मा०६ पु०७४। (मुसल०) 130-मन मनि के तहँ तसवी फेरह ! ठव साहब तष्पना-कि० स० [हिं० ताकना ] ताकना। देखना । उ०- के वह मन भैवइ ।-दादु (चन्द०)। प्रथिराज राज राजग गुर तपितरकस तषियो ।-पृ. मुहा०-तसबीह फेरना-ईश्वर का नामस्मरण या उच्चारण रा०, १२५४॥ करते हुए माला फेरना।। तषिसंशखी. [सं० तक्षिणी ] नागिन । सपिणी। .-नयन ससमा-संश० [फा० तस्मह] १. चमड़े की कुछ चौड़ी डारा, सुफज्जल रेष, तपि विष्पन छवि फारिय । श्रवनन सहज माकार की लंबी धज्जी जो किसी वस्तु को बांधने या कसने फटाफ, चित्त कपन नर नारिय।-पु. रा, १४, १५६ ! के काम में यावे । चमड़े का चौड़ा फीता। तस -नि० [सं० ताश, प्रा० तारिस, पुहि-तइस ] तैसा। मुहा०--उसमा खींचना-एफ विशेष रूप से गले में फंदा । वैसा । उ०—किए जाहिं छाया जलद सुखद बहर घर पात।. डापकर मारना। गला घोटना। तपमा लगान रखना- तस मग भयेउ न राम कहं जस मा भरतहि जात ।-मानस, गरदन साफ उड़ा देना । साफ दो टुकड़े करना। २१२१५ २. हते का फीता (को०)। ३. पमहे का कोड़ा या दुर्रा (को०)। स क्रि० वि० तैसा । वैसा । ३०-उस मति फिरी रही बस तसर-संशपुं० [सं०] १. जुमाहों की दरको। २ एक प्रकार का मागी। तुलसी (सब्द०)। घटिया रेहम । वि० ३. 'टसर'। तस -सर्व [४० तत, तस्य] उसका। तत् सप का सरिका-संसखी [सं०] बुनाईको०] । परंभकारक एकवरन । उ.--द्रो वाइस नासिका, वासु तसला- पुं० [फा० वस्त+ला (प्रत्य॰)] कटोरे के पाका