पृष्ठ:हिंदी शब्दसागर भाग ४.pdf/३९८

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दांडवी २०४४ दाँत वांडवी-सशा पुं० [सं० ताण्डवी ] संगीत के चौदह तालों में तांबूली'--संज्ञा पुं० [सं० ताम्बूलिन् ] पान धनेवामा । तमोसी। से एक। तांबूली'-वि० तावूल संबंधी [को०] वांडिसधा पु० [सं० तण्डि ] तडि मुनि फा निकला हुमा तांवली संज्ञा स्त्री० [सं० ताम्बूस] पान की बेल । 3.---ताबूनी, नृत्य शास्त्र। अहिवल्लरी, द्विजा, पान की बेलि ।--नं० प्र०, पृ० १०६ । तोडी--सदा पुं० [सं० ठाण्डिन् ] १. सामवेद की तांडय शाखा का तांवेल-संज्ञा पुं०[?] युवा । कच्छप । प्रध्ययन करनेवाला। २ यजुर्वेद का एक कल्पसूत्रकार । तांडथ-सज्ञा पुं० [सं० ताण्ड्य ] १. तडि मुनि के वशज । २ तांमुल -सज्ञा पुं० [हि. ] दे॰ 'वाबूल' 130-घृत रिन भोजन ज्यो चून पिन वामुन जटा बिन जोगी पैसे पुछ रिन लोपरा। सामवेद के एक ब्राह्मण का नाम । ~मकवरी०, पृ० ५३ । तांव-वि० [सं० ठान्त ] १. श्रात । थका हुमा । २. जिसके अंत में। ताg:--प्रव्य[?] 6ब तक। उ०-बी जसराज प्रतप्पियो तां त् हो । ३. मुरझाया हुया । (को०) । ४. कदमय (को०)। सुरपुज प्रकाल !-रा० २०, पृ०१६ । चांदव'-पि० [सं० तान्तव ] [वि॰ स्त्री० ताठवी ] जिसमें तंतु या तार हो। जिसमें से तार निकल सके। वाँ'-अप० [सं० तता, प्रा० तई, तया; राज. ] वहाँ। उ०-सज्जण मलगा तो लगई, बालय सपणे दिद।- तांतव-सा पु०१ बुनना।२ बुना हुमा कपड़ा। ३ जाल । ४ ढोला०, ०४२.! सूत कातना । [को॰] । तांतवायि, तांतुवाय्य-सी० पुं० [सं० तान्तुवायि, 'तान्तुवाय्य ] १ तॉई-प्रव्य० [सं० तावत् या फ्रा. ता] १. तक। पर्यंत । २. पास । तुक । समीप। निकट । ३. (किसी) प्रति। चतुवाय या बुनकर का पुत्र [को० । समक्ष । लक्ष्य करके। वैसे, किसी के ताई कुछ कहना। दांत्रिक-वि० [सं० तान्त्रिक ] [स्त्री० तान्धिकी ] तप सबंधी। उ०-कद्द गिरिधर कविराय बात चतुरन ताई। इन तांत्रिकर-सहा पुं०१ तंत्र शास्त्र का जाननेवाला। यंत्र मत्र मादि तेरह तें तरह दिए पनि पावै साईगिरिषर (इन्द०)। करनेवाला। मारण, मोहन, उच्चाटन मादि के प्रयोग ४. विषय मे । सबंध में। लिये । वास्ते निमित्त उ०-- __ करनेवाला । २. एक प्रकार का सन्निपात । दीन्ह रूप मो जोति गोसाई । कीन्ह सम दुई जग के ताई । तांबूल-सका पुं० [सं० ताम्बूल ] १ पान । नागवल्ली दल । २. —जायसी (पाद०)। पान का बीडा । ३ किसी प्रकार का सुगधित द्रव्य जो भोजनोत्तर स्वाया जाय (जैन)। ४. सुपारी। मुहा०-अपने कई =अपने को। वुलकरंक-संम पुं० [सं० ताम्बूलकर] , पान रखने का विशेष—दे० 'तई'। घरतन । बट्टा । बिलहरा।पान के बीडे रखने का हिन्दा। ताँगा-सज्ञा पुं० [हिं०] दे० 'टागा'। पनष्ठिया। ताँडा-सा पुं० [हिं० ] दे० 'टाहा। उ.-राम नाम सौदा तांबूलद-सज्ञा पुं० [सं० ताम्बूलद ] पान रखने और तैयार करके किया दूजा दाग चुकाय । जन हरिया गुपज्ञान का नाम - देनेवाला नौकर (को०] । देह लदाय ।-राम० धर्म, पु०५३ । तांवूलघर-संज्ञा पुं॰ [ सं० ताम्बूलषर ] ताबूलद [को०] । ताण- सपा नी० [हिं०] दे॰ 'तान'। उ०-अहाँ तुपक तर- तांबूलनियम-सम पुं० [ से० ताम्तूलनियम ] पान, सुपारी, लवग, वारि मरु सेल टकटुक ह चारण की ताण पड़े फेर हुई।- इलायची आदि खाने का नियम । (जैन)। सुदर० ग्र०, भाग २, पृ०८८१। तांवृलपत्र-सश ० [सं० ताम्बूलपत्र 11 पान का पत्ता। २ ताँत-सक्षा स्त्री० [सं० तन्तु ] १. भेड़ बकरी की मवड़ी, या चौपायों प्राधा नाम की लता जिसके पछे पान के से होते हैं। के पुटों को पटफर बनाया हुमा सूत । चमड़े या नसों की बनी पिंडालु। हुई डोरी। इससे धनुष की मेरी, सारंगी आदि के तार तांवलयोटिका-सा श्वी० [सं० ताम्बूलबीटिका ] पान का बनाए जाते हैं। बीटा।वीडी। मुहा०--तात सा=बहुत दुबला पतसा तांत बाजी और राग बूझा- तांबूलराग-संक्षा पुं० [सं० ताम्बूलराग] १ पान की पीक । २ जरा सी बात पाकर खूब पहचान लेना । उदा.-परकी मसूर । टपको चासो साग । हम तुम्हारी जात बुनियाद से वाकिफ हैं । तांबूलवरुती-समस पी० [सं० ताम्बूलवल्ली ] पान की बेल । नाग- तांत दाजी पौर राग वूझा।-सैर कु.पु. ४४ ॥ वल्ली । २ पनुप को डोरी । ३. पोरी। सूत। ४ सारगी प्रादि का तांबूलवाहक -सपा पु० [सं० ताम्बूलवाहक ] पान खिलानेवाला तार। जैसे,तांत बाजी राग बूझा। उ.-(फ) सो मैं सेवक । पान का बीड़ा लेकर चलनेवाला सेवक । कुमति कहउँ केहि भाँती। बाज सुराग कि गांदराती। -तुलसी (शब्द०)। (स) से साधु गुरु मुनि वांबूलषीटिका-सज्ञा सी० [सं०] पान का बीड़ा [को०] । पुरान श्रुति भयो राग वाजी ताति। तुलसी (इन्द०)। पालिक-संका पुं० [सं०] पान बेचनेवाला । तमोली। ५. जुलाहाँका राध।